विशुद्ध चैतन्य: जिससे किसी को कोई लाभ नहीं
विशुद्ध चैतन्य एक ऐसा व्यक्तित्व, जो आज भी उतना ही अवांछित है, जितना आज से दस वर्ष पूर्व था।
लोग जुड़ते हैं बड़ी आस से यह सोचकर कि अमेरिका ना सही, हिमालय तक तो पहुँचा हुआ संत होगा। लेकिन निराशा हाथ लगती है। क्योंकि मैं कोई पहुँचा हुआ संत तो क्या, साधारण इंसान भी नहीं हूँ। मेरी पहुँच तो उतनी भी नहीं है, जितनी सड़क छाप नेताओं, गुंडों, मवालियों की होती है।
साधारण से साधारण इंसान की भी पहुँच अपने दफ्तर तक तो होती ही है। साधारण से साधारण पंडित पुरोहित, मौलवी, पादरी की पहुँच मंदिर/मस्जिद/गिरिजाघर से लेकर ईश्वर अल्लाह, जीसस तक तो होती ही है। मेरी तो वहाँ तक भी पहुँच नहीं है।
तो स्वाभाविक ही है झटका लगना और लोग गधे के सर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं।
आगजनी में पारंगत अग्निवीर से लेकर पत्थरबाजी में पारंगत पत्थरवीरों के भी चाहने वाले होते हैं, रिश्तेदार, शुभचिंतक, सपोर्टर्स होते हैं। लेकिन मेरा कोई नहीं।
अडानी, अम्बानी के ग़ुलाम जुमलेबाजों, जमूरों, जोकरों, और देश व जनता को लूटने/लुटवाने वालों पर मर मिटने के लिए करोड़ों समर्थक और भक्त होते हैं। लेकिन मेरे लिए कोई नहीं।
कारण केवल इतना, कि मैं जुमले सुनाकर मनोरंजन नहीं कर पाता। मैं सड़क या समुद्र किनारे पड़ी प्लास्टिक की बोतल नहीं उठाता। और ना ही नौलखा सूट पहनकर तीस हजारी सब्जी और काजू बादाम की रोटियाँ खाकर विश्वभ्रमण करता हूँ।
लोग पूछते हैं कि आपको ऐसा कौन सा काम आता है, जिससे समाज या देश का भला होता हो ?
लोग पूछते हैं कि आपमें ऐसी कौन सी क्वालिटी है जो बिकाऊ हो ?
और मेरा उत्तर होता है एक भी नहीं।
सच तो यह है कि ना तो मैं कोई नेता हूँ, ना अभिनेता हूँ, ना क्रिकेटर हूँ और ना ही आधुनिक साधु संत जो अच्छी कीमत में बिक जाते हैं।
इसीलिये लोग मुझसे दूर भागते हैं। स्वाभविक ही है। जब देश का बच्चा-बच्चा आज बिकाऊ है। वेतन और पेंशन के लिए देश व जनता को लूटने वाली सरकारों की गुलामी करने को अपना सौभाग्य समझते हैं। गर्व से बताते हैं माता-पिता कि मेरा बच्चा आईएएस, आईएफएस, आईपीएस, आईआरएस बन गया और अब देश और जनता को लूटने वालों की चाकरी करके देश को नीलाम और बर्बाद करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करेगा। तो फिर आप स्वयं सोचिये कौन मूर्ख होगा जो मुझे पसंद करेगा ?
कभी-कभी अपने माता-पिता पर गुस्सा आता है कि क्यों मुझे भी बिकाऊ नहीं बनाया। क्यों नहीं सिखाया ईमान, ज़मीर, जिस्म बेचकर वेतन और पेंशन के लिए मर मिटना ?
सचमुच वहुत ही मनहूस हूँ मैं, बहुत ही दुर्भाग्यशाली हूँ मैं।
हाँ इस बात की खुशी अवश्य है कि यूनिक हूँ मैं। और यह यूनिकनेस ईश्वर से प्राप्त है मुझे किसी नेता, राजनैतिक पार्टी, सरकार या समाज ने नहीं दी है।