कामुकता आधार है जीवन्तता का

प्रश्न उठता है कई बार कि साधू-संन्यासी इतना भयभीत क्यों है स्त्रियों से ?
लेकिन यदि समाज की मानसिकता को समझने का प्रयास करता हूँ, तो पाता हूँ कि वे यूँही भयभीत नहीं हैं, उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, कामुकता से ग्रस्त समाज । वह समाज जो आदिकाल से कामुकता से मुक्त नहीं हो पाया, जो सिमट कर रह गया दो टाँगों के बीच, उस समाज से भयभीत है । क्योंकि इन्हें रहना तो समाज में ही है, कमाना खाना और अपनी पूजा भी करवाना उसी समाज से है, जिसे त्याग कर ये त्यागी बैरागी बने घूम रहे हैं ।
और समाज भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है कि साधू-संन्यासी कामुकता से मुक्त होते हैं या होना चाहिए । यदि साधू-संन्यासी कामुकता से मुक्त हो पाते, तो साधू-समाज के कुछ पंथों में लिंग-भंग की अमानवीय कुप्रथा व्याप्त न होती ।लेकिन यह धार्मिक मान्यताओं के विषय है, इसलिए कभी कोई इस कुप्रथा का विरोध नहीं करता । कामुकता का मुक्त करने का यह ऐसा अमानवीय प्रथा है, जैसे बैलों के अंडकोष को पत्थर से कुचल कर कामुकता से मुक्त करना ।
कामुकता का विरोध करना ही अप्राकृतिक है, ईश्वरीय विधान के विरुद्ध है । कामुकता का विरोध बिलकुल वैसी ही बात है जैसे सुन्दरता का विरोध, बलिष्ठता का विरोध । कामुक समाज का सारा ध्यान केवल काम (सेक्स) पर ही केन्द्रित रहता है । मूर्ख समाज यह मानता है कि कामुकता नष्ट हो जाए, तो ही व्यक्ति आध्यात्मिक उत्थान कर सकता है । वास्तविकता बिलकुल विपरीत है । जो कामुक होगा, वही अध्यात्मिक उत्थान प्राप्त कर सकता है। जिनमें सृजन की प्राकृतिक क्षमता ही समाप्त हो गयी, जिनमें जीवन से ही विरक्ति पैदा हो गयी, वे भला क्या आध्यात्मिक उत्थान करेंगे ?
और कामुकता का दमन ही व्यक्ति को व्यभिचारी बनाता है, व्यक्ति को बलात्कार के लिए प्रेरित करता है । जो काम से संतुष्ट हैं, वे सृजन करते हैं, आविष्कार करते हैं । कभी देखा है आपने किसी त्यागी, बैरागी, ब्रह्मचारी को कोई आविष्कार करते ? जितने भी महान आविष्कार हुए, वे सब उन विदेशियों ने किये, जहाँ काम (सेक्स) वर्जित नहीं । भारत में भी ऋषियों ने उस समय ही आविष्कार किये, जब काम (सेक्स) कोई निन्दित विषय नहीं था । भारत में यदि काम (सेक्स) कोई निन्दित विषय होता, तो कामसूत्र न लिखी गयी होती और न ही खजुराहों के मंदिरों में कामुक प्रतिमाये निर्मित की गयी होती ।
कामुकता मेरी कुंडली में
कई हज़ार साल पहले की बात है । एक दिन एक विश्वविख्यात ज्योतिष मेरे पास आया और बोला कि बाबा आप कई हज़ार वर्षों से तपस्या कर रहें हैं इसलिए आपसे मिलने चला आया । आपने इतने वर्षों में कई सिद्धियाँ प्राप्त की होंगी ? मैंने तो पुरे विश्व में अपने ज्योतिष-ज्ञान का डंका बजवा रखा है इसलिए आप की कुंडली देखना चाहता हूँ और अपने ज्ञान के विषय में आपसे राय लेना चाहता हूँ ।मैंने कहा, “मैंने तो कभी कुंडली बनवाई ही नहीं ।”
“कोई बात नहीं आप अपना डेट ऑफ बर्थ बता दीजिये और स्थान व समय बता दीजिये ।” उसने अपना लैपटॉप खोलते हुए कहा । “लेकिन मैं जो कुछ भी बताऊँ उसे आप पूरी इमानदारी से सुनियेगा और बुरा मत मानियेगा यदि कुछ गलत निकला तो ”
मैंने उसे सब कुछ बता दिया और उसने कुंडली बनाकर मेरी ओर हैरानी से देखा और पूछा कि आपने जो विवरण दिया है वह सही है ?
मैंने कहा कि सौ प्रतिशत सही है ।
“आप की कुंडली बता रही है कि आप बहुत ही कामुक प्रवृति के व्यक्ति हैं और आपके कई स्त्रियों से सम्बन्ध हैं । क्या यह सही है ?
मैंने कहा कि आपको अपने ज्योतिष पर विश्वास है ? उसने कहा बिलकुल ! आज तक मेरी बातें गलत नहीं निकली ।
मैंने कहा कि यदि आप इस जन्म की बात कर रहें हैं तो कम से कम एक स्त्री से ही मिलवा दीजिये मुझे । आज तक तो किसी स्त्री ने सम्बन्ध बनाना तो दूर मेरी तरफ देखा तक नहीं । अब यदि आप पिछले किसी और जन्म की बात कर रहें हैं तो कह नहीं सकता क्योंकि मुझे पिछला जन्म याद नहीं ।
ज्योतिषी सोच में पड़ गया और अंत में बोला “आपने जो विवरण दिया है वही गलत है और चूँकि कई हज़ार साल से आप तपस्या पर बैठे हैं इसलिए आपको ठीक से याद नहीं है । वैसे भी फेसबुक साधना करने वालों को कुछ याद रहता नहीं है….”
मैं मुस्कुराया और उसे विदा कर दिया शुभकामनाओं के साथ ।
तो ज्योतिष गलत नहीं होता केवल उसे कैसे आप व्याख्या करते हैं वह गलत हो सकता है । यदि मेरी कुंडली में अत्याधिक कामुक होने की बात लिखी है तो कारण यही है कि ऐसा हो सकता था लेकिन हुआ नहीं क्योंकि मेरी दिशा बदल गई । मैं यदि किसी ऐसी संगत में होता जहाँ मुझे सुविधाएँ मिली हुई होती, या किसी करोडपति बाप का बेटा होता तो सम्भव था कि ऐसा होता ।
यदि किसी की नजर में आप कामुक (Sexy) हैं, तो गलत नहीं है । क्योंकि कामुकता स्वाभाविक व प्राकृतिक गुण है बिलकुल वैसे ही, जैसे किसी के रूपवान, बलवान या धनवान होना । यदि कामुकता को सही दिशा मिल जाए तो अच्छा दाम्पत्य स्थापित हो जाए । व्यक्ति सृजनात्मक, अन्वेषक, आध्यात्मिक और सकारात्मक मानसिकता का होगा ।किन्तु यदि दिशा विहीन हो जाए तो बैराग्य, जीवन के प्रति उदासीनता और पलायनवादी हो जाएगा । और यदि विकृत हो जाए तो कारावास का योग निश्चित है । -विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
