अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हम कितनो को क्षमा करते हैं?

किसी को किसी की भूल के लिए क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है. क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक सुख पाता है. अगर सोचा जाये तो छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी ग़लती को कभी भी Past में जा कर संवारा नहीं जा सकता , उसके लिए क्षमा से अधिक कुछ नहीं माँगा जा सकता है.
अगर आप किसी की भूल को माफ़ करते हैं तो उस व्यक्ति की सहायता तो करते ही हैं, साथ ही साथ स्वयं की सहायता भी करते हैं. क्षमा करने के लिए व्यक्ति को अपनी Ego से ऊपर उठ कर सोचना पड़ता है जो कि एक कठिन काम है और सिर्फ एक सहनशील व्यक्ति ही इसे कर सकता है.
कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हम कितनो को क्षमा करते हैं और कितनो से क्षमा पाते हैं. कितना आसान है किसी से एक शब्द Sorry कह कर आगे निकल जाना और बदले में अपने आप ही ये सोच लेना कि उस व्यक्ति ने हमे माफ़ भी कर दिया होगा.
क्या होता अगर हमारे माता- पिता हमारी भूलों के लिए हमें क्षमा नहीं करते?
क्या हो अगर ईश्वर हमें हमारे अपराधों के लिए क्षमा करना छोड़ दे ?
अगर हम किसी को क्षमा नहीं कर सकते तो, ईश्वर से अपने लिए माफ़ी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?
किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि किसी को किसी की भूल के लिए माफ़ ना करना बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे ज़हर खुद पीना और उम्मीद करना कि उसका असर दूसरे पर हो. अगर क्षमा नाम का परोपकार इस दुनिया में ना हो तो कोई किसी से कभी प्रेम ही नहीं कर पायेगा
~ विशुद्ध चैतन्य
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