
विशुद्ध चिंतन: एक सकारात्मक सोच की ओर कदम
‘विशुद्ध चिंतन’ (www.vishuddhachintan.com) केवल एक ब्लॉग नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ हम जीवन को गहराई से समझने और बेहतर बनाने की प्रेरणा साझा करते हैं। हमारा उद्देश्य आत्म-विकास, स्वास्थ्य, संस्कृति और प्रेरणादायक विचारों के माध्यम से पाठकों को नई दिशा प्रदान करना है।
हमारी प्रेरणा
इस ब्लॉग की शुरुआत एक सरल लेकिन महत्वपूर्ण उद्देश्य से हुई—हमारे समाज में सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हमें अक्सर आत्ममंथन का समय नहीं मिलता। यही कारण है कि हमने ‘विशुद्ध चिंतन’ की नींव रखी, ताकि सरल भाषा में गहरी बातों को प्रस्तुत किया जा सके।
हम क्या प्रदान करते हैं?
- आत्म-विकास: जीवन में आगे बढ़ने और खुद को निखारने के व्यावहारिक सुझाव।
- स्वास्थ्य और योग: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी जानकारियाँ।
- संस्कृति और परंपराएँ: भारतीय सभ्यता, त्योहारों, और आध्यात्मिक ज्ञान से जुड़ी रोचक बातें।
- प्रेरणादायक लेख: जीवन में उत्साह और ऊर्जा बनाए रखने के लिए सकारात्मक विचार।
- उत्पाद समीक्षाएँ: प्रामाणिक और निष्पक्ष समीक्षा जिससे पाठकों को सही निर्णय लेने में मदद मिले।
हमारी विशेषता
- सरल भाषा: हमारे लेख ऐसे होते हैं कि हर कोई आसानी से समझ सके।
- भारतीय संदर्भ: हमारी सभी सामग्री भारतीय जीवनशैली और परंपराओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
- पाठकों से संवाद: हम अपने पाठकों की प्रतिक्रियाओं और सुझावों को बहुत महत्व देते हैं।
- व्यावहारिकता: हमारे लेख न केवल पढ़ने योग्य होते हैं, बल्कि वे पाठकों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाने में सक्षम होते हैं।
हमारे साथ जुड़े रहें
हम चाहते हैं कि ‘विशुद्ध चिंतन’ केवल एक ब्लॉग न रहे, बल्कि एक समुदाय बने। आप हमें सोशल मीडिया पर फॉलो कर सकते हैं, कमेंट के माध्यम से अपने विचार साझा कर सकते हैं, या हमारी ईमेल सूची में शामिल होकर नवीनतम लेखों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हमारी यात्रा में शामिल होने के लिए धन्यवाद! आइए, मिलकर एक सकारात्मक और सार्थक जीवन की ओर कदम बढ़ाएँ।
हमने जन्मभूमि को क्या दिया ?
हम जन्म से न तो हिन्दू हैं और न ही डॉक्टर या इंजीनियर, हम जन्म से मानव हैं और उसके बाद भारतीय। क्योंकि जन्म के समय जो शरीर हमें मिला वह मानव का है और जिस भुमि में हमने जन्म लिया वह भारत है। सबसे पहले हमने माँ को जाना और फिर पिता को जाना जब तक हम गोद में थे। फिर जाना पहली बार उस भूमि को जिसपर हमने चलना और खड़े होने सिखा, लेकिन तब तक हमारा परिचय नहीं हुआ था धर्म, वर्ण, जाति व सम्प्रदाय से।
फिर हमने जाना धर्म को जो हमें माँ-बाप और समाज ने बताया, हम अपने साथ लेकर नहीं आये थे लेकिन हमने उन्हें अपनाया। समय के साथ हम बड़े हुए और भूल गए उस भूमि को जिसने पहली बार तुम्हें अपने आगोश में लिया बिना यह पूछे कि तुम्हारा धर्म या वर्ण क्या है। उस भूमि ने हमारे लिए अन्न उपजाए ताकि हम भूखे न रहें बिना किसी भेद भाव के। लेकिन हमने बदले में जन्मभूमि को क्या दिया ?
अपने ही देश की संस्कृति और समाज को ठुकरा कर हम विदेशी संस्कृति को महत्व देने लगे। अपने स्वयं के आस्तित्व को ठुकरा कर नेताओं की धोती पकड़ कर चलने लगे। मातृभूमि से अधिक पार्टी और नेता हमें प्रिय होने लगे। हमारे मस्तिष्क में यह बात बैठाने का विचित्र प्रयास हो रहा है कि यदि हम किसी नेता विशेष या पार्टी विशेष का समर्थन नहीं करते तो हम राष्ट्रभक्त नहीं हैं या हिन्दू नहीं हैं या मुस्लिम नहीं हैं।
क्या कभी आपने सोचा है कि ईश्वर ने हमें जो मस्तिष्क दिया है, जो आँखें दीं हैं, जो कान दिए हैं…. वे किसी नेता या पार्टी के सिफारिश से नहीं मिली हैं। और न ही उनका कोई अधिकार बनता है यह बताने का कि आप कौन हैं। आप अपना विवेक का प्रयोग कीजिये और आत्मावलोकन कीजिये कि आप पहले भारतीय हैं या हिन्दू या मुस्लिम ?
हमारा उद्देश्य आपको उस वास्तविकता से परिचय करवाना है जो धर्म सम्प्रदाय से ऊपर है और वह है मानवता। हिन्दू या मुस्लिम होने के लिए केवल तिलक और टोपी बहुत है, लेकिन मानव और देशभक्त होने के लिए बहुत कुछ चाहिए। शालीनता, सौम्यता, सहृदयता, मर्यादित आचार-विचार और भाषा और चाहिए विघटनकारी मानसिकता के व्यक्तियों व संगठनों से दूरी। तभी हम भारतीय जो कि अब लगभग लुप्तप्राय अल्पसंख्यकों में आ चुके हैं, अपना आस्तित्व बचा पाएंगे। धर्म और मान्यताएँ सबके अपने-अपने कोई विरोध नहीं हमारा किसी से लेकिन सर्वप्रथम हम मानव हैं और फिर भारतीय हैं और यही हमारी पहचान है।
विशुद्धचिंतन में पधारने के लिए धन्यवाद
~ विशुद्ध चैतन्य