जहाँ देखो ढोंगी-पाखंडियों का बोलबाला है

बचपन में ही मुझे अपने माता-पिता से व्यवहारिक ज्ञान ही मिला, न कि किताबी ज्ञान । वे यदि ध्यान, पूजा-पाठ के विषय में भी समझाते तो उसे तर्कपूर्ण तरीके से समझाते, न कि यह कहते कि किताबों में लिखा है इसलिए करना है ।
लेकिन २४ जनवरी १९८० में अपनी माँ की मृत्यु के बाद मैं नास्तिक हो गया । विश्वास ही उठ गया था ईश्वर से क्योंकि जो माँ कभी कोई व्रत नहीं छोडती थी, जो माँ कभी किसी का दिल नहीं दुखातीं थीं यहाँ तक कि अपने गहने जेवर भी अपनी ननदों को बाँट देती थीं, अपनी सारी अच्छी साड़ियाँ उनको दे देती थीं और खुद फटी हुई साड़ियों को हाथ से सिल सिल कर पहनती थीं…उनको इतने कष्ट सहने पड़े और अंत में कष्ट सहते हुए ही दुनिया से विदा हो गयीं ।
सोचा करता था तब, “यदि ईश्वर कभी मिलेंगे तो पूछूँगा कि धूर्त और मक्कारों पर आप इतने कृपावान क्यों रहते हैं, जबकि निःस्वार्थ जीने वालों की खुशियाँ भी छीन लेते हैं ?”
जब तक उत्तर नहीं मिला, मैं नास्तिक ही रहा लेकिन एक दिन उत्तर मिल गया । जिस दिन उत्तर मिला उस दिन समझ में आया कि वास्तव में ईश्वर क्या है और उनसे कैसे अपनी समस्याओं और उलझनों का समाधान जाना जाये । जब कुछ प्रयोग किये और सफल रहे तो फिर मुझे यह भी पता चल गया कि मंदिरों, तीर्थो में जाने की कोई आवश्यकता नहीं होती ईश्वर से सलाह या सहायता मांगने के लिए, उसे तो यह बताने की भी आवश्यकता नहीं होती कि आपको क्या चाहिए…….तभी जाना कि मेरे माता-पिता से चूक कहाँ हुई, क्यों ईश्वर ने उनकी सहायता नहीं की ।
खैर जाने दीजिये… ये सारी बातें आप लोगों के समझ के परे होंगी । अभी दस पढ़े-लिखे वैज्ञानिक सोच के विद्वान आ धमकेंगे अपने अपने वैज्ञानिक प्रयोगशाला के जाँच उपकरण लेकर कि सिद्ध करो, हमारे तराजू में बैठाओ अपने ईश्वर को तभी हम मानेंगे….
तो मैंने जाना आप भी जान सकते हैं लेकिन भौतिक उपकरणों से नहीं, उन उपकरणों से जो ईश्वर ने ही आपको दिए हैं । उन्हीं उपकरणों से आप संपर्क कर सकते हैं, जान सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं ईश्वर को । और यह इतना आसान है कि कोई भी विद्वान नहीं जानता कि कैसे करें । क्योंकि यह धारणा है लोगों में कि ईश्वर को प्राप्त करना, जानना या अनुभव करना बहुत ही कठिन काम है । इसलिए लोग कठिन व दुर्गम मार्गों की तरफ दौड़ते हैं और ईश्वर उनकी मुर्खता देखकर हँसते होंगे ।
तो मैंने जाना यह मेरा अनुभव है, आप मुझसे यह मत पूछिये कि कैसा होता है, किस रंग का है, कैसा दीखता है…. क्योंकि मैं बता नहीं पाउँगा । अब स्वाभाविक ही है कि आप कहेंगे, फेंक रहा हूँ, मोदियापा आ गया है… आदि इत्यादि ।
चलिए आप अपनी मान्यताओं में खुश रहिये मैं अपनी । हाँ यदि किसी को मुझपर विश्वास हो, तो शायद मैं कुछ सहायता कर पाऊँ ईश्वर को जानने में उनकी… लेकिन उसके लिए समर्पण भाव होना चाहिए जो कि आपमें है नहीं । आपका समर्पण भी व्यापारिक होगा…यानि आप कहेंगे, “ठीक है मैं पूरे समर्पण भाव से आपके पास आ रहा हूँ, मुझे ईश्वर से भेंट करवा दीजिये “
अब यह समर्पण भाव नहीं है, बल्कि वही भाव है जो किसी मंत्री या अधिकारी से मिलाने के लिए पीए या पीऑन (चपरासी) के पास जाते समय होता है । तो बहुत कठिन डगर है ईश्वर मिलन की, इसीलिए ही कहा जाता है, न कि हिमालय में जाकर तपस्या करने वालों के कारण कहा जाता है 🙂
