लाइक, कमेन्ट या व्यापार
हमारा समाज आज मानवता से मुक्त हो चुका है और शुद्ध व्यापारिक समाज बन गया है। हमारा सोना, उठना, बातें करना, मिलना….. सब व्यापारिक हो चुका है। अब या तो धार्मिकता कम्बल ओढ़े व्यापारी मिलते हैं, या फिर रिश्ते और मित्रों का चेहरा लगाये व्यापारी। समस्या यह हो गयी कि अब हमारे भीतर की आत्मा भ्रम और अन्धविश्वास हो गयी और चूँकि हम पढ़े-लिखे हैं इसलिए…
विज्ञान को महत्व देते हैं। और विज्ञान कहता है कि आत्मा नाम की कोई चीज नहीं होती। इसलिए चूँकि आत्मा नाम की कोई चीज नहीं होती तो उसकी कोई आवाज भी नहीं होती होगी। इसलिए जब भीतर से कोई आवाज देता है, तो हम उसे भ्रम मानकर अनसुना कर देते हैं। हम उसे सत्य मानते हैं जो टीवी में खरीदे हुए गुलाम बताते हैं। हम उसे सही मानते हैं जो बिका हुआ पत्रकार बताता है, हम उसे सही मानते हैं जो किराए के दुमछल्ले बताते हैं, हम उसे सही मानते हैं जो मुर्ख अंधभक्त, धर्म का चोला ओढ़े रंगीन चश्में से दिखाते हैं। क्योंकि विज्ञान कहता है कि यही सत्य है, यही वास्तविकता है।
हमारी आत्मा क्या कहती है वह शायद हमें सुनाई ही नहीं देती, हमारा विवेक भी अब नेताओं और धर्म के ठेकेदारों के पास गिरवी हो गया है और उसका भी प्रयोग हम स्वयं की आवश्यकतानुसार नहीं कर सकते। हमारी पसंद, नापसंद भी अब हम तय नहीं कर सकते…….
यहाँ तक कि फेसबुक जैसे माध्यम पर जो कि निःशुल्क है, वहां भी हम व्यापार करते हैं। हम पोस्ट इसलिए लाइक करते हैं किसी का, ताकि वह भी हमारे पोस्ट लाइक करे। न कि इसलिए की हमें वह पोस्ट पसंद आया इसलिए लाइक कर रहें हैं। कम ही लोग होते हैं जो पोस्ट को समझ कर पोस्ट के अनुरूप कमेन्ट करते हैं, अधिकाँश या तो उल्टियाँ कर रहे होते हैं, या फिर अपनी दूकान का प्रचार करने आते हैं। कुछ लोग टैग करते हैं, जिसका टैग होने वाले व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं होता और न ही उसका वह विषय ही होता है कि वह उसमें कुछ कहे। तो यहाँ सारा काम दिमाग से होता है क्योंकि विज्ञान कहता है कि दिमाग नाम की चीज होती है। उसका नक्शा भी मिल जाता है और फोटो भी मिल जाता है।
लेकिन दुर्भाग्य देखिये, कि मैं आज तक आप पढ़े-लिखों जैसा समझदार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का नहीं बन पाया। स्वार्थी और अहंकारी इतना हूँ कि जब तक किसी का पोस्ट दिल को नहीं छूती, लाइक या कमेन्ट भी नहीं करता। गाली-गलौज के संस्कार हमारे परिवार में कभी रहे ही नहीं इसलिए मुझ में भी नहीं आ पाए, वर्ना मैं भी आप लोगों की तरह ‘गाली बको’ प्रतियोगिता में शामिल होता। नेताओं-अभिनेताओं के पेजों और उनके दुमछल्लों के आईडी में मेरी कोई रूचि नहीं है, क्योंकि उनसे मेरा भोजन-पानी नहीं चलता और न ही वे मुझे या मेरे राष्ट्र के हितार्थ कोई अमूल्य योगादान दे रहे होते हैं। वे जो कुछ कर रहें हैं अपने लिए कर रहें हैं, राष्ट्र और नागरिकों के उत्थान या विकास से उनका कोई लेना देना होता नहीं है। अभिनेता टेक्स अच्छा देते हैं और डोनेशन भी नेताओं को अच्छा देते हैं…. लेकिन वह भी नेताओं के लालन पालन, खरीद-फरोख्त में ही खर्च हो जाते हैं। जनता तक तो पहुँचता ही नहीं है।
फिर ऐसे लोग यदि मित्र सूचि में इस आशा से आते हैं कि मैं उनके नेता-अभिनेता के समर्थन करते दुमछल्लों की सेना में शामिल हो जाऊं और उन्हीं की तरह विरोधियो के पेजों में जाकर गाली-गलौज करूँ तो यह मेरे लिए संभव नहीं है। क्योंकि मैं रुढ़िवादी मानसिकता का व्यक्ति हूँ और आत्मा परमात्मा में विश्वास करता हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं….मीडिया या दुमछल्लों से नहीं समझना मुझे कि क्या लाइक करना है और क्या नहीं। मैं यह भी जानता हूँ कि आप लोग पढ़े-लिखे हैं, बड़ी बड़ी कंपनियों में काम करते हैं, इसलिए आप लोगों के पसंद भी बड़े बड़े होते हैं…. जबकि मैं ठहरा अनपढ़ देहाती….मेरी पसंद भी बहुत छोटी है और वह है राष्ट्रीय एकता और ग्रामीणों का विकास। आप लोग अपने नेताओं और अभिनेताओं के विकास पर ध्यान दें क्योंकि जब तक आपको स्वयम का चेहरा और अस्तित्व नहीं मिल जाता, तब तक तो उनके चेहरे ही काम में आयेंगे। ईश्वर ने मुझे कम से कम इस लायक तो समझा कि उसने मुझे अपना चेहरा और अपनी आत्मा की आवाज सुनने की क्षमता दी। क्योंकि वह जानता था अनपढ़ है यह, तो पढ़े-लिखों की दुनिया में जी नहीं पायेगा, इसलिए इसे तो सनातन धर्म के अनुसार ही जीना होगा बिलकुल वैसे ही जैसे सम्पूर्ण सृष्टि के और अन्य अनपढ़, अधार्मिक जीव जंतु जीते हैं; आपस में सहयोगी होते हुए।
अंत में यह सपष्ट करना चाहूँगा कि मेरे पोस्ट इसलिए लाइक न करें क्योंकि मैं आपके पोस्ट लाइक करूँगा, क्योंकि मैं व्यापारी नहीं हूँ और व्यापारियों से में केवल व्यापारिक विषय पर ही बात करता हूँ। हो सकता है कि मैं कभी लाइक ही न करूँ आपके किसी भी पोस्ट को। इसलिए मुझसे कोई आशा मत रखिये। यहाँ जो कुछ भी मैं लिखता हूँ वह उन मानवों के लिए लिखता हूँ, जो अब लुप्तप्राय हो चुके हैं। मेरी आत्मा मानती है कि अभी भी कहीं न कहीं कुछ लोग ऐसे बचे हैं, जो सौभाग्यवश धार्मिक, नेता, दुमछल्ला, अंधभक्त, व्यापारी, ठेकेदार नहीं बन पाए। जिनमें मानवता किसी कारणवश बची रह गयी। -विशुद्ध चैतन्य