जो आप पाना चाहते हैं उसपर ध्यान केन्द्रित कीजिये
एक समय था जब आज की कई जानी पहचानी हस्तियों को कोई जानता नहीं था और न हम जानते थे कि कोई इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचेगा, तब हम आपस में कितने अजनबी हो जायेंगे। एक छोटा सा स्टूडियो और उसमें हर रोज किसी न किसी का आना… शुभा मुद्गल हों, शांतनु मोइत्रा, पलाश सेन, शिबानी कश्यप, प्रदीप दा, इंडियन ओशन के ऑशिम और राहुल, शेरोन लोयन, सुनिधि चौहान, सोनू निगम….. ये कुछ ऐसे नाम थे जो उस समय हमारे स्टूडियों से जुड़े हुए थे। गर्मियों में लाईट चली जाती थी तो रिसेप्शन में किस्से कहानियों का दौर चला करता था….लेकिन समय के साथ सभी आज ऊँचाइयों पर पहुँच गये।
जो महत्वपूर्ण बात इन सभी में देखी मैंने वह यह कि सभी अपने अपने धुन में मगन थे। अपने काम को बेहतर से बेहतर करना चाहते थे और उसके लिए कई कई टेक देने को तैयार रहते थे। मुझे याद है एक गाने की रिकॉर्डिंग में मैंने शुभा जी से एक ही गाने १५ टेक लिए और १५वें टेक के बाद शुभा जी नाराज होकर सिंगिंग बूथ से बाहर आ गयीं। लेकिन जब मैंने उन पंद्रह टेकों को एक साथ सुनाया और एक राजस्थानी लड़कियों के ग्रुप सोंग की तरह वह गीत उभर कर आया तब वे भी खुश हुईं।
जब सुनिधि चौहान मेरे पास पहली और आखरी बार आई थी तब, जब उसके पिता धनञ्जय जी एक डेमो बनवाना चाहते थे और वह तब 11-12 साल की थीं। जब रिकार्डिंग हो रही थी तो हर गाने के रिकार्डिंग के बाद वह आती और सुनती थी और फिर पूछती थी कि कहीं कोई सुर गलत तो नहीं लगा न ? और मैं कहता था कि ठीक ही है तो वह कहती नहीं, फिर से गाऊँगी और फिर वही गाना दोबारा गाती थी। जब तक उसे यह नहीं कह देता कि वाह !!! परफेक्ट…!!! और जब वह जाते समय पैर छू कर आशीर्वाद लेने आई तब मेरे मुँह से निकला था, “बहुत ही जल्द तुम बहुत ही ऊँचाई पर पहुँचोगी।”
एक बात तो तय है कि जब आप की आत्मा और मन एक ही सुर-ताल पर बंधे हों तो सफलता निश्चित है। आपको अपने काम को स्वयं ही जाँचना और मीन-मेख निकालना आना चाहिए। आप एक ही धुन पर २४ घंटे खोये रहते हो यही तपस्या है और यही साधना है। आपका काम क्या है और कैसा है यह महत्वपूर्ण नहीं होता, महत्वपूर्ण होता है कि आप अपने काम को कितना महत्व देते हैं।
कई सन्यासियों और साधकों को देखता हूँ कि निकले तो ईश्वर की प्राप्ति के लिए हैं, लेकिन उनका ईश्वर केवल मूर्ति में ही सिमट कर रह गया है। वे मूर्ति के सामने तो सच्चे भक्त बने होते हैं और मूर्ति या मंदिर के पीछे जाकर गोल्ड फ्लेक या नेविकट फूंक रहे होते हैं, शायद उन्हें लगता है कि भगवान की आँखे पीछे तो हैं नहीं तो देखेंगे कैसे। कई संत तो भक्तों को देखते ही संत हो जाते हैं और बाकी समय…..!!!
कई मित्र कहते हैं कि जब वे लोग इतनी ऊँचाई पर पहुँच गए तो आप क्यों पीछे रह गए ? आप क्यों पैसे-पैसे को मोहताज़ भटक रहे हो ?
भौतिक दृष्टि से देखूं तो मैंने कोई उपलब्धि हासिल नहीं की, लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में जो उपलब्धि मुझे प्राप्त हुई है उससे मैं संतुष्ट हूँ। इस लम्बी और नीरस एकांकी यात्रा में कई बार अपने साथियों के चर्चे अखबारों में पढ़कर सोचता था कि क्या मैंने रास्ता गलत चुना है ?
लेकिन फिर कहता कि यह रास्ता तो मैंने स्वयं नहीं चुना है, यह तो परिस्थितियों ने मुझे धकेल दिया है। शायद तब मैं दुनिया को समझ रहा था और अब आध्यात्म को। भौतिक दृष्टि से मुझे कोई सुख या उपलब्धि प्राप्त हो न हो, पर यह जो ज्ञान मैंने अब तक प्राप्त किया उसका चाहे इस जीवन में कोई योगदान हो न हो, अगले जीवन में अवश्य ही काम आएगा। इसलिए मैं किसी प्रकार की जल्दबाजी में नहीं हूँ।
वर्जिन ग्रुप के संस्थाप्क Richard Branson ने एक बार कहा था, “मैंने कभी पैसे कमाने के लिए काम नहीं किया, मैंने वही किया जो मुझे अच्छा लगा या जो उस समय मैं कर सकता था”।
और मैंने जितने उस समय के साथियों के नाम बताये वे सभी इसी सिद्धांत पर थे। उन्हें अपना काम पसंद था और वे यह नहीं सोचते थे कि उन्हें पारिश्रमिक कम मिला या अधिक, बस उन्हें तो स्टूडियो में आकर परफोर्म करना अच्छा लगता था।
अपने इस जीवन यात्रा में ऐसे लोगों से भी मिला, जो बहुत ही अच्छे कलाकार थे। लेकिन वे पारिश्रमिक को लेकर बहुत ही परेशान रहते थे और आज भी वे परेशान हैं और वहीँ हैं। उनकी असफलता का कारण था कि वे पैसों के लालच में आये थे न कि कला उनकी आराधना या साधना थी। उनहोंने सीखा केवल यह देखकर कि एक शिफ्ट में एक आर्टिस्ट को इतने मिल जाते हैं तो अगर मुझे महीने के दस शिफ्ट मिल गई तो एक मोटी तनख्वाह बन जाती है।
तो आप सभी से निवेदन है कि आज यदि आप बेरोजगार हैं या किसी ऐसे कामों में फंसे हुए हैं जो आपको पसंद नहीं है लेकिन मजबूरी में कर रहें हैं, तो उस पर पुनर्विचार कीजिये कि इस परिस्थति में आप कौन सा ऐसा काम कर सकते हैं जो आपको संतुष्टि देता है। चाहे थोड़ा सा समय ही दें, लेकिन दें अवश्य। फिर चाहे वह काम किसी पेड़ के नीचे जाकर सोने का ही क्यों न हो, वह भी व्यर्थ नहीं है यदि आप को उससे संतुष्टि मिलती है तो। रही दुनिया की बात तो दुनिया का काम है बोलना और बोलती रहेगी, चाहे आप कुछ करो या न करो। लेकिन आपका दुःख-दर्द बाँटने नहीं आने वाली।
मूलमंत्र यह कि जो आप पाना चाहते हैं उसपर ध्यान केन्द्रित न कर उस पर ध्यान लगाइए जो आपको अच्छा लगता है। आपका वही शौक आपको आपकी मंजिल पर पहुँचा देगा।