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विशुद्धचिंतन (Vishuddha-Chintan) is a blog-site based on Darshan and Philosophy to make you to Think, Observe and Understand the Reality of the Society, Government, Politics, Religion and so on….

विशुद्ध चिंतन: एक सकारात्मक सोच की ओर कदम

‘विशुद्ध चिंतन’ (www.vishuddhachintan.com) केवल एक ब्लॉग नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ हम जीवन को गहराई से समझने और बेहतर बनाने की प्रेरणा साझा करते हैं। हमारा उद्देश्य आत्म-विकास, स्वास्थ्य, संस्कृति और प्रेरणादायक विचारों के माध्यम से पाठकों को नई दिशा प्रदान करना है। Continue Reading


नवीनतम लेख

  • युद्ध-विराम: देशहित या व्यावसायिक विवशता ?

    युद्ध-विराम: देशहित या व्यावसायिक विवशता ?

    कल से मन में गहरी हलचल है—युद्ध, युद्धविराम और तिरंगा यात्रा की इस बनावटी नौटंकी को लेकर।जो निर्दोष मारे गए, जिनके घर-परिवार उजड़ गए, वे सब इस राजनैतिक खेल के मोहरे बनकर रह गए। नेताओं ने बड़ी सहजता से हाथ मिला लिए — ठीक वैसे ही जैसे दो शतरंज खिलाड़ी अपनी गोटियाँ समेटकर, खेल के…

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  • निर्दोषों की चिताओं पर चिताओं पर सिंकती है राजनैतिक रोटियाँ

    निर्दोषों की चिताओं पर चिताओं पर सिंकती है राजनैतिक रोटियाँ

    22 अप्रैल 2025, पहलगाम — एक शांत घाटी, जहां केवल देवदार की खुशबू और झरनों की नमी होनी चाहिए थी, वहाँ गूंजती हैं गोलियों की आवाज़ें। 26 निर्दोष लोग मार दिए गए — धर्म पूछकर। इंसान को इंसान नहीं, मजहब के चश्मे से देखा गया। इंसानियत हार गई, राजनीति जीत गई। पूरा देश शोक में…

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  • चाय: अमृत या विष ? प्राचीन पेय के स्वास्थ्य रहस्यों पर एक विशुद्ध दृष्टि

    चाय: अमृत या विष ? प्राचीन पेय के स्वास्थ्य रहस्यों पर एक विशुद्ध दृष्टि

    “अति सर्वत्र वर्जयते” – यह शाश्वत संस्कृत सूक्ति हमें जीवन के हर पहलू में संतुलन का महत्व सिखाती है। किसी भी वस्तु की अधिकता निसंदेह हानिकारक हो सकती है। परन्तु, क्या इस सार्वभौमिक सत्य की आड़ में चाय जैसे सदियों पुराने और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित लाभकारी पेय को पूर्णतया नकारात्मक करार देना न्यायोचित है?…

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  • तारीखों की बरसात सम्बन्धों में दरार डाल देती है

    तारीखों की बरसात सम्बन्धों में दरार डाल देती है

    “तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख… और फिर हर तारीख पर तारीख…” यह डायलॉग न केवल अदालतों की धीमी गति को दर्शाता है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में भी देखने को मिलता है। जब हम किसी से सहायता या सहयोग मांगते हैं, तो अक्सर हमें तारीखें दी जाती हैं। उधार वापस मांगने जाओ, तो…

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  • छोटे बच्चों को मोबाइल फोन क्यों नहीं देना चाहिए ? – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

    छोटे बच्चों को मोबाइल फोन क्यों नहीं देना चाहिए ? – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

    आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। माता-पिता अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं और अक्सर बच्चों को चुप कराने या व्यस्त रखने के लिए मोबाइल फोन थमा देते हैं। यह एक आसान समाधान लगता है, लेकिन क्या यह बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए…

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  • मैं किसी दड़बे का नहीं हूँ — मैं सनातनधर्मी हूँ

    मैं किसी दड़बे का नहीं हूँ — मैं सनातनधर्मी हूँ

    जब भी मैं किसी दड़बे की आलोचना करता हूँ, उस दड़बे के अनुयायी तुरंत मुझे दुश्मन खेमे का घोषित कर देते हैं। यदि मैंने हिन्दुत्व के नाम पर किए जा रहे उत्पातों के विरुद्ध लिखा, तो मुझे पाकिस्तानी मुल्ला घोषित कर दिया जाता है।यदि मैंने इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना की, तो मुझे संघी, बजरंगी और…

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