कभी किसी का बुरा मत सोचो

यदि आप सुख चाहते हैं और सुख को समृद्ध करना चाहते हैं, तो कभी भी किसी भी पोजिटिव वाक्य के बाद कुछ भी निगेटिव शब्द न जोड़ें । उदाहरण के लिए, “मैं परीक्षा में सफल होऊँगा”
इस वाक्य के बाद यदि आपने जोड़ा, “ईश्वर ने चाहा तो” या इंशाअल्लाह आदि । यह वाक्य को कमजोर कर देता है । क्योंकि सब्कांशियास माइंड यह अर्थ निकालता है कि आप ने तैयारी पूरी नहीं की है और किसी और के भरोसे बैठे हैं ।
इसी प्रकार यदि कोई नकारात्मक वाक्य मुँह से निकल जाये तो तुरंत सकारत्मक शब्द या वाक्य जोडिए । उदाहरण के लिए, “मैं शायद फेल हो जाउँगा”
ऐसे किसी भी नकारात्मक वाक्य के तुरंत बाद जोड़िये, “लेकिन मैं अगली बार अवश्य पास हो जाउँगा” या “यह मेरा वहम मात्र है लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं पास हो जाउँगा” ।
यह वह प्रयोग हैं जो मैंने स्वयं अपनाए हैं और आज तक अपनाता हूँ । इसलिए कठिन से कठिन परिस्थितयों से बाहर निकलता चला गया और वह सब पाया जो कोई और कल्पना भी नहीं कर सकता था । विश्व के महान संगीतकारों, फिल्म निर्माताओं, गायक, गायिकाओं के साथ काम करने का अवसर मिला, वह सम्मान मिला जो एक बाईस तेईस वर्ष के लड़के के लिय उस उम्र में मात्र सपना ही था । अपनी शर्तों पर काम किया अपनी शर्तों पर जीया और आज तक जी रहा हूँ ।
यह मैंने बहुत ही कम उम्र में सीख लिया था क्योंकि मेरे पिताजी की आदत थी हर अच्छे शुभकार्य या दिवस पर कुछ भी करते थे तो नकारात्मक वाक्य या शब्द जरुर जोड़ते थे । जैसे कि हम सब को बाहर घुमाने ले गये कहीं तो बड़ी ख़ुशी ख़ुशी ले जाते, बहुत खर्च भी करते.. लेकिन शाम जब लौटते तो कहते, “आज तो सारा पैसा खर्च हो गया, न जाने कल ऑफिस कैसे जाउँगा ?” और उसके साथ ही हम सभी की ख़ुशी कपूर हो जाती । हमारे लिए कपड़े लेकर आयेंगे हम सब खुश होंगे और इसी बीच पता चलता कि वे कमरे में सर पकड़ कर बैठे हैं कि जितना सोचा था उससे ज्यादा खर्च हो गया अब महीने भर का खर्चा कैसे चलेगा । तो वे हम सबको खुश रखना चाहते थे, लेकिन उस ख़ुशी में ग्रहण भी लगा देते थे । इसका परिणाम यह हुआ कि पिताजी को आजीवन दुःख भोगना पड़ा । उनके दोनों बेटे उनसे अलग हो गये क्योंकि बेटों ने कभी नहीं कहा कि उनको महँगी चीजें खरीद कर दो, लेकिन वे खुद खर्च करते और फिर जब सर पकड़ते तो हम अपने आप को गुनाहगार मानते थे । उनको कई बार समझाया भी, लेकिन अंत में यही हुआ कि प्रकृति ने हम सबको अलग अलग कर दिया ।
तो नकारात्मक शब्द और वाक्य सकारात्मक शब्द और वाक्य से अधिक प्रभावी होते हैं । इसलिए ही कहते है कि कभी किसी का बुरा मत सोचो, कभी किसी के लिए बद्दुआ मत निकालो । ~विशुद्ध चैतन्य

Support Vishuddha Chintan