फिर भी एक आसान राह बता देता हूँ और वह यह कि ईश्वर को यदि जानना है, तो पहले धार्मिक कूपमंडूकता से मुक्त होना पड़ेगा । अब यह भी आप लोगों की समझ में नहीं आएगा क्योंकि कुँए को ही आप लोगों ने संसार मान रखा है ।
कई विद्वान आकर कहते हैं कि उनको मुझसे बहुत आशा थी कि मैं अध्यात्मिक/धार्मिक क्षेत्र में बहुत ही बड़ा नाम करूँगा । यहाँ तक कि मेरे गुरूजी व मेरे आश्रम से जुड़े लोगों को भी मुझसे बहुत ही निराशा हुई कि मैं अध्यात्म से विमुख होकर राजनैतिक विषयों पर अधिक ध्यान देने लगा हूँ । और मेरे साथ स्थिति बिलकुल उलटी है मुझे लगता है कि ये सभी लोग अध्यात्म से विमुख हैं और दिखावे, ढोंग को आध्यात्म मानकर जी रहे हैं ।
कई विद्वान् कहते हैं कि मैं उनको धार्मिक/अध्यात्मिक ज्ञान दिया करूँ.. और मैं आशचर्य में पड़ जाता हूँ कि मैं तो हर दिन प्रत्येक पोस्ट आध्यात्म पर ही लिखता हूँ, फिर वह मोदी पर हो या केजरी पर, फिर वह अमेरिका पर हो या पाकिस्तान पर…हर पोस्ट में अध्यात्मिक शिक्षा ही देता हूँ…लेकिन फिर भी लोग कहते हैं कि मैं राजनैतिक पोस्ट न लिखा करूँ केवल आध्यात्मिक विषयों पर लिखा करूँ ।
बहुत समय बाद मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ कि मैं दुनिया से बिलकुल अलग हूँ । मेरी सोच ही दुनिया से अलग है । दुनिया का अध्यात्म और मेरा अध्यात्म बहुत ही भिन्न है ।आप लोगों का आध्यात्म बहुत ही सीमित है, खंडित है, वास्तव में वह अध्यात्म है ही नहीं जिसे आप लोग आध्यात्म मान रहे हैं । आप लोगों का धर्म और आध्यात्म सिमटा हुआ है दडबों में, सम्प्रदायों में, जातियों में, राजनैतिक पार्टियों में, नेताओं और बाबाओं में, हिन्दू-मुस्लिम में, गीता-क़ुरान में, किताबों में । आप लोग जिसे धर्म कहते हैं वही खंडित है, सीमित है तो अध्यात्म भी वैसा ही होगा । जबकि मेरा धर्म और आध्यात्म दोनों ही असीमित है, अखण्ड है, व्यापक है, अनंत है । मेरे लिए राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र दोनों ही आध्यात्म और धर्म के दो आयाम हैं कोई अलग चीज नहीं हैं । और जिस दिन यह बात आप समझ जायेंगे उस दिन धूर्त जुमलेबाज नेतागण न तो आपको धर्म के नाम पर लड़ा पाएंगे और न ही जाति के नाम पर ।
इसलिए मैं राजनीति पर लिखता हूँ क्योंकि जितने भी अध्यात्मिक गुरु हैं, वे राजनीति को धूर्त नेताओं, गुंडों मवालियों के हाथों छोड़कर अपनी दुनिया में मस्त हैं । मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं राजनीति के क्षेत्र में भी आध्यात्मिक उत्थान लाऊं, जाग्रति लाऊं ताकि राजनीति से धूर्त और मक्कारों को बाहर निकाला जा सके । हाँ जानता हूँ कि यह बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि धार्मिक आध्यात्मिक क्षेत्र में ही इतने धूर्त और कपटियों ने घुसपैठ कर ली है कि अब वास्तविक धार्मिक और आध्यात्मिक लोग अल्पसंख्यक हो गये हैं । उनकी आवाज अब समाज तक पहुँचती ही नहीं है । जहाँ देखो ढोंगी-पाखंडियों का बोलबाला है । ~विशुद्ध चैतन्य

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