विशुद्धचिंतन (Vishuddha-Chintan) is a blog-site based on Darshan and Philosophy to make you to Think, Observe and Understand the Reality of the Society, Government, Politics, Religion and so on….
अपने ही देश की संस्कृति और समाज को ठुकरा कर हम विदेशी संस्कृति को महत्व देने लगे
हम जन्म से न तो हिन्दू हैं और न ही डॉक्टर या इंजीनियर, हम जन्म से मानव हैं और उसके बाद भारतीय। क्योंकि जन्म के समय जो शरीर हमें मिला वह मानव का है और जिस भुमि में हमने जन्म लिया वह भारत है। सबसे पहले हमने माँ को जाना और फिर पिता को जाना जब तक हम गोद में थे। फिर जाना पहली बार उस भूमि को जिसपर हमने चलना और खड़े होने सिखा, लेकिन तब तक हमारा परिचय नहीं हुआ था धर्म, वर्ण, जाति व सम्प्रदाय से। Continue Reading
नवीनतम लेख
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संन्यास, स्वाभिमान और सहयोग: एक गहन दृष्टिकोण
कई लोग कहते हैं, “जब तुमने संन्यास ले लिया, समाज का त्याग कर दिया, तो फिर झोंपड़ी की आवश्यकता क्यों? आर्थिक सहयोग क्यों चाहिए? यदि जंगल में ही रहना है, तो जंगलियों की तरह रहो। क्यों मांगते हो सहायता उस समाज से जो स्वयं माफियाओं का गुलाम है?” इसी मानसिकता ने हमारे समाज को भीतर…
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मुझे भिखारी कहने से पहले अपने भीतर झाँक लेना
अब तक मैं सिर्फ जंगल और अपनी झोंपड़ी की तस्वीरें साझा कर रहा था, लेकिन आज मैंने अपनी झोंपड़ी की तस्वीर साझा की है। खास उन लोगों के लिए, जिन्हें लगता है कि मैं ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा हूँ, भीख में मिले पैसों से अय्याशी कर रहा हूँ। तो देख लीजिए, यही वह झोंपड़ी…
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होली: प्रेम, सौहार्द और सामाजिक एकता का पर्व
उत्सव चाहे किसी भी जाति, संप्रदाय, प्रांत या देश का हो, उसका मूल उद्देश्य सामाजिक प्रेम, मैत्री और सौहार्द को बढ़ाना ही होता है। यह अवसर हमें भेदभाव मिटाकर खुशियाँ बाँटने का सन्देश देता है। दुनिया में कोई भी त्योहार द्वेष और घृणा को बढ़ावा देने के लिए नहीं मनाया जाता। उत्सवों का वास्तविक स्वरूप…
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चुनमुन परदेसी और निःस्वार्थ सेवा का दृष्टिकोण
कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। चुनमुन परदेसी एक ऐसे देश में पहुंचा, जहां के लोग बहुत मेहनती थे और अपनी मेहनत के दम पर जिंदा रहते थे। उस देश में ना तो कोई किसी से सहायता मांगता था, और ना ही कोई किसी की सहायता करता था। शुद्ध कर्मवादी वैश्यों और शूद्रों का देश…
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संन्यास का वास्तविक स्वरूप: एक गहरी यात्रा की कथा
संन्यास, एक ऐसा शब्द है जो हमारे समाज में सदियों से प्रतिष्ठित रहा है। शास्त्रों में इसका चित्रण बहुत पवित्र और विशेष रूप से किया गया है। लेकिन क्या आपने कभी यह विचार किया कि संन्यासी वास्तव में होता कौन है? क्या संन्यासी वही होता है, जैसा शास्त्रों में वर्णित है? या फिर वह एक…
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सफलता की मेरी परिभाषा और समाज की सच्चाई
मनोविज्ञान कहता है कि यदि समाज में प्रभाव जमाना है, दूसरों को आकर्षित करना है, और मान-सम्मान प्राप्त करना है, तो कपड़ों में सलीका होना चाहिए, चेहरे पर तनाव या दुःख की छाया नहीं दिखनी चाहिए। अपनी कमजोरियाँ, अपने दुःख और अपनी योजनाएँ कभी उजागर नहीं करनी चाहिए। देहाती मान्यता भी यही कहती है—अपनी भावी…