देशभक्ति और नौकरी परस्पर विरोधी है
सत्ता हथियाने के लिए सैनिकों की बलि देना कोई नयी घटना नहीं है, प्राचीनकाल से यही होता आ रहा है। किसी सरफिरे शासक की हवस को पूरी करने के लिए लाखों सैनिकों और नागरिकों को बलि का बकरा बनाकर मौत की नींद सुला दिया जाता है। इन बेचारों को आजीवन नहीं समझ में आता कि सैनिक देश के लिए नहीं, शासकों के लिए जान देते और लेते आए हैं और यही करते रहेंगे अनंतकाल तक।
अधिकांश लोग सेना में केवल इसलिए जाना चाहते हैं, क्योंकि अच्छी सेलेरी और मान-सम्मान मिलता है। मारे भी गए किसी कारणवश, तो शहीद की उपाधि मिलती है।
शूद्रों (सेवकों) और गुलामों का कर्तव्य है आज्ञाओं का पालन करना
लेकिन सत्य तो यह है कि देशभक्ति और गुलामी परस्पर विरोधी है। शूद्रों (सेवकों) और गुलामों का कर्तव्य है आज्ञाओं का पालन करना, फिर आज्ञा देने वाले देश व जनता के लुटेरे ही क्यों न हों। फिर आज्ञा देने माफिया और नरपिशाच ही क्यों न हों।
यदि नौकरी पर संकट न दिखता, तो युवा अग्निपथ और अग्निवीर की घोषणा के साथ सड़कों पर दंगे न कर रहे होते। बल्कि वैसे ही शांत रहते, जैसे देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों ने नरपिशाचों के आदेश पर, जब प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर पूरे देश को बंधक बनाया था तब चुप थे। प्रायोजित महामारी से आतंकित कर पूरे देश को ही नहीं, पूरे विश्व के नागरिकों, पशु-पक्षियों का सामूहिक बलात्कार और शोषण किया, तब भी ये देशभक्त भावी सैनिक शांति से तमाशा देखते रहे। क्योंकि इन्हें अपनी नौकरी सुरक्षित दिखाई दे रही थी।
किसी भी सरकारी या निजी संस्थान के सेवकों ने विरोध नहीं किया और जो थोड़े बहुत विरोध पर उतरे भी, तो उनका साथ नहीं दिया। बहुत से नेता लोग अलग अलग विषयों और समस्याओं पर आंदोलन और धरना प्रदर्शन कर जनता का ध्यान मूल समस्याओं से भटकाते रहे, क्योंकि देश से किसी को प्रेम नहीं था। सभी व्यक्तिगत स्वार्थों के हितों के लिए संगठित हो रहे थे।
“कल्पना करिए कि बिना कोई ट्रेनिंग के ही आगजनी और पत्थरबाजी करने वाले ज़ोम्बी इतना आतंक मचा देते हैं, तो 4 वर्ष अग्निवीर की ट्रेनिंग के बाद सड़कों पर छुट्टा छोड़ेंगे, तब वे कितना आतंक मचाएंगे ?” ~ विशुद्ध चैतन्य
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सदैव स्मरण रखें:
विवशता में की गयी नौकरी चाहे वह सेना की नौकरी ही क्यों न हो, देशभक्त नहीं बना सकती। क्योंकि विवशता का देशभक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं। देशभक्त होने के लिए सेना में जाने की आवश्यकता नहीं, कोई भी कहीं भी किसी भी परिस्थिति में देशभक्त हो जाता है, जब वह व्यक्तिगत स्वार्थों, राजनैतिक पार्टियों, धर्म व जातियों के ठेकेदारों की गुलामी से मुक्त हो जाता है।