असली और नकली हर क्षेत्र में, हर समाज में, हर देश में होते हैं


कल रात किसी से चैट हो रही थी । उनके कहने का भाव जो मेरी समझ में आया वह यह कि भारत की राजनीति और यहाँ की जनता में कोई सुधार संभव नहीं है ।
आप इनको जागृत करना चाहते हैं, इनको चैतन्य करना चाहते हैं, यह मुर्खता ही है । बड़े बड़े महात्मा, जैसे कि स्वामी विवेकानंद, ओशो, और न जाने कितने, सभी विदेशियों को चैतन्य करने में अपनी भलाई समझीं, क्योंकि वे समझ चुके थे कि ये लोग न तो खुद सुधरेंगे, न दूसरों को सुधरने देंगे उलटे ओशो की तरह धक्के मारकर बाहर निकालेंगे । फिर एक प्रश्न भी पूछा कि साधू-संतों में किसी के पास कोई शक्ति होती भी या सभी केवल ढोंग करते हैं ?
यह कहना सही नहीं होगा कि साधू-संतों ने भारतीय जनता को जागृत करने का प्रयास नहीं किया, चाहे वह बुद्ध हो या ओशो । लेकिन यह दुर्भाग्य ही रहा कि भारतीय जनता असल ज्ञान के पीछे कभी दौड़ी ही नहीं, इसलिए उनकी बातें कभी इनको समझ में नहीं आयीं । इनको समझ में आयीं उन लोगों की बातें जो असल की नकल पर टिके थे । जैसे कि पंडित-पुरोहित, मुल्ला-मौलवी, पादरी-विशप… आदि । इन लोगों के पास अपना कोई अनुभव या ज्ञान नहीं होता, बस रट्टामार विद्वता को ढोते रहते हैं आजीवन ।
कई विद्वान मैंने ऐसे भी देखे जो केवल नकल करते हैं और दुनिया उनकी जयजयकार करती है । जिसकी नकल की जा रही है, वह तो दुनिया के सामने आ ही नहीं पाता क्योंकि नकल करने वाले उनको कभी सामने आने ही नहीं देते । कई बार ऐसा मेरे साथ भी हुआ कि कोई आया मुझसे मिला, दो चार अध्यात्मिक बातें हुईं और फिर मेरी ही कही गयी बातों को वह व्यक्ति किसी और से इस अंदाज़ में कह रहा होता है और वह भी मेरे ही सामने कि सामने वाला यही समझता है कि उसने कई वर्षों के गहन अनुभवों से जाना है ।
कई बार ऐसा भी होता है कि मैं कोई आध्यात्मिक अनुभव बताता हूँ तो तुरंत ही बात काट कर कहते हैं, “हाँ हाँ, बिलकुल मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था या मेरे गुरु ने बिलकुल यही बात कही थी ।”
लेकिन मैं यह जानता हूँ कि अध्यात्मिक अनुभव प्राप्त व्यक्ति शांत-चित्त का होगा, वह परेशान, उद्दिग्न नहीं होगा, वह किसी काम को या तो हाथ में लेगा नहीं और लेगा तो फिर उसी में रम जाएगा ।
लेकिन नकल करने वाले हमेशा दूसरों के पीछे दौड़ रहे होते हैं । कोई भी एक काम स्थिर होकर नहीं कर पाते, हर काम को आधा अधुरा कर रहे होते हैं, क्योंकि वे यही नहीं तय कर पाते कि किस काम को करने से दुनिया उनकी तारीफ़ करेगी । वास्तव में उनका आस्तिव ही दूसरों पर निर्भर होता है, वे स्वयं से बहुत दूर होते हैं ।
यहाँ स्टीव जॉब के एप्पल का उदाहरण देना चाहता हूँ, जिससे आप मेरी बातों को अच्छी तरह समझ सकते हैं । स्टीव जॉब एक खोजी व्यक्ति थे और निरंतर किसी न किसी खोज में लगे ही रहते थे । फिर उन्होंने एप्पल कंप्यूटर की खोज की और फिर देखते ही देखते दुनिया में एप्पल ने अपनी एक जगह बना ली । स्टीव क्वांटिटी से अधिक क्वालिटी पर ध्यान रखते थे, इसलिए उनके सारे उपकरण बहुत महंगे होते हैं ।
अब हर किसी के बस का होता नहीं एप्पल के उपकरण खरीदना तो वे सस्ते उपकरणों से संतुष्ट हो जाते हैं । ऐसे में चाइना ने एप्पल फोन की नकल पर कई फोन बाजार पर उतार दिए, आज हर तरफ चाइना प्रोडक्ट ही दिखाई दे रहा है । जिनके पास एप्पल फ़ोन या कंप्यूटर है भी तो उनको भी काम्प्लेक्स होने लगता है इन नकलचियों से, क्योंकि उससे आधे कीमत में बिलकुल वैसा ही डिजाइन वाला फ़ोन या लैपटॉप लेकर सौ लोग उसके आसपास घूम रहे हैं ।
