निःशुल्क बाबा और स्वार्थियों का समाज

कई हज़ार वर्ष पुरानी घटना है। किसी राज्य में एक बहुत ही पहुँचे हुए, शायद वाया हिमालय अमेरिका तक पहुँचे हुए संत रहते थे। लोग उन्हें निःशुल्क बाबा के नाम से जानते थे, क्योंकि वे किसी से कुछ भी नहीं लेते थे।
लाखों की भीड़ उनके दर्शन के लिए आती थी। क्योंकि वे एकमात्र ऐसे बाबा थे, जो निःशुल्क सहायता किया करते थे।
धीरे धीरे उन्हें घमण्ड हो गया कि लाखों लोग उनके भक्त हैं, उनके फॉलोवर्स हैं। फेसबुक, ट्विटर पर भी उन्हें बहुत लाइक्स और कॉमेंट्स मिला करते थे।
एक दिन शिवजी उनके सामने प्रकट हुए और उनसे कहा, “वत्स! निःस्वार्थी होना बुरा नहीं है, लेकिन जिस भीड़ से तुम घिरे हुए हो, क्या वे भी निःस्वार्थी हैं ? जिन भक्तों और फ़ॉलोअर्स को तुम अपना समझे बैठे हो, जिन पर तुम्हें बड़ा गर्व है, अभिमान है, क्या कभी उनकी परीक्षा भी ली है ?
निःशुल्क बाबा बोले, “परीक्षा किस बात की ? लाखों लोग रोज आते हैं, मेरी जय जय करते हैं, इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि वे मेरे प्रति समर्पित हैं ?”
शिवजी बोले, “तो चलो मुझे भी देखना है कि वे सब तुम्हारे प्रति कितने समर्पित हैं। करना तुम्हें केवल इतना है कि कुछ दिनों के लिए तुम निःशुल्क बाबा से सशुल्क बाबा बन जाओ। अर्थात जो भी आये दर्शन करने, उनसे शुल्क लेना शुरू कर दो। बाहर नियॉन लाइट वाला बोर्ड टांग दो कि आज से निःशुल्क सेवा बन्द। जो भी मिलना चाहता है, उसे शुल्क चुकाना होगा।”
निःशुल्क बाबा राजी हो गए और बोर्ड टंगवा दिया।
सुबह से लेकर शाम हो गयी, लेकिन दर्शन के लिए कोई नहीं आया। आश्रम के बाहर बहुत भीड़ थी लेकिन भीतर कोई नहीं आ रहा था।
एक दिन, दो दिन, तीन दिन…और देखते देखते महीना बीत गया। एक भी व्यक्ति नहीं आया। निःशुल्क बाबा को बहुत आश्चर्य हुआ और साथ ही दुखी भी हुए।
शिवजी बोले दुखी मत होओ, आओ थोड़ा शहर घूम आते हैं। दोनो भेस बदलकर शहर पहुँचे। वहाँ निःशुल्क बाबा के विषय में चर्चा हो रही थी। लोग कह रहे थे, बाबा ढोंगी हो गया, पाखण्डी हो गया, मोह-माया में पड़ गया, धन का लोभी हो गया। अब जनता की सेवा, सहायता करने का शुल्क लेने लगा है।
निःशुल्क बाबा का घमण्ड टूट गया और शिवजी के पैर पकड़ लिया और बोले, “भगवन आपने मेरी आँखें खोल दी। मैंने मुफ्तखोरों को अपना भक्त समझ लिया था।”
शिवजी बोले, “स्वार्थियों, लोभियों के समाज में आप तभी तक अच्छे हैं, जब तक मुफ्त की सेवा करोगे, मुफ्त राशन बाँटोगे, मुफ्त दवा बाँटोगे। लेकिन जिस दिन भी आपने बदले में थोड़ा भी धन माँग लिया, आप ढोंगी, पाखण्डी घोषित हो जाओगे। क्योंकि समाज स्वयं ढोंगी, पाखण्डी है। लेकिन अपना ढोंग-पाखण्ड समाज को कभी दिखाई नहीं पड़ता।”
निःस्वार्थियों को सामान्य जनों से अधिक कष्ट सहना पड़ता है, अधिक दुःख भोगना पड़ता है। इसलिए नहीं कि वे सामान्य जनों की तुलना में कम बुद्धिमान या योग्य होते हैं। बल्कि इसलिए क्योकि वे यह नहीं सीख पाते कि स्वार्थियों के समाज में निःस्वार्थी होना महापाप है।
देखा होगा आप सभी ने कि महंगे-महंगे अस्पतालों, स्कूलों, कॉलेजों में लोग अपने गहने जेवर, जमीन बेचकर स्वेच्छा से लाइन लगाते हैं। लेकिन निःशुल्क स्कूलों, अस्पतालों में लोग मजबूरी में जाते हैं।
क्योंकि स्वार्थियों का समाज ना तो निःशुल्क सेवा और सहायता के प्रति सम्मान का भाव रखता है और ना ही उसके प्रति विश्वास और समर्पण का भाव रखता है। मुफ्त में मिल रही है, इसलिए लगा लेते हैं, भले आवश्यकता हो या ना हो।
कथासार यह कि स्वयं को कष्ट या संकट में डालकर परोपकार करना मूर्खता है। यदि समर्थ और समृद्ध व्यक्ति या समाज भी मुफ्तखोरी कर रहा है, तो ऐसे व्यक्ति या समाज को निःशुल्क सेवा या सहयाता नहीं देनी चाहिए किसी भी परिस्थिति में। ऐसे लोग मतलब निकल जाने पर परोपकारी व्यक्ति को ही भला-बुरा कहेंगे, गलियाँ देंगे। लेकिन जैसे ही इन्हें अपना स्वार्थ सिद्ध होता नजर आएगा, तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदलकर चापलूसी शुरू कर देंगे।
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