नकली व दिखावटी रिश्ते बनाने से बेहतर हैं कि अकेले रहो
बात उन दिनों की है जब मैं जवानी की दहलीज़ पर कदम रख चुका था । काम ऐसा था कि दो-दो दिन तक दिन की रौशनी देखने नहीं मिलता था, केवल स्टूडियो की लाइट्स और शिफ्टों में आते म्यूजिशियन, सिंगर, प्रोडूसर…बस । उन दिनों कई सिंगर उभर रहे थे, जैसे कि शिवानी कश्यप, पलाश सेन, सुनिधि चौहान, सोनू निगम…आदि और कुछ बैंड्स जैसे इंडियन ओशन, इयुफोरिया… आदि ।
हर रोज इनकी कोई जिंगल रिकार्ड्स होता था और कभी एल्बम के गाने । समय ही नहीं मिला संगीत की दुनिया में खोने के बाद अपनी ही तरफ ध्यान देने का । उन दिनों शांतनु मोइत्रा, प्रदीप सरकार, शुभामुद्ग्ग्ल, शेरोन लोइन का चहेता हुआ करता था तो बस उनकी रिकॉर्डिंग्स बेस्ट होनी चाहिए इससे अधिक कुछ और नहीं सोचता था । उनकी ही नहीं, जितने भी प्रोडूसर उन दिनों मुझसे रिकॉर्डिंग करवाने आया करते थे सभी के लिए बेस्ट करने का प्रयास करता था ।
कई बार यूँ भी लगता था कि अकेली जिंदगी कैसे कटेगी क्योंकि ये लोग आज मेरी वाह वाही कर रहे हैं क्योंकि इनके लिए कुछ बेहतर कर रहा हूँ । लेकिन फिर कल ???
कल मैं अकेला हो जाउँगा कोई पूछने नहीं आने वाला । तब मैं क्या करूँगा ?
काम समाप्त होता अपने फ़्लैट में चला जाता । कभी खाना पैक करवाकर ले जाता कभी खुद बनाता । टीवी देखता विडियो गेम खेलता या फिर ध्यान के कुछ प्रयोग करता । तब कई बार सोचता था कि यदि शादी कर लेता तो..?
किसी विदेशी खबर में पढ़ा था कि लड़कियों को झूठ बोलने वाले अधिक आकर्षित करते हैं । वे जानती हैं कि बाँदा झूठ बोल रहा है, फिर भी जानबूझकर ऐसा दिखावा करतीं हैं कि वह उसे सच मान रहीं हैं । ये उन्होंने सर्वे करके जाना था । लेकिन मेरे साथ कमी थी कि मैं झूठ नहीं बोल पाता था । मैं कभी तारे तोड़कर लाने, फूलों की सड़क बनाने जैसे दावे नहीं कर पाता था । फिर कभी ऐसा अवसर ही नहीं मिला कि किसी लड़की से खुल कर बात कर पाऊँ । एक दो मिली भी तो कुछ दिनों बाद पता चला कि वे तो किसी सरकारी नौकर की खोज में हैं, क्योंकि नौकरी की गारंटी रहती है । लेकिन मुझे सरकारी नौकरी पसंद नहीं थी क्योंकि उसमें कोई चेलेंज नहीं होता था । प्राइवेट में अपनी तरह से काम कर रहा था, मेरे अपने क्लाइंट थे, अपनी ही इज्जत थी, लोग मेरे नाम से ही आते थे…तो मैं यह लाइन नहीं छोड़ना चाहता था ।
धीरे धीरे दिखावों की दुनिया, मतलब की वाहवाहियाँ सब समझ में आने लगीं । मैं शराब के नशे में डूबता चला गया । हालांकि जिस लाइन पर मैं था उस लाइन में शराब तो एक आम बात थी, लेकिन में दिन रात शराब पीने लगा । लोगों से कटने लगा, नौकरी भी केवल इसलिए ही करता था कि मुझे शराब की मेरी आवश्यकता पूरी होती रहे । अब मुझे कोई ऊँचाई नहीं चाहिए थी क्योंकि यदि जीवन अकेले ही गुजारना है तो शराब से बेहतर अच्छा जीवन साथी कोई नजर नहीं आ रहा था । और एक दिन जैसा चाहा वैसा हुआ और मैं फूटपाथ पर आ गया ।
फूटपाथ पर आने के बाद ही जीवन का सही आनन्द मिला । न समय की पाबन्दी, न ब्रोडकास्ट टाइम की हड़बड़ी…जहाँ मर्जी सो जाओ, जब मर्जी उठो, खाओ या न खाओ कोई मायने नहीं रखता था क्योंकि कई कई दिन तक भोजन भी नहीं मिलता था ।
यह सब देखने के बाद आज मैं संन्यासी के रूप में हूँ आप लोगों के सामने । आज भी मैंने सच लिखा जैसे हमेशा लिखता हूँ । क्योंकि सच ही एक ऐसी चीज है, जो आपको अपने अपराधबोध से मुक्त करता है, किसी भी अनजाने भय से मुक्त करता है । परिणाम इतना ही होता है सच का कि जो आपके नकली चेहरे से आकर्षित थे, वे छंट जाते हैं और केवल वही रह जाते हैं जिनको आपके जीवन के उतार चढ़ाव से कोई अंतर नहीं पड़ता, बस साथ रहना चाहते हैं । मेरे साथ तो ऐसी कोई दुविधा भी नहीं है कि कल कोई मुझे छोड़ देगा तो मेरा क्या होगा । वही फूटपाथ होगा, वही खुला आकाश होगा, वही आजादी होगी….
