नेकी कर दरिया में डाल

अक्सर जब बात होती है हक़ की तो कहा जाता है कि मांगने से नहीं मिलता, छीनना पड़ता है। जब छीनने की परंपरा पर हम अपना पैर रख देते हैं तो कल कोई हमसे छीन लेगा क्योंकि हम उसी की कड़ी में हैं। लेकिन यदि हम सहयोगी होने की परम्परा को अपनाएँ तो हम उस कड़ी में जुडी जाते हैं जहाँ से छीनने वाला ही हानि उठाएगा।
उदाहरण के लिए आपके पास चार रोटियाँ तो है, लेकिन सब्जी नहीं है। हो सकता है कि किसी के पास सब्जी हो लेकिन रोटी न हो। आप बिना सब्जी के रोटी खाकर भी पेट भर सकते हैं और दूसरा केवल सब्जी खाकर भी पेट भर सकता है। इसमें कोई समस्या नहीं है।
यदि आप केवल इतना सोच पायें कि यदि एक रोटी कम खाता हूँ तो कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं खड़ी होगी, लेकिन जिसके पास केवल सब्जी ही है उसका पेट तो उस सब्जी से नहीं भरेगा। इसलिए यदि एक रोटी उसे दे देता हूँ तो उसका भला हो जाएगा। आप उसे एक रोटी दे देते हैं और हो सकता है कि वह आपको वापस धन्यवाद भी न दे। हो सकता है कि भूख के कारण वह कुछ और न सोच पाए ?
लेकिन अगली बार जब उसे सब्जी मिलेगी तो वह आपको अवश्य ढूँढेगा क्योंकि प्रकृति ने यह नियम निश्चित किया हुआ है कि यदि कोई निःस्वार्थ किसी का सहयोग करता है तो उसे भी सहयोगी मिल ही जाएगा।
हो सकता है कि भविष्य में वह व्यक्ति आपको न मिले लेकिन कोई दूसरा व्यक्ति आपको अवश्य मिल जाएगा जो आपको सब्जी दे जाएगा और मुड़कर भी नहीं देखेगा।
अपने ही जीवन की एक घटना बताता हूँ।
उन दिनों मैं कभी बस स्टेशन और कभी रेलवे स्टेशन में सोता था तो कभी फुटपाथ पर। कहीं भंडारा होता तो खा लेता और नहीं तो हफ्ते भर तक कुछ नहीं मिलता था खाने को। भीख माँगना, चोरी करना, किसी से कुछ छीनना हमारे वंश की परम्परा कभी रही नहीं, इसलिए भूखे मरना मंजूर था, लेकिन भीख मांगने का साहस नहीं जुटा पाया कभी। कई दिनों तक कहीं नहाने की व्यवस्था न हो पाने के कारण और भूख के मारे मुझाये चेहरे से मैं खानदानी भिखारी दिखने लगा था।
तो उसी समय की बात है कि मैं एक मंदिर में बैठा हुआ था और एक सभ्रांत परिवार मेरे पास आया और दो ब्रेड पकौड़ा और सब्जी दी और साथ ही हलवा भी दिया। महिला ने अपने पर्स से दस का नोट निकाला और वह भी मेरे हाथ में रख दिया। भूख के मारे आंते सिकुड़ चुकीं थी इसीलिए एक ही पकौड़ा खिलाया गया और हलुआ पूरा खा लिया। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और एक पकौड़ा बचा कर रख लिया कि रात के खाने में काम आएगा यदि भूख सहन न हुई तो वर्ना कल खाऊंगा।
मैं वहाँ से थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे बैठा दावत कि खुशियाँ मना रहा था कि एक भिखारिन अपने गोद में एक बच्चे को लिए मेरे पास आई और हाथ फैला दिया। मैंने उसे घूर कर देखा और बोला, “अरे मांगने के लिए मैं ही मिला हूँ …?” कुछ और कहता उससे पहले वह आगे बढ़ गई। समझ गई थी कि यहाँ कुछ नहीं मिलेगा।
लेकिन न जाने इस बीच मेरे भीतर से किसी ने कहा कि तेरे पास जो दस रूपये हैं वह तो भीख में ही मिला है। क्या तू भिखारी हो गया जो भीख में मिले पैसे भी नहीं दे सका उसे ? तुझे भूख लगी थी तो खिला दिया और तू दस रूपये के लालच में आ गया ? कभी तू रुपयों की परवाह नहीं करता था लेकिन आज तुझे ये दस रूपये से मोह हो गया…. ? मैं तुरंत उठा और उस औरत को दस रूपये दे आया।
रात को स्टेशन में भटक रहा था हमेशा की तरह और सोच रहा था के ब्रेड पकौड़ा जो बचा है उसे अभी खाऊँ या कल। (यह भूख भी बहुत अजीब चीज होती है उसे पता होता है कि आपके पास कुछ खाने को बचा हुआ है और जब तक उसे हजम नहीं कर लेती शान्ति से बैठने नहीं देती)
अभी इसी उधेड़बुन में था तभी एक नव युवक आया और बोला कि कुछ खाना चाहते हो ?
मैंने उसकी शक्ल देखी और पूछा कि भाई क्यों खिलाना चाहते हो और मैं तो तुम्हे जानता भी नहीं। वह बोला कि अकेले खाने की आदत नहीं है इसलिए पूछा। मैं कोई जवाब देता इससे पहले वह चला गया। मैं भी आगे बढ़ गया और लोगों को आते जाते देखने लगा और सोचने लगा कि सारी दुनिया भाग रही है न जाने कहाँ पहुँचाना चाहती है…. इसी बीच वही युवक मुझे अपने बिलकुल सामने नजर आया और बोला जल्दी पकड़ो जल्दी पकड़ो बहुत गर्म है…
मैंने देखा उसके हाथ में गरमा गरम नान और सब्जी के दो पत्तल हैं। मैंने एक पत्तल ले ली और दोनों वही एक शांत जगह देख कर बैठ गये। खाना ख़त्म होने के साथ ही वह बोला कि अभी यहीं रुको और वह चला गया। थोड़ी देर बाद फिर आया नान और सब्जी के साथ। उसने अपना खाना जल्दी ख़त्म कर लिया लेकिन मेरे खाने की प्रेक्टिस छूट गयी थी, इसलिए मैं धीरे धीरे खा रहा था तो काफी अभी बचा हुआ था। उसने पूछा कि और खाओगे ? मैंने मना कर दिया। वह बोला अच्छा चलता हूँ मेरी ट्रेन आने का समय हो गया और वह हाथ हिला कर चला गया।
यह घटना मेरे उस विश्वास को बल देने में सहयोगी हुआ कि यदि आप किसी के लिए बिना कामना किये कुछ करते हैं तो कोई दूसरा भी आपकी ही तरह इस दुनिया में होगा जो आपसे जल्दी ही मिलेगा। और आज तक मेरे साथ ऐसा ही होता आ रहा है।
जरा सोचिये यदि मैं दस रूपये बचा लेता तो दस रूपये में कितना खाना मिलता मुझे दिल्ली जैसे शहर में ?
– विशुद्ध चैतन्य
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