विशुद्धचिंतन (Vishuddha-Chintan) is a blog-site based on Darshan and Philosophy to make you to Think, Observe and Understand the Reality of the Society, Government, Politics, Religion and so on….
अपने ही देश की संस्कृति और समाज को ठुकरा कर हम विदेशी संस्कृति को महत्व देने लगे
हम जन्म से न तो हिन्दू हैं और न ही डॉक्टर या इंजीनियर, हम जन्म से मानव हैं और उसके बाद भारतीय। क्योंकि जन्म के समय जो शरीर हमें मिला वह मानव का है और जिस भुमि में हमने जन्म लिया वह भारत है। सबसे पहले हमने माँ को जाना और फिर पिता को जाना जब तक हम गोद में थे। फिर जाना पहली बार उस भूमि को जिसपर हमने चलना और खड़े होने सिखा, लेकिन तब तक हमारा परिचय नहीं हुआ था धर्म, वर्ण, जाति व सम्प्रदाय से। Continue Reading
नवीनतम लेख
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वर्ण-व्यवस्था और जाति व्यवस्था में क्या अंतर है ?
वर्ण-व्यवस्था का और कैसे जाति-व्यवस्था में रूपांतरित हो गयी और कब जाति-व्यवस्था जाति-वाद में रूपांतरित हो गयी यह बता पाना कठिन है। लेकिन वर्ण-व्यवस्था की आलोचना करने वाले विद्वान ब्राह्मणों को दोषी ठहराते हैं जाति-वाद फैलाने का। उनका मानना है कि वर्ण व्यवस्था नहीं होती, तो जातिवाद भी नहीं होता। और यही लोग राजनैतिक/सरकारी जाति…
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जागृत लोगों के लिए समाज से दूरी: एक अनिवार्यता
जब साधु-संन्यासियों के निवास स्थान की चर्चा होती है, तो आम धारणा यह है कि उनका कोई स्थायी निवास स्थान नहीं होता। उनके लिए संपूर्ण पृथ्वी ही निवास स्थान है। वे भ्रमणशील होते हैं, और यह अपेक्षा की जाती है कि वे भटकते रहें, ईश्वर की खोज में। कौन जाने, किस गली या चौबारे में…
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मनोविज्ञान में डिटैचमेंट का सिद्धांत (Law of Detachment)
मनोविज्ञान में डिटैचमेंट का सिद्धांत (Law of Detachment) यह सिखाता है कि हमें परिणामों, परिस्थितियों या दूसरों के व्यवहार को नियंत्रित करने की आवश्यकता से मुक्त होकर जीना चाहिए। यह सिद्धांत मानसिक शांति, संतुलन और भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि जब हम अपनी उम्मीदों और इच्छाओं को…
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प्रायोजित महामारी के डर से कैसे बचा जाए ?
प्रश्न: महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए? ओशो: “इस डर से कैसे बचा जाए..?’ क्योंकि वायरस से बचना तो बहुत ही आसान हैं, लेकिन जो डर आपके और दुनिया के अधिक लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है…
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जीवन के उतार-चढ़ाव: स्वाभिमान और अनुभव की कहानी
मनुष्य का जीवन हमेशा एक जैसा नहीं होता। मेरे जीवन ने भी इस सत्य को बार-बार सिद्ध किया है। कभी आसमान की ऊँचाइयों को छुआ है, तो कभी फुटपाथ पर अपनी रातें बिताई हैं। यह कहानी उन अनगिनत पलों की है, जो मेरे अनुभवों की थाती हैं। कभी मैं देश की जानी-मानी हस्तियों, म्यूजिक कंपनियों…
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हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक
आजकल जब भी हम हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति की रक्षा का ढोंग करने वाले तथाकथित रक्षकों को देखते हैं, तो उनका स्वरूप हमेशा विरोधाभासों से भरा नजर आता है। इनकी उपस्थिति में पाखंड और विडंबना स्पष्ट रूप से झलकती है। पश्चिमी संस्कृति का विरोध, लेकिन पश्चिमी वस्त्र और उपकरण? पश्चिमी त्योहारों का विरोध करते हुए…