धर्म और आस्तिकता के विरुद्ध अभियान का दुष्परिणाम
देखा है मैंने, जो अनपढ़ होते हैं, जिन्हें अँग्रेजी नहीं आती, जिनके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ नहीं होतीं, वे सब आस्तिक और धार्मिक होते हैं। इसीलिए वे परस्पर सहयोगी समाज में रहते हैं।
और जब तक लोग अनपढ़, आस्तिक और धार्मिक थे, तब तक मान्यता थी कि यदि आपका पड़ोसी भूखा है और आप के गले से निवाला उतर जाता हो, तो निश्चित मानिए आप इंसान नहीं शैतान हैं। मेरा विश्वास न हो, तो मेरी ही उम्र के उन बुजुर्गों से पूछिये कि उनके गाँव का समाज कैसा था।
लेकिन फिर एक दिन लोग पढ़े-लिखे हो गए, अंबेडकरवादी हो गए और आस्तिकता और धर्म के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया। अभियान इतना प्रभावी रहा कि अब आस्तिक और धार्मिक खोजने पर भी नहीं मिल रहे।
आज स्थिति यह हो गयी कि पढ़े-लिखे डिग्रीधारियों की जनसंख्या बढ़ गयी, अंबेडकरवादियों, मोदीवादियों, गांधीवादियों, गोडसेवादियों, पैगंबरवादियों, पार्टीवादियों…. व अन्य वादियों की जनसंख्या बढ़ गयी। जबकि आस्तिकों और धार्मिकों का आस्तित्व ही संकट में पड़ गया।
आप धर्म के विरुद्ध हैं, आप आस्तिकता के विरुद्ध हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं। लेकिन यह तो बताइये कि अधर्मी और नास्तिक होने के बाद भी क्या अपने ही समाज को सरकार व माफियाओं गुलामी से मुक्त करवा पाये ?
ऐसा कौन सा काम है जो धार्मिकों और आस्तिकों का समाज करता है, लेकिन नास्तिकों और अधर्मियों का समाज नहीं करता ?
क्या आपने अपने समाज के युवाओं को समझाया कि देश व जनता को लूटने व लुटवाने वाली सरकारों और माफियाओं की चाकरी करना अपने ही समाज व देश से विश्वासघात करना है ?
क्या नास्तिक और अधार्मिक समाज कभी लंगर, भंडारा करवाता है ?
जब भी ऐसी कोई खबर सामने आती है, तब सोचता हूँ कि समाज, सरकार, आस्तिक और धार्मिकों का आस्तित्व क्या पूर्णतः लुप्त हो गया ?
क्या अब इस सृष्टि में केवल नास्तिकों, लुटेरों, देश बेचने वालों और उनके सहयोगियों का ही साम्राज्य बचा है ?
सत्य तो यही है कि नास्तिकता प्रचार अभियान इतनी जोरशोर से चला कि आस्तिकों का नामो निशान मिट गया।
सत्य तो यह है कि अधर्मियों ने धर्म को इतना कोसा कि धर्म और धार्मिकता लुप्त हो गयी।
ये खबर प्रमाण है कि अब धार्मिक लोग समाज में नहीं पाए जाते, बाजारों और सड़कों में नहीं पाए जाते, भीड़ में नहीं पाए जाते। संभवतः अपना आस्तित्व बचाने के लिए मेरी ही तरह किसी एकांत में दुबक गए हैं।
चलिये जो हुआ अच्छा ही हुआ। सारी दुनिया धर्म और आस्तिकता से मुक्त होकर नास्तिक और अधार्मिक होना चाहती थी, सो हो गयी और प्रमाण आपके सामने है।
अब नास्तिक और अधर्मी खुश हैं कि उन्हीं का साम्राज्य है, उन्हीं की सरकार है। अब धार्मिक और आस्तिक लोग दिखाई नहीं पड़ते कहीं नास्तिकों और अधर्मियों के भय से।
यदि एक भी आस्तिक या धार्मिक व्यक्ति इस दुखी लड़की के आसपास होता, तो निश्चित मानिये अखबार को ऐसी खबर मिलती ही नहीं छापने के लिए।
करिएगा चिंतन-मनन कभी फुर्सत में कि समाज को नास्तिक और अधार्मिक बनाने से किसे लाभ हुआ और किसे हानि ?