या तो आप शिकारी हैं या फिर शिकार

सोशल मीडिया पर आपकी प्रसिद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि आप झूठ के साथ हैं या सत्य के साथ। आप धर्म के पक्ष में हैं या अधर्म के पक्ष में। आप न्याय के पक्ष में हैं या अन्याय शोषण और अत्याचार के पक्ष में। और इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह कि आप देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के पक्ष में हैं या विरोध में।
यदि आप रिबेल हैं, आप विरोधी प्रवृति के हैं, तो सोशल मीडिया में आप एक अंजान चेहरा बनकर रह जाओगे। क्योंकि सोशल मीडिया आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है। और आर्टिफ़िशियल यानि नकली बुद्धिमानी पर आधारित तकनीकों का मालिक जनता व देश का हितैषी तो हो नहीं सकता। उसका तो उद्देश्य ही दुनिया को लूटना, लुटवाना और गुलाम बनाकर रखना। तो भला वह शक्ति विरोधियो को उभरने कैसे दे सकती है।
मेरे जैसे बहुत से मूर्ख हैं, जो इस भ्रम में जीते हैं कि सोशल मीडिया में फॉलोवर्स अधिक हैं, क्योंकि वे बहुत ही अच्छा लिखते हैं, या बहुत ही महत्वपूर्ण कुछ कहते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि लोग केवल टाइमपास करने आते हैं। मनोरजन मिलता है, तो तालियाँ बजाकर, वाह उस्ताद, वाह उस्ताद के फुग्गे उछाल कर निकल जाते हैं। और मेरे जैसे मूर्ख जीवन भर भ्रम में जीते हैं कि हमने बहुत कमाल कर दिया।
जबकि कमाल यह नहीं कि आपके आसपास कितनी भीड़ इकट्ठी हो गयी, कमाल यह है कि आपके साथ कितने ऐसे लोग जुड़े, जो निःस्वार्थ आपके सहयोगी बने। कमाल यह है कि आपने कितने इन्सानों को चैतन्य बनाया, कितने इन्सानों को भेड़चाल से मुक्त किया, कितने इन्सानों को शिकार बनने से बचाया।
और ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है कि सभी को बचाना है, सभी को जगाना है। क्योंकि ऐसा करना भी प्रकृति के विरुद्ध हैं और फिर ऐसा कर पाना संभव भी नहीं। यदि सभी को शिकार होने से बचा लेंगे, तो फिर शिकारी तो बेमौत मारे जाएँगे ?
ईश्वर ने सृष्टि रची ही है परस्पर निर्भरता पर आधारित। कोई शिकार करेगा, कोई शिकार होगा। भले आप कितना ही नेक काम कर रहे हों, कोई न कोई आपका शिकार करने के लिए घात लगाए बैठा ही होगा। और दुनिया में मानव निर्मित कोई भी चीज यदि फ्री में मिल रही है, तो निश्चित मानिए कि कोई शिकारी शिकार के लिए जाल बिछाए बैठा है।
आप भलाई करने के लिए भी फ्री में कुछ दे रहे हैं, तो आप शिकार ही खोज रहे हैं।
या तो आप शिकारी हैं, या फिर शिकार
दुनिया शिकार और शिकारियों से मिलकर बनी है। या तो आप शिकारी हैं, या फिर शिकार। जो शिकार होगा, वह हिरण, गाय और खरगोशों की तरह शरीफ, सात्विक शाकाहारी होगा। लेकिन जो शिकारी होगा, वह सर्वभक्षी होगा।
शिकार थोक में जनसंख्या वृद्धि करते हैं ईश्वर की मर्जी मानकर। जबकि शिकारी ईश्वर की मर्जी से नहीं, अपनी मर्जी से चलते हैं। इसलिए वे बहुत ही कम बच्चे पैदा करते हैं। क्योंकि शिकारी जानते हैं कि अधिक बच्चे पैदा करने पर शिकार बन जाने की संभावना अधिक रहती है। जैसे कि मछलियाँ, चूहे, खरगोश आदि की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ती है।
केवल शिकारी ही नहीं, जो चैतन्य हैं, जो जागृत हैं, जिन्होंने सत्य को जान लिया है, वे भी भीड़-भाड़ से दूर रहते हैं, एकांत पसंद करते हैं। अधिकांश अविवाहित रहते हैं या फिर बहुत ही कम बच्चे पैदा करते हैं।
शिकारी जानते हैं कि उन्हें चुस्त-दुरुस्त रहना है, क्योंकि कोई न कोई शिकारी उनकी भी घात में बैठा होगा। और जिस दिन अवसर मिला, उसी दिन शिकार कर लेगा।
