विश्वभ्रमणकारी चक्कर-भर्ती सम्राट चुनमुन परदेसी
इस तस्वीर को देखकर मुझे कई हज़ार वर्ष पुरानी एक कहानी याद आ गयी और साथ ही याद आ गयी वही स्वर्ग के कपड़े पहन कर राज्य की सैर करने निकले राजा की कहानी जो बचपन में सुनी थी । स्वर्ग के कपड़े पहनकर घुमने वाले राजा की कहानी तो आपको याद ही होगी…लेकिन यह बिलकुल ताज़ी नई कहानी जो मैंने अभी अभी लिखी है, वह आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी… लीजिये कहानी सुनिए:
कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है । चुनमुन परदेसी नामक एक महान चक्कर-भर्ती सम्राट हुआ करते थे । उनको देश-विदेश घुमने और महँगे महँगे कपडे पहनने का शौक था । यूँ भी कह सकते हैं कि पर्यटन व वस्त्रों में उनकी बहुत रूचि थी ।
तो वे देश विदेश घूमते नए नए कपड़े पहनकर । अपने खुद के देश में वे तभी घुमने जाते, जब लगान वसूलना होता था या कड़की आ जाती थी । ऐसे ही घूमते घूमते वे शंघाई, टोक्यो, पेरिस आदि शहर पहुँचे । अपने मंत्रियों से पूछा कि क्या हम ऐसा ही सुंदर शहर अपने देश में भी बना सकते हैं ? मंत्रियों ने कहा कि बिलकुल क्यों नहीं बना सकते..आप आदेश करें आपके वापस लौटते ही आपको बिलकुल ऐसा ही शहर बना मिलेगा अपने देश में ।
यह सुनकर सम्राट बहुत खुश हुआ और मंत्रियों को तीस हज़ार रूपये किलो वाली शाही कुकरमुत्ते का सूप एक एक चम्मच पिलाकर धन्य किया और बोले कि तुरंत शहर का निर्माण किया जाए ।
मंत्रियों ने सम्राट से ऐसे शाही इनाम की कल्पना तक नहीं की थी । ख़ुशी के मारे सारे मंत्रियों ने तुरंत अपने अपने फोटोशोप एक्सपर्ट को फोन लगाया और सम्राट का आदेश सुनाया । मंत्रियों ने फोन रखा नहीं कि एक्सपर्ट्स ने नये शहर का निर्माण कर दिया और व्हाट्सएप से तुरंत भिजवा भी दिया नए शहर की तस्वीरें । मंत्री दौड़े दौड़े गये और सम्राट को दिखाया नया शहर व्हाट्सएप पर । सम्राट ने जब अपने नये शहर को देखा तो ख़ुशी के मारे झूम उठे….
जब राजा अपने देश लौटे तो शाही शानो शौकत के साथ सभी मंत्रियों और दरबारियों को लेकर रातों रात तैयार हुए देसी टोक्यो, शंघाई, पेरिस घुमने निकले । लेकिन रास्ते में उन्हें टूटी-फूटी झोंपड़ियाँ, फटेहाल गरीब लोग दिखाई दे रहे थे, तो सम्राट का माथा ठनका । अपने मंत्रियों से पूछा: “यह शहर तो वैसा नहीं दिख रहा जैसे कि तस्वीरों में दिख रहा है । यहाँ झुग्गी झोंपड़ी कहाँ से आ गयीं ?”
मंत्रियों ने समझाया, “दरअसल आप कई दिनों से बिना आराम किये ३६-३६ घंटे काम कर रहे हैं न ? इसीलिए दृष्टिभ्रम हो रहा है । फिर आप अपना कद भी देखें ! आप की ऊँचाई ही इतनी है कि सौ मंजिले इमारतें आपको झुग्गी झोंपड़ी दिखाई दे रहीं है…”
अपनी प्रशंसा सुनकर सम्राट का सीना ख़ुशी से चौड़ा हो गया और फिर पूरे दिन वे अपने नए देसी टोक्यो, शंघाई, पेरिस घूमते रहे गर्व के साथ ।
~विशुद्ध चैतन्य
नोट: यह कहानी पुर्णतः काल्पनिक है, इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या स्थान आदि से कोई सम्बन्ध नहीं है ।