ये नकल की समान खरीदने वाले आईफ़ोन या आईमैक रखने वालों को मुर्ख कहते हैं क्योंकि इनको लगता है कि उसने अपना पैसा बर्बाद किया । फिर नकलचियों और नकल के दीवानों में एक ख़ास बात यह भी होती है, कि ये लोग देश व समाज से बंधे नहीं होते । यदि राष्ट्र का शत्रु चीन है, तो भी इनको इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, ये लोग चीन का समान बड़ी ख़ुशी से खरीदेंगे । तो यहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ महत्वपूर्ण हो जाता है और राष्ट्र गौण । और चूँकि समाज ही ऐसा है, तो इनके नेता भी वैसे ही होंगे, स्वाभिमान, वचन, ईमान-धर्म.. सब इन नेतोँ के लिए मात्र जुमले ही होंगे… खैर आगे बढ़ते हैं…
तो लगभग 99% जनता नकली के पीछे दौड़ती है, कोई एक-आध प्रतिशत जनता ही असल के पीछे भागती है । हाँ यह और बात है कि नकल रखने वाले भी असल खरीद लाते हैं कभी कभी क्योंकि वे दूसरों की नकल कर रहे होते हैं । किसी ने आईफोन खरीद लिया या आईमैक खरीद लिया तो उसकी नकल करनी होती है, इनको क्वालिटी से कोई लेना देना नहीं होता । और जब ये लोग ऐसी चीज खरीद भी लेते हैं, तो केवल Show-off (दिखावा) करने के ही काम आती है, बाकि उसका कोई सदुपयोग नहीं हो पाता ।
इसी प्रकार भारतीय समाज की आध्यात्मिकता और राजनीति है जो केवल धूर्त व पाखंडियों के पीछे भागता है, क्योंकि असल को बर्दाश्त नहीं कर सकते । असल जो होगा वह समाज को खुश करने की चक्कर में नहीं रहता । उसके अपने ही नखरे होते हैं, अपने ही तेवर होते हैं । क्योंकि वह दूसरों पर निर्भर नहीं है ।
यदि कोई असली साधू-संत मिलेगा आपको कभी तो यह बिलकुल भी अपेक्षा मत रखिये कि वह आपको खुश करने के लिए कोई बात कहेगा । आपके होने या न होने से उसे कोई अंतर नहीं पड़ेगा, हाँ उनके होने न होने से आपको बहुत अंतर पड़ेगा । वे आपको बर्दाश्त नहीं करेंगे, आपको उनके हिसाब से चलना होगा, लेकिन वे आपके हिसाब से नहीं चलेंगे ।
क्योंकि भेड़ों के समाज को खुश करने का काम ढोंगियों के लिए लाभकारी हो सकता है, असल के लिए नहीं । असल तो तभी तक असल है, जब तक भेड़ों की भीड़ उसे अपने इशारों में नचाने न लगे, तमाशा न बना दे उसका । आईमैक को भी यदि भीड़ को खुश रखना है, तो उसको अपनी गुणवत्ता गिरानी होगी क्योंकि ओरिजिनल चीजें समाज हजम नहीं कर सकता । समाज की आदत ही नहीं है, असल चीजों की । इसलिए सुकरात हो, गैलीलियों हो, जीसस हो, या ओशो…लोगों ने उनको ठोकर ही मारी । बुद्ध को भी पत्थर मारे, गालियाँ दी गयीं, लेकिन उनकी नकल करने वाले, उन्हीं के शब्दों को दोहराने वाले, झूठे वादे करने वाले, जुमलेबाज तोतों की खुभ आवभगत करती है दुनिया ।
तो मैं ओरिजिनल रहना चाहता हूँ । मेरे लिए राजनीति और समाज दो विपरीत ध्रुव नहीं है, एक ही समाज के दो आयाम मात्र हैं । दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं, समाज के बिना राजनीति व्यर्थ है और राजनीति के बिना समाज । सभी आध्यात्मिक महानआत्माएं राजनीति से दूर भागतीं रहीं क्योंकि इसमें भेड़ों के समाज द्वारा चुने हुए भेड़ियों को भेजा जाता है यह मानकर कि इनके द्वारा शोषित होने व लुटे जाने में हमको कोई आपत्ति नहीं है ।
और ये भेड़िये किसी भी सभ्य, ईमानदार व्यक्ति को सहन नहीं कर पाएंगे, इसलिए सभी आध्यात्मिक गुरु इनको कभी आध्यात्मिक शिक्षा नहीं देते, उलटे इनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं । ताकि उनका धंधा सही सलामत चलता रहे । लेकिन मेरी ऐसी कोई विवशता नहीं है क्योंकि मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है और न ही मैं कोई धंधा कर रहा हूँ, पूर्णकालिक बेरोजगार हूँ । कल यदि ये लोग मेरी जान ले भी लेंगे तो दोबारा जन्म ले लूँगा, लेकिन करूँगा वही जो करने आया हूँ ।
अंत में उनका प्रश्न कि साधु-संतों में कोई असली भी होता है ?
तो उत्तर इतने लम्बे पोस्ट में मिल ही चुका होगा, फिर भी संक्षिप्त में समझ लीजिये कि असली और नकली हर क्षेत्र में, हर समाज में, हर देश में होते हैं । असली मुट्ठी भर ही होंगे, लेकिन चारों तरफ नक्कालों का साम्राज्य मिलेगा । ऐसे में असली तक पहुँच पाना बहुत ही दुर्गम होता है । आपकी किस्मत होगी यदि तब आप असली तक पहुँच जायेंगे ।
~विशुद्ध चैतन्य
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