शिकार और गुलाम बन चुके हैं बड़े-बड़े संगठन, संस्थाएं और रिलीजन यानि सम्प्रदाय
आज आपको खून चाहिए होता है आपातकाल में, तो आप किसी राजनैतिक पार्टी या विधायक को फोन नहीं करते। बल्कि सोशल मीडिया में अपने मित्रों से सहायता मांगते हैं। क्योंकि आप भी जानते हैं कि राजनैतिक पार्टियां और नेता शिकारी हैं या फिर शिकारियों के पालतू ज़ोम्बी।
देखा होगा आपने सड़कों के किनारे असहाय, गरीब, बीमार लोगों को भीख मांगते हुए। लेकिन ईशनिन्दा और बेअदबी के नाम पर दंगा-फसाद करने वाले संप्रदायों को ये लोग दिखाई नहीं देते। ये लोग उन्हें भी दिखाई नहीं देते, जो स्वयं को समाज सेवक कहते हैं, जिन्होंने समाज और देश सेवा के लिए बड़ी बड़ी पार्टियां और संगठन बना रखे हैं।
वहीं आप देखेंगे कि कोई एक या दो व्यक्ति या कोई छोटा सा समूह इनकी देखभाल करता नजर आएगा। वे लोग इन्हें भोजन दे रहे होंगे, वे लोग इन्हें कपड़े और कंबल दे रहे होंगे। वे लोग ही इनकी बीमारियों का इलाज भी कर रहे होंगे। आप इन्हें देखेंगे और आगे बढ़ जाएंगे। हो सकता है कि आपमें से कोई इन्हें सौ पचास रुपए कि सहायता भी कर दे। लेकिन कभी सोचा है कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियां, संगठन, संस्थाएं और मजहब यानि रिलीजन यानि सम्प्रदाय इनकी सहायता क्यों नहीं कर पातीं ?
क्योंकि बड़ी संगठन, संस्थाएं, पार्टियां, आदि सब शिकार हो चुके हैं। अब वे सब गुलाम हैं, उनके जो नरपिशाच हैं, जो दुनिया को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। जिनके लिए इन्सानों का महत्व उतना ही है, जितना मुर्गों, बकरों और भेड़ों का महत्व है कसाइयों के लिए। यही कारण है कि जब तक व्यक्ति अकेला है, तब तक उसमें मानवता यानि इंसानियत मिलती है। लेकिन जैसे ही वह भीड़ से घिरने लगता है, या किसी बड़ी संगठन या संस्था में शामिल हो जाता है, मानवता उसमें लुप्त होने लगती है। और वह भी नरपिशाचों के सुर में सुर मिलाने लगता है। जैसे कि सेना, पुलिस, सरकार, राजनैतिक पार्टियाँ, WHO, Red Cross Society, UN आदि सब आज गुलाम हैं नरपिशाचों के। इनमें आपको मानवता अब देखने नहीं मिलेगी। और स्वाभाविक है की शिकारी और शिकारियों के सहयोगियों के दिलों में करुणा, प्रेम दया का भाव पैदा हो जाये, तो वह शिकार करेगा कैसे ?
और एक अच्छा शिकारी बनने के लिए आपको नास्तिक होना पड़ेगा, आपको अधार्मिक होना पड़ेगा जैसे ही कि हमारे देश की सरकारे, राजनैतिक पार्टियाँ और सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अधार्मिक होते हैं, अधर्मी होते हैं।
और जब बड़ी बड़ी ताक़तें, अधार्मिक हैं, अधर्मी हैं, नरपिशाच बन चुकी हैं या फिर नरपिशाचों की सहयोगी हैं, तो आप स्वयं सोचिए कि जो धर्म के पक्ष में होगा, जो न्याय और सत्य के पक्ष में होगा, उसके लिए अपना आस्तित्व बचाए रखना कितना कठिन होता होगा ?
वह तो बड़े-बड़े शिकारियों के निशाने पर होगा। उसके लिए तो उसके अपने ही लोग घात लगाए बैठे होंगे। वह अपना आस्तित्व बचाए या भेड़ों, बकरियों, जोंबियों बचाए। वो अपनी रक्षा करे या फिर ईमान, ज़मीर, जिस्म बेच चुके गुलामों के पीछे दौड़े कि मत जाओ पिशाचों के पीछे, वे नोच खाएँगे सभी को ?
तो यदि सोशल मीडिया आपका बहिष्कार कर रही है, लोग आपका सहयोग करने से कतराने लगे हैं और फिर भी आपका मन नहीं कहता कि समर्पण कर दो नरपिशाचों के सामने, बेच तो अपना ईमान, ज़मीर, जिस्म। तो फिर समझ जाइए अब आप शिकारी नहीं रहे और शिकारियों का समाज आपको अब सहन नहीं करेगा। अब आपको दूसरों की नहीं, अपनी चिंता करनी है ताकि आपका अस्तित्व बचा रहे।
~ विशुद्ध चैतन्य
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