असत्यमेव जयते ! सत्यमेव जयते व्यावहारिक नहीं किताबी वाक्य है !

‘सत्यमेव जयते’ सुनते सुनते कान पक गए ! मुंडकोपनिषद से लिया गया यह वाक्य तोतारटंत वाक्य मात्र बनकर रह गया। उपनिषद का यह पूरा श्लोक इस प्रकार है:
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ॥
श्लोकार्थ: ‘सत्य’ की ही विजय होती है असत्य की नहीं; ‘सत्य’ के द्वारा ही देवों का यात्रा-पथ विस्तीर्ण हुआ, जिसके द्वारा आप्तकाम ऋषिगण वहां आरोहण करते हैं जहाँ ‘सत्य’ का परम धाम है।
It is Truth that conquers and not falsehood; by Truth was stretched out the path of the journey of the gods, by which the sages winning their desire ascend there where Truth has its supreme abode.
वास्तविकता तो यह है कि सत्यमेव जयते व्यावहारिक नहीं किताबी वाक्य है और व्यावहारिक वाक्य है असत्यमेव जयते !
अब आप कहेंगे कि मैं असत्य कह रहा हूँ, क्योंकि पूर्वजों ने बताया है, शास्त्रों में लिखा है, अदालत का स्लोगन है…..आदि इत्यादि। लेकिन मैं यही कहूँगा कि असत्यमेव जयते ही व्यावहारिक है और समाज असत्य पर ही आधारित जीवन शैली जीता है।
दशहरा को असत्य पर सत्य के विजय के रूप में मनाया जाता है, जबकि असत्य पर सत्य की विजय कभी हुई ही नहीं। यदि असत्य पर सत्य की विजय हुई होती, तो झूठ बोलने वाले सत्तासुख न भोग रहे होते, झूठ बोलने वाले जेल से जमानत पर छूटने पर सत्यमेव जयते के नारे नहीं लगाते।
यदि असत्य पर सत्य की विजय हुई होती इतिहास में कभी, तो न आप दिन में सौ झूठ बोलते, न समाज झूठ बोलता, न सरकारी अधिकारी झूठ बोलते, न सरकार झूठ बोलती, न बच्चों को झूठ बोलना सिखाते, न लालकिले की प्राचीर से पूरे आत्मविश्वास से झूठ बोलने वाले व्यक्ति को अपना नेता चुनते। सबसे बड़ा झूठ तो यही है कि असत्य पर सत्य की विजय होती है।
सत्य तो यही है कि विजेता को सत्यवादी हरिश्चंद्र मान लिया जाता है, भले वह नंबर एक का जुमलेबाज हो और छल कपट, झूठ, ईवीएम की हेराफेरी के दम पर जीता हो।
सत्य तो यही है कि जिसके पास साल्वे जैसा वकील हो, वह सत्यवादी कहलाता है और जो इतना महंगा वकील करने की हैसियत नहीं रखता, वह जेल में सड़ता रहता है और असत्यवादी कहलाता है।
सत्यवादी समाज और यथार्थ
कल्पना करिए यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति सत्यवादी हो जाये तब क्या होगा ?
कल्पना करिए यदि सरकार और सरकारी अधिकारी सत्यवादी हो जाएँ तब क्या होगा ?
कल्पना करिए, यदि मंत्री,विधायक, पार्षद, मुखिया सत्यवादी हो जाएँ तब क्या होगा ?
कल्पना करिए कि व्यापारी, समाज सेवक, धर्म व जातियों के ठेकेदार, पंडित-पुरोहित, पादरी, मौलवी सभी सत्यवादी हो जाएँ तब क्या होगा ?
इन सभी का धंधा-पानी चौपट और भूखों मर रहे होंगे किसी कोने में पड़े।
~ विशुद्ध चैतन्य
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