पारम्परिक संन्यास और आश्रम नहीं हैं अधर्म और अधर्मियों के विरुद्ध

वर्तमान आश्रम को त्यागने से संबन्धित जो पोस्ट लिखा था, उसे पढ़कर बहुत से लोगों ने संपर्क किया मुझसे और अलग अलग आश्रमों में आमंत्रित किया। सभी का हृदय से आभार।
लेकिन यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जितने भी रेडीमेड आश्रम हैं वर्तमान में, सभी की अपनी अपनी आइडियोलॉजी हैं, सभी के अपने-अपने सिद्धान्त हैं। और लगभग हर आश्रम को आज ऐसे भगवाधारियों, साधू-संन्यासियों की आवश्यकता है, जो नमूना बनकर बैठे रहें आश्रम में, जय जय करते रहें, कमाकर लाएँ और आश्रम का मेनेजमेंट संभालें।
ऐसे साधू-संन्यासियों की कोई कमी भी नहीं है, जो अच्छे खासे पढे-लिखे हैं और साधू-संन्यासी बने घूम रहे हैं। उनमें से कई एमबीए हैं, कई डॉक्टर हैं, कई इंजीनियर हैं, कई प्रोफेसर हैं, कई सीए हैं और उनमें आश्रम का मेनेजर बनने के सभी गुण हैं। ऐसे ही लोगों को आमंत्रित करें अपने आश्रमों में तो वे अच्छे से संभाल भी लेंगे।
लेकिन मेरे जैसे सरफिरों से ऐसी कोई भी अपेक्षा न रखें।
क्योंकि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ इसलिए डिग्रीधारियों की तरह गुलामी करने, अधर्मियों, देश लूटने और बेचने वालों और उनके समर्थक, सहयोगियों के सामने नतमस्तक रहने की ट्रेनिंग नहीं ले पाया कभी। न ही मैं ऐसा कोई धार्मिक, आध्यात्मिक गधा हूँ कि कोई भी उलूल जुलूल परम्परा, मान्यता धर्म और आध्यात्म के नाम पर मुझ पर लादकर समाज का आदर्श बना दे।
वैसे भी मेरी कोई रुचि नहीं है समाज का आदर्श या सम्मानित बनने में। क्योंकि जो समाज देश व जनता के सामूहिक बलात्कारियों के सामने नतमस्तक रहता हो, उनकी जय करता हो, देश लूटने और बेचने में उनका सहयोगी बनता हो, ऐसे समाज से मिले मान सम्मान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते।
पारम्परिक आश्रमों में टिक नहीं पाता हूँ और न ही वे मुझे बर्दाश्त कर सकते हैं। क्योंकि पारम्परिक आश्रमों में वे ही लोग पाये जाते है, जो भोजन, भजन, शयन और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीते हैं। या फिर वे लोग जो समाज सेवा, धर्म और आध्यात्म का व्यवसाय करते हैं।
ऐसा कोई भी आश्रम अभी तक मेरे संज्ञान में नहीं आया, जो अधर्म के विरुद्ध हो, जो देश लूटने और बेचने वालों के विरुद्ध हो।
मैंने जन्म लिया है अधर्मियों, अत्याचारियों, उत्पातियों, देश व जनता को लूटने व बेचने वालों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए, निर्बलों, शोषितों के हितों के लिए खड़े होने के लिए। अर्थात धर्म के पक्ष में और अधर्म के विरुद्ध रहूँगा आजीवन। और इस कार्य में बहुत से विरोधी भी खड़े होंगे और बहुत बार प्रताड़ित भी होना पड़ेगा मुझे।
तो जो भी आश्रम अधर्म के विरुद्ध नहीं है, अत्याचारों के विरुद्ध नहीं है, शोषण और अन्याय के विरुद्ध नहीं है, ऐसे आश्रम के लिए मैं बोझ ही बनूँगा। मेरी वजह से उन्हें भी अपमानित होना पड़ेगा और अधर्मी, अत्याचारी लोग दबाब बनाएँगे कि मुझे आश्रम से निकाल दें।
इसीलिए मैं अब अपने लिए स्थान की खोज में हूँ, जहां स्वामित्व मेरे अधीन हो। जहाँ वैसे ही लोग हों मेरे साथ, जो हर परिस्थिति में साथ खड़े हों। ऐसे लोग हों, जो अधर्म व अत्याचार के विरुद्ध संग्राम में मेरे सहयोगी बने, न कि आलोचक या निंदक।
मैं अपने लिए जमीन का छोटा सा ऐसा टुकड़ा खोज रहा हूँ, जहाँ मैं इतनी सब्जियाँ और अनाज उगा सकूँ कि मुझे किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता ना पड़े। सोलर सिस्टम भी लगवाऊंगा ताकि सरकारी बिजली पर निर्भर न रहना पड़े।
सारांश यह कि पारम्परिक संन्यास व आध्यात्म ही नहीं, शिक्षा व्यवस्था के भी विरुद्ध हूँ मैं, क्योंकि ये सभी अधर्म के विरुद्ध नहीं हैं। ये सभी अधर्म व अधर्मियों के सामने नतमस्त्क होना सिखाते हैं, विरोध करना नहीं।
इसीलिए पारम्परिक संन्यास और आध्यात्म से मुक्त एक ऐसी व्यवस्था बनाऊँगा जो अत्याधुनिक, उन्नत किन्तु आत्मनिर्भर हो। जहाँ से स्वतंत्र रूप से अधर्मियों व अत्याचारियों के विरुद्ध आवाज उठा सकूँ, लिख सकूँ बिना किसी अवरोध के।
~ विशुद्ध चैतन्य
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