समाज सेवा एक भ्रम है
देखा है मैंने समाज सेवा करने वाले सेवियों को दाने-दाने के लिए मोहताज़ होते हुए। देखा है मैंने समाज सेवियों को बेबस और लाचार तड़पकर मरते हुए। देखा है मैंने समाज सेवियों को अकेले संघर्ष करते हुए और जिनके अपनों ने भी साथ छोड़ दिया। देखा है मैंने ऐसे समाज सेवियों को भी जिनके लिए लड़े, उन्होने ने ही किनारा कर लिया बुरे वक्त में।
जानते हैं क्यों ?
क्योंकि जब समाज का ही कोई आस्तित्व नहीं। और केवल भीड़ को समाज समझकर सेवा करने पर परिणाम नकारात्मक ही आता है।
समाज और भीड़ में जमीन आसमान का अंतर होता है।
समाज ऐसे लोगों के समूह से बनता है, जिसमें लोग परस्पर सहयोगी होते हैं। क्योंकि समाज का प्रत्येक प्राणी पारिवारिक सदस्यों की तरह होते हैं। लेकिन आज तो परिवार में भी केवल भीड़ दिखाई देती है, परिवार कहीं दिखाई नहीं देता।
मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ, जिन्होंने जीवन में कठिन संघर्ष किया, दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन किया, सार्वजनिक शौचालय साफ किया, एक-एक पैसा जोड़ा तब जाकर आज वे एक अच्छी लाइफ जी रहे हैं। लेकिन उनके संघर्ष के दिनों में उनके अपने ही सगे-संबंधी काम नहीं आए। जब वे समृद्ध हो गए, तो वही सगे-सम्बन्धी बेशर्मी से पैसे माँगने पहुँच जाते हैं।
तो भेड़ों और जोम्बियों की भीड़ को समाज समझने वाले आजीवन दुख भोगते हैं। और यह मैंने अपनी आँखों से देखा है अपने ही परिवार में। इसीलिए कभी भी समाज सेवक बनने का सपना नहीं देखा। हाँ जो कुछ गलत दिखता है उसका विरोध करता हूँ, यह एक अलग बात है। क्योंकि ज़िंदा हूँ अभी तक, इसीलिए देश को लुटता-पिटता देख मौन रहने वाली जनता की तरह ज़िंदा लाश यानि ज़ोम्बी नहीं बना अभी तक।
फिर पिछले कई वर्षो से निरंतर लिखता आ रहा हूँ हर विषय पर, चाहे वह राजनीति हो, चाहे धर्म हो। लोगों ने बहुत मज़ाक उड़ाया, गालियाँ दी, धमकियाँ दी, यहाँ तक कि सोशल साइट पर रीच घटा दी, वेबसाइट सस्पेंड करवा दिया। ऊपर से लोग पूछते हैं कि बेसर-पैर के लेखों से समाज को सुधार दोगे ?
कई वर्षों के अनुभवों के बाद यह समझ में आया कि लिखने से किसी का भला नहीं होने वाला। न मेरे लेखों से उनके जीवन में कोई परिवर्तन आया, न राजनैतिक पार्टियों और देश व जनता को लूटने व लुटवाने वालों की जयकारा लगाने वालों में कोई कमी आयी और न ही मुझे ही आर्थिक लाभ या अन्य कोई लाभ हुआ। मेरे लेखों की प्रशंसा करने वालों ने तो मेरी किताब तक नहीं खरीदी,
समय के साथ बुरे से बुरे लोगों के सहयोगी बढ़ते हैं, प्रशंसक बढ़ते हैं। यहाँ तक कि देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के लिए तन-मन-धन सबकुछ न्योछावर करने वालों की भीड़ बढ़ती चली जाती है। लेकिन मेरे साथ बिलकुल उल्टा होता है। लोग जुडते हैं कुछ दिन पढ़ते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। क्योंकि मेरे लेखों से उन्हें कोई लाभ नहीं होता। और स्वाभाविक है कि जब कोई लाभ ही न हो, तो जुडने का क्या लाभ ?
मैंने भी अब तय कर लिया है कि लिखो तो केवल उनके लिए, जो वास्तव में पढ़ना और चिंतन-मनन करना चाहते हैं। बाकी टाइम-पास टाइप लोगों को अपने लेखों से दूर ही रखना चाहता हूँ। इसीलिए अपने इस नए ब्लॉगसाइट के अधिकांश लेखों को प्राइवेट करने जा रहा हूँ जल्दी ही।
इससे लाभ यह होगा कि मुफ्त में पढ़कर गालियाँ देने वाले और कोसने वालों से मुक्ति मिलेगी। दूसरा लाभ यह होगा कि मेरे ब्लॉगसाइट को मेंटेन करने के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था हो जाएगी। और तीसरा लाभ यह होगा कि अनावश्यक वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं होगा।
वैसे भी आज गृहस्थ हो या साधु-संन्यासी, सभी पैसों के पीछे ही दौड़ रहे हैं। जिसके पास पैसा नहीं, उसे लोग मुफ्तखोर, हरामखोर कहना शुरू कर देते हैं। और यह स्वाभाविक भी है ऐसे समाज में, जहां करोड़ों पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार भटक रहे हों, करोड़ों लोग भुखमरी में जी रहे हों, वहाँ कोई बिना कुछ कमाए चैन से जी रहा हो, तो अखरेगा ही। इसीलिए बहुत से बेरोजगार लोग समाज सेवा करने निकल पड़ते हैं। खुद के खाने का ठिकाना नहीं, घर में बीवी बच्चे भूखे पड़े हैं और निकले हैं समाज सेवा करने।
लेकिन मैं समाज सेवा करने नहीं जा रहा और भविष्य में कभी करूंगा भी नहीं। फिर भी यदि आप लोग मुझे पढ़ते रहना चाहते हैं, तो कृपया मेरा ब्लॉग साइट VishuddhaChintan को अवश्य Subscribe करिए।