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ऐसी शिक्षा का कोई महत्व नहीं जो मानव को स्वतन्त्रता से अनभिज्ञ बनाता है
12 शिक्षा चाहे आध्यात्मिक हो, चाहे धार्मिक हो, चाहे वैज्ञानिक हो, चाहे स्कूली हो, अशिक्षा ही मानी जाएगी, यदि शिक्षा व्यक्ति को चिंतन-मनन करने योग्य नहीं बनाता। उस शिक्षा का कोई महत्व नहीं है, जो शिक्षा व्यक्ति को इतना भी शिक्षित नहीं बना पाती कि सही और गलत का अंतर समझ सके। ऐसी शिक्षा का…
सनातन धर्म सिमट कर धर्म और ईश्वर के ठेकेदारों का अधीनस्थ हिन्दू धर्म हो गया
भारतीय धर्म को सनातन धर्म कहा जाता था क्योंकि यह इतना विराट व विस्तृत था कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पंथ और मान्यता का सनातन के अंतर्गत आ जाता था। लेकिन फिर लोग विद्वान होने लगे और हिन्दू धर्म की स्थापना हुई। मानसिकता में संकीर्णता आने लगी और धर्म राजनैतिक और व्यापारिक महत्व की…
अपना-अपना मार्ग अपनी-अपनी नियति
1 हर व्यक्ति कहीं न कहीं कठिन परिस्थियों को सहता है अपने-अपने स्तर पर, फिर चाहे वह किसी रईस बाप की औलाद ही क्यों न हो। मैंने बहुत ही अमीर घर के बच्चे भी देखे, जो दिखने में दुनिया के सबसे खुशकिस्मत बच्चे होते हैं, हर शौक उनका पूरा हो जाता है लेकिन वे भी…
गाँधी ने भारत की सत्ता दूसरों के हाथों में देकर बहुत नुक्सान पहुँचाया
5 हम ऐसे अभागे लोग हैं कि हम दुर्भाग्य की निरंतर प्रशंसा करते हैं। भारत में अगर थोड़ी से भी समझ होती तो भारत भर में उपवास किये जाने चाहिए थे, अनशन किये जाने चाहिए थे, गाँधी के विरुद्ध और सारे भारत पर जोर डालना चाहिए थे कि एक अच्छे आदमी के हाथ में ताकत…
खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाना है
जैसे आयु बढ़ती है, प्राणी अधिक से अधिक समझदार होता जाता है और समझ जाता है कि खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाना है। क्योंकि आयु के साथ-साथ अनुभव भी बढ़ता जाता है। फिर एक समय आता है, जब वह भीड़, समाज और परिवार का अंतर भी समझने लगता है। और जब उसे…
अल्बर्ट आइंस्टीन ने सर्जरी से इंकार कर दिया था
अल्बर्ट आइंस्टीन ने सर्जरी से इंकार कर दिया था यह कहकर कि “मैं जाऊंगा जब मैं जाना चाहूँगा। अप्राकृतिक रूप से समय को बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। मैं अपने हिस्से का योगदान दे चुका हूँ और अब मैं शांतिपूर्ण ढंग से विदा लेना चाहता हूँ।” जीवन के अंतिम पड़ाव में भी यदि वासना,…