साधना और स्व की पहचान

कहते हैं, यह कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। मैं एक घने जंगल में साधना कर रहा था। न किसी से मिलना, न बोलना, न खाने-पीने की चिंता और न ही कमाने की। बस एक ही जगह स्थिर होकर अपनी साधना में लीन था। साधना क्या थी? फेसबुक पर अपने विचार लिखना। वर्षों इसी तरह बीत गए।
एक दिन, एक व्यक्ति मेरे पास आया। वह उत्सुक था, शायद जिज्ञासा के वश या कुछ पाने की उम्मीद से। उसने कहा, “महाराज! आपने इतने वर्षों तक तपस्या की है। निश्चय ही आपने कोई अद्भुत सिद्धि प्राप्त की होगी। क्या आप हमें कोई चमत्कार दिखा सकते हैं?”
मैंने शांत मन से उत्तर दिया, “आपको कैसा चमत्कार देखना है?”
वह बोला, “महाराज, यदि यहाँ रुपयों का ढेर खड़ा कर दिखा दो, तो मैं मान जाऊँगा कि आप सच्चे तपस्वी हैं।”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं कर सकता।”
यह सुनते ही वह क्रोधित हो गया। उसकी आँखों में आक्रोश था और शब्दों में तिरस्कार। वह बोला, “तो इसका मतलब है कि आप एक ढोंगी हैं! आप न तो चमत्कार कर सकते हैं, न ही कोई काम करते हैं। सारे दिन-रात फेसबुक पर बैठे रहते हैं। आपसे अच्छा तो वह सड़क का जादूगर है, जो दो रुपये के नोट को सौ बना देता है। और वो छोटू ?? जो चाय बेचकर अपने परिवार का पेट पालता है ??? वह भी आपसे बेहतर है!”

“आपने सही कहा कि वे सभी मुझसे अच्छे हैं। आप भी मुझसे अच्छे हैं। लेकिन आप न तो मेरे जैसे हैं और न ही मैं आपके जैसा। मैं, केवल मैं हूँ, आप केवल आप हैं और छोटू केवल छोटू है। सबके अपने अपने कर्म हैं और सभी अपने अपनी जगह श्रेष्ठ।
लेकिन प्रश्न अब यह उठता है कि जब इतने सारे अच्छे लोगों से आप कुछ नहीं सीख पाए तो मेरे पास क्यों आये ?
क्या आप जानते नहीं थे कि मैं जंगल में अकेला रहता हूँ और बेरोजगार हूँ ?
कामचोर इतना हूँ कि अपने लिए खाना भी नहीं बनाता, अपने कपड़े नहीं धोता और वर्षों तक नहाता भी ?” मैंने प्रतिप्रश्न किया।
“जी मुझे क्या सारी दुनिया जानती है इस बात को तो। मैं तो इसलिए आया था कि शायद आपके शरण आने पर कोई आशीर्वाद मिल जाए और मेरा भला हो जाए।” उसने थोड़ा नरम होते हुए बोला।
“जब मैं अपना ही भला नहीं कर पाया, तो आपका भला कैसे कर सकता हूँ ?
जब इतने सारे भले लोग आपको मिले और वे भला नहीं कर पाए आपका, तो मैं निकम्मा आपका भला कैसे कर सकता हूँ ?
और मैं यदि आपका भला कर दूंगा, तो मैं ढोंगी पाखंडी नहीं रहूँगा ?
मैं तब सिद्ध बाबा हो जाऊँगा ?
केवल आपके लोभ व स्वार्थ की पूर्ति करके मैं महात्मा हो जाऊँगा ?
नहीं चाहिए मुझे ऐसी सिद्दी और प्रसिद्धि। आप को जो समझना हो समझिये और जाइए यहाँ से। मैं न तो जादूगर हूँ और न ही छोटू और न ही भिखारी। मैं वही हूँ जो मुझे होना चाहिए था। मैं किसी से भीख मांगने भी नहीं जाता। मेरी साधना मैंने तय की है और उसे कैसे करना है वह भी मैं ही तय करूँगा आप कौन होते हैं मुझे सिखाने वाले कि मुझे साधना कैसे करनी है और कैसे नहीं ? यदि आपको साधना का इतना ही ज्ञान है तो आप स्वयं कीजिये किसी दूसरे की साधना क्यों भंग करना चाहते हैं ?” मैंने थोड़ा गर्म होते हुए कहा।
“फिर महाराज आप मुझे भी सिखा दीजिये न ये फेसबुक साधना ?” उसने हाथ जोड़ कर कहा।
“जिस दिन आप स्वार्थ से मुक्त हो जायेंगे उस दिन कोई भी साधना करेंगे शुभ ही होगा। फिर आप फेसबुक साधना करें या ट्विटर साधना करें या कोई और साधना करें।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
उसने हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और एक रूपये का सिक्का मेरे चरणों में रखकर चला गया।
सारांश यह कि प्रत्येक व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य से आता है और उसके कार्य का समय और स्थान भी निश्चित रहता है। व्यक्ति भ्रमित रहता है क्योंकि समाज और शिक्षा कभी उसे अवसर नहीं देती कि वह स्वयं को जान पाए। समाज उसे हमेशा दूसरों का उदाहरण देता रहता है जिससे वह कभी स्वयं का सम्मान नहीं कर पाता और दूसरों का जीवन जीने लगता है। परिणाम यह होता है कि वह सारे भौतिक सुख सुविधाएं तो पा जाता है लेकिन अपने केंद्र से भटक जाता है। फिर एक दिन ऐसा भी आता है कि उसके पास सबकुछ होते हुए भी खालीपन महसूस करता है और कुछ लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं। जैसे कि पिकासो, मर्लिन मुनरों….. आदि विश्वविख्यात हस्तियों ने किया।
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Very nice