कई हज़ार साल पहले मैं भी घनघोर नास्तिक था

कई हज़ार साल पहले मैं भी घनघोर नास्तिक था। मैं भी अत्याधुनिक नास्तिकों की तरह अकड़ कर चलता था और हर पंडित विद्वान् आचार्यों से प्रश्न करता था कि जब ईश्वर की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता तो दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वह क्या ईश्वर की मर्जी से ही हो रहा है ?
क्या ईश्वर की मर्जी से ही हो रहा है ?
क्या ईश्वर ही अत्याचार करवा रहा है, ईश्वर ही बलात्कार करवा रहा है, ईश्वर ही आतंकवाद फैला रहा है….?
वे बेचारे केवल इतना ही कहते कि तेरे से तो बात करना ही बेकार है। लेकिन किसी ने मुझे कभी भी सही उत्तर नहीं दिया क्योंकि उनका ज्ञान उधार का था। उन्होंने वही कहा जो सुना या पढ़ा, न कि समझा और जाना। यदि जानने की कोशिश की होती तो अवश्य जान जाते कि सत्य क्या है ? लेकिन भेड़-बुद्धि और तोता ज्ञान से ज्ञानी बने लोगों ने ऋषियों की इस महत्वपूर्ण सत्य को समझने की कोशिश नहीं की।
मैंने कई हज़ार साल एकांत में रहकर तपस्या की और जाना कि सत्य क्या है। वह आज आपको भी बता रहा हूँ।
ईश्वर की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता
यह सत्य है कि ईश्वर की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता। ठीक वैसे ही जैसे बिजली के बगैर कंप्यूटर नहीं चलता। अब आप कहेंगे कि कम्पुटर तो बैटरी से भी चलता है। लेकिन मैं फिर भी कहूँगा कि कंप्यूटर बिजली से ही चल रहा है। आप कहेंगे कि सोलर एनर्जी से कंप्यूटर चला सकते हैं, तो मैं कहूँगा कि तब भी बिजली से ही चल रहा है। क्योंकि कंप्यूटर को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि सोर्से क्या है, उसे तो बिजली चाहिए चलने के लिए चाहे सूरज से पैदा करो या बैटरी से।
जब ईश्वर की मर्जी से ही सब कुछ होता है तो….?
अब दूसरा प्रश्न था कि जब ईश्वर की मर्जी से ही सब कुछ होता है तो….? बिजली से ही यदि कम्पुटर चलता है तो…?
हर कंप्यूटर मैं अपने अपने प्रोग्राम होते हैं लेकिन मुख्य होता है कंप्यूटर का motherboard, प्रोसेसर, रेम, ग्राफिक कार्ड, डिस्प्ले और OS। ये सभी चीजें प्राणियों में भी होती हैं। अब आप बैटरी (धर्म, संप्रदाय, पंथ) से चलाओ या सोलर एनर्जी (आध्यात्म) से चलाओ, उर्जा तो ईश्वरीय ही चाहिए। जो ईश्वर से विमुख करे वह इस ईश्वरीय कंप्यूटर का सत्यानाश करता है। जब कंप्यूटर आप घर लेकर आते हैं, यानी जब बच्चा पैदा होता है तो आप अपनी पसंद का प्रोग्राम उसमें डालते हैं। कोई अकाउंट का तो फोटोशोप तो कोई विडियो एडिटिंग तो कोई ऑडियो एडिटिंग… पसंद सबकी अपनी अपनी लेकिन बच्चा तो बच्चा है। जो आपने सिखाया वह समझ गया और उसी अनुरूप काम करना शुरू कर दिया।
बचपन में आपने उसे सिखाया दूसरे धर्मों से नफरत करना तो वह सीख गया और जब बड़ा हो गया तो बदलने का कोई उपाय नहीं। बचपन में उसे गालियाँ देते समय नहीं रोका तो बड़े होने पर कोई उपाय नहीं….. इस तरह प्रत्येक कम्पुटर एक ही बिजली से चलते हुए भी अलग अलग कार्यो को कर रहें हैं और परिणाम है कि हम एंटीवायरस (कानून) बनाकर समाधान ढूँढ रहें हैं।
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