सावन का महिना और बिजली विभाग की उदारता

सावन का महिना हो और उनमें वर्षा न हो यह कैसे संभव हो सकता है ?
कल रात को शुरू हुई वर्षा दिन भर रुक रुक कर होती रही और साथ दे रही थी तेज हवा जो पेड़ पौधों के साथ अठखेलियाँ कर रही थी । पेड़ पौधे भी मानो किसी अनजान नशे में मस्त हो झूम रहें थे। बिजली विभाग ने भी अपना भारतीय धर्म निभाया और पूरे दिन बिजली बंद करके हमें अपने उस स्वर्णिम युग को याद करने और उसे जीने का अवसर प्रदान किया, जब लाईट नहीं हुआ करती थी और हम सब केवल दिव्य ज्ञान के प्रकाश से ही काम चला लेते थे ।
यह तो नास्तिक और अज्ञानी अंग्रेजों (जिनको का वेदों की समझ और न ही रामायण-महाभारत या उपनिषदों की समझ) की वजह से ही बिजली विभाग के भाव बढे हुए हैं । यदि उन्होंने बिजली का अविष्कार नहीं किया होता तो आज भी हम ऐतिहासिक स्वर्णिम युग में ही होते।
हमारे शास्त्रों में तो बिजली से लेकर कंप्यूटर तक और सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी कुछ बनाने की विधियाँ पहले ही लिखी जा चुकी थी। लेकिन हमने उन विधियों का कभी प्रयोग केवल इसलिए नहीं किया क्योंकि हमें उसकी आवश्यकता ही नहीं थी और हम स्वर्णिम युग को खोना नहीं चाहते थे ।
ईश्वर ने हमें मानव शरीर दिया ताकि हम ध्यान-भजन करके ब्रम्हज्ञान, मोक्ष और ईश्वर को प्राप्त करें । दुनिया की समस्याएँ कम करने में योगदान करना या किसी विपत्ति में पड़े व्यक्ति की सहायता करना हमारा काम थोड़े न है । ये तो अंग्रेज थे जिन्होंने भक्ति और भजन कीर्तन की शक्ति को नहीं पहचाना और बिजली बल्ब जैसी व्यर्थ की चीजों को बनाने में अपना जीवन नष्ट कर दिया ।
इन महामूर्ख लोगों को क्या पता कि ब्रम्हज्ञान का प्रकाश क्या होता है और उसकी शक्ति क्या होती है । लेकिन मैं बिजली विभाग का आभारी हूँ कि मुझे एक बार फिर से अपने गौरवमय युग का अनुभव करने का सुनहरा अवसर दिया ।
यह सब देख कर किसी समय के मेरे मोस्ट फेवेरेट गाने मेरे भीतर फिर गूंजने लगे । क्या आप जानना चाहेंगे कि वे गाने कौन से हैं जो मुझे बचपन में पसंद थे और आज भी हैं ?
ये गीत ऐसे गीत हैं जिसमें गीतकार, संगीतकार, गायक/गायिकाओं ने दिमाग की नहीं दिल और आत्मा की आवाज़ सुनी और उन्हें ही अपना काम करने दिया है और स्वयं कुछ न करके केवल होने दिया और स्वयं श्रोता बन गए परम शक्ति के कलाप्रदर्शन के ।
~ विशुद्ध चैतन्य
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