इन सब अनुभवों से जाना कि नकली व दिखावटी रिश्ते बनाने से बेहतर हैं, कि अकेले रहो । विवाह हो या शारीरिक सुख के लिए बनाए गये रिश्ते… सभी एक समय बाद बेमानी लगने लगते हैं । क्योंकि न तो कोई स्त्री अधिक समय तक अच्छी लगती है भले ही कितनी सुंदर क्यों न हो, न ही कोई रिश्ते अच्छे लगते हैं । बस वही लोग अच्छे लगते हैं, जिनके सामने आपको मुखौटा लगाकर न रहना पड़े । जिनसे आप झगड सको, जिनसे आप प्रेम कर सको, जिनको आप डांट सको और जिनपर अपना अधिकार जता सको…लेकिन आधुनिक युग में व्यापारिक रिश्तों की भरमार और ऊपर कोर्ट-कानून के बेडरूम तक में घुसपैठ से…ये सारे रिश्ते भावनाओं से रिक्त हो चुके हैं ।
आज मैं खुश हूँ कि बीते वर्षों में जो कुछ हुआ वह अच्छा ही हुआ । वरना यह एकांत, यह अकेलापन मुझे नहीं मिल पाता । मैंने यहाँ पूरी इमानदारी से अपना अतीत लिख दिया, अब आप लोगों को जो समझना है, कहना हैं, कहते रहें….मैं अब एक संन्यासी हूँ लेकिन वह संन्यासी नहीं जो किताबी रट्टामार धार्मिकों की व्याख्या है । मैं वह संन्यासी हूँ जो स्वयं से अवगत हूँ, स्वयं के विवेकानुसार निर्णय लेने की क्षमता है और किसी मत-मान्यता या परम्परा से बंधा नहीं हूँ ।
मैं विशुद्ध चैतन्य हूँ । कुछ ही दिनों में मेरा जन्मदिन आ रहा है और मैं अपनी उम्र का एक पड़ाव और पार कर लूँगा । लेकिन अब निर्भर नहीं हूँ दुनिया की वाहवाही पर, अब वैसी तारीफें और तालियाँ मुझे सुख नहीं देंगी…क्योंकि वे सब खोखले हैं । वे तारीफ़ करने वाले आपके भीतरी दुखों को समझ पाने में असमर्थ होते हैं । वे वही देखते हैं जो बाहर दीखता है । उनको आपके व्यक्तिगत जीवन से कोई मतलब नहीं होता और न ही कभी वे इस योग्य होते हैं कि मुस्कुराहटों के पीछे छुपे एकांकीपन व दुखों को समझ पायें ।
फूटपाथ में आने के बाद ही मैंने सही अर्थों में संन्यास को समझा । सही अर्थों में जाना कि दूसरों के पीछे भागकर स्वयं को खोजने से बेहतर है, स्वयं को ही खोजने के लिए स्वयं को जानो, स्वयं को जियो, स्वयं के अंदाज़ में । यदि आपका कोई जीवन साथी इस दुनिया में वास्तव में आया है तो वह आपको स्वतः ही खोज लेगा, अन्यथा अकेले जीने में कोई बुराई नहीं है ।
यही है मेरा अध्यात्मिक ज्ञान जो मैंने पाया । इतनी बड़ी दुनिया में अकेला जीना, जो चाहते हैं वह कर न पाना और उसपर भेड़चाल में चलने वाली दुनिया का प्रवचन…सचमुच बहुत ही पीड़ादायक होता है ।