आदिकालीन कम्बल धर्म का

मेरे लिए सन्यास का अर्थ है सभी जाति व धर्म के बंधनों से मुक्ति। मेरे लिए सन्यास का अर्थ है निर्णय लेने की स्वतंत्रता। मेरे लिए सन्यास का अर्थ है कि अब न तो मैं पंडित हूँ और न ही क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र या आदिवासी। मैं मनुष्य हो गया हूँ सन्यास लेने के साथ ही। मैं उन कम्बलों से मुक्त हो गया हूँ जिन्हें कई हज़ार वर्षों से हमें ओढ़ाया जा रहा था बिना धोये।

न जाने कितने खटमल उन कम्बलों में कितनी ही पीढ़ियों से हमारा खून चूसती आ रहीं थी और न जाने कितने ही लोग उन कम्बलों में कितनी ही तरह की बीमारियों को झेलते हुए उसी कम्बल के भीतर सड-मर गए। लेकिन किसी ने कभी नहीं सोचा कि कम से कम एक बार उस कम्बल को सूर्य के प्रकाश में तो निकाल लें, कम से कम एक बार उसे धो तो दें…
जिन लोगों ने कोशिश की तो उन्हें पागल या फिर धर्म-द्रोही घोषित कर दिया गया या मार दिया गया। आज भी लोगों को उसी कम्बल में रहना और उसके लिए लड़ना झगड़ना रास आता है। जिसको देखो वही दूसरों के कम्बल में दोष ढूंढ रहा है, लड़ने के बहाने ढूंढ रहा है, लेकिन अपने कम्बल से बाहर निकल कर उजाले में आने को तैयार नहीं है।
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