हाँ मेरी भावनायें तब अवश्य आहत होती हैं जब….

किसी पोस्ट के कॉमेंट पर आनन्द मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनन्दमूर्ति (प्रभात रंजन सरकार) के नाम के आगे डबल श्री लगाए बिना मैंने केवल आनन्दमूर्ति लिख दिया। तो एक आनन्द मार्गी की भावना आहत हो गयी। उनका कहना था कि मैं आनन्दमूर्ति के नाम के आगे डबल श्री नहीं लगाकर आनन्दमूर्ति का अपमान किया है।
अब मान लीजिये ईशनिन्दा कानून लागू हो चुका होता भारत में भी, तो मुझे भी जेल भिजवा सकते थे आनन्दमार्गी अपने आराध्य के अपमान के अपराध में ?
जबकि हम तो अपने ईश्वर के आगे भी श्री श्री नहीं लगाते सामान्य बोलचाल में। जैसे कि “हरे राम, हरे कृष्ण” कीर्तन करते समय ना सिंगल श्री लगा है, न डबल श्री।
कल कोई ट्रिपल श्री लगा दे अपने आराध्य के नाम के आगे या 10 + श्री लगा दे और एक भी श्री कम कह या लिख दिया किसी ने तो वह पहुँच जाएगा कोर्ट में ईशनिन्दा के केस दर्ज करवाने। तब क्या होगा ?
अब जरा इनसे पूछिये कि जो इनके आराध्यों ने सिखाया है, क्या उसका रत्तीभर भी अनुसरण कर रहे हैं ?
सत्य तो यह है कि आराध्यों, आदर्शों के दिखाये मार्ग पर न चलकर, ईशनिन्दा की नौटंकी करने या उत्पात मचाने से बड़ी ईशनिन्दा और कोई हो ही नहीं सकती। और यह ईशनिन्दा स्वयं उनके अनुयाई ही करते हैं, कोई दूसरा नहीं।
मैं स्वयं को अब सभी दड़बों से मुक्त कर चुका हूँ
और अंत में केवल यही कहना चाहता हूँ कि मैं स्वयं को अब सभी दड़बों (किताबी धार्मिकों के सम्प्रदायों) से मुक्त कर चुका हूँ। इसीलिए आप चाहे जिस भी दड़बे से संबन्धित हों, केवल मुझे जानकारी दे दीजिये कि मेरे किसी लेख से आपके दड़बे के किसी भी प्राणी की भावनाएं आहत होती हैं, मैं उस दड़बे से संबन्धित सभी कुछ भूल जाऊंगा। कभी नाम भी नहीं लूँगा और न ही कभी उस दड़बे से संबन्धित किसी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध ही रखूँगा।
आपका दड़बा आपको मुबारक, मैं तो सनातनी हूँ, मुक्त हूँ, किसी दड़बे में कैद नहीं और इसीलिए मेरी भावनाएं कभी आहत नहीं होतीं, किसी भी आराध्य या देवी देवता के अपमान से। हाँ मेरी भावनाएं तब अवश्य आहत होती हैं, जब आपके दड़बे के लोग देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध आवाज निकालने में भी थर्राते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
अगर आदमियों को सत्य मिल जाएगा तो शैतान का क्या होगा?
मैंने सुना है…
एक बार एक आदमी को सत्य मिल गया था, तो शैतान के शिष्यों ने, वे जो डिसाइपल्स ऑफ डेविल हैं, उन्होंने भाग कर शैतान को अपने गुरु को खबर दी कि पता है, तुम आराम से सो रहे हो, एक आदमी को सत्य मिल गया है और हमारी सल्तनत डगमगाई जा रही है।
कुछ करना चाहिए शीघ्रता से।
क्योंकि अगर आदमियों को सत्य मिल जाएगा तो शैतान का क्या होगा?
शैतान ने कहा कि क्या करोगे, अब सत्य मिल चुका।
तुम पहले कहां थे, क्यों मुझे आकर पहले नहीं कहा, हम पहले ही सत्य मिलने में बाधा डालते।
अब तो एक ही रास्ता है, अब तुम जाओ शीघ्रता से गांव-गांव में और डंडे और घंटी लेकर पीटो, गांव-गांव में यह आवाज कि फलां आदमी को सत्य मिल गया है जिनको भी चाहिए हो चलो।
शैतान के शिष्यों ने कहाः इससे क्या होगा?
शैतान ने कहाः
*पंडित और मुल्ले सुन लेंगे यह और जहां भी उन्हें पता चला कि किसी आदमी को सत्य मिल गया है, पंडित और मुल्ले वहां जाकर अड्डा जमा लेते हैं और एजेंट बन जाते हैं।*
*जनता और सत्य के बीच में पंडित से बड़ी दीवाल और कोई भी खड़ी नहीं की जा सकती है।*
तुम जाओ और जल्दी गांव-गांव में खबर कर दो।
और मैंने सुना है कि शैतान के शिष्य गए और उन्होंने गांव-गांव में खबर कर दी।
हजारों लोग वहां से चलने लगे।
उस सत्य के खोजी के पास, उसके आस-पास पंडितों की दीवाल खड़ी हो गई।
व्याख्याकारों की, टीकाकारों की। वे कहने लगे, क्या चाहते हो, हम बताते हैं। वह आदमी उस भीड़ में दब गया।
मंदिर बन गया वहां एक उसकी लाश पर। हजारों लोग पूजा करते हैं उस आदमी की।
उसकी किताबें हैं। लेकिन उस आदमी को, जो सत्य मिला था, उसकी कोई किरण किसी तक अभी तक नहीं पहुंच पाई है।
दुनिया में सत्य की हत्या का एक ही उपाय है, सत्य की हत्या करना हो तो शीघ्रता से संप्रदाय बना दो। संप्रदाय बना कर सत्य की हत्या हो जाती है।
– ओशो (Zorba The Buddha)
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