न गुरु एक हैं, न पंथ एक हैं, न धर्म एक हैं और न ही ईश्वर एक है !

प्राचीन काल में जब मैं छोटा बच्चा हुआ करता था, तब श्री कृष्ण और विष्णु से बहुत प्रभावित था। क्योंकि मुझे उनसे या उनके अनुयाइयों से डर नहीं लगता था। दूसरा कारण था उनकी लक्ज़री लाइफ बहुत प्रभावित करती थी मुझे।
फिर एक दिन माँ ने गौतम् बुद्ध की कहानियाँ सुनाईं। मुझे लगा गौतम बुद्ध का जीवन कम खर्चीला है, एक कटोरा और एक धोती में जीवन कट जाएगा।
12-13 वर्ष का हुआ तो ओशो की किताबें हाथ लग गयीं। क्योंकि पिताजी ओशो और दयानन्द सरस्वती को बहुत पढ़ते थे। जैसे-जैसे ओशो को पढ़ता गया, ओशो और श्री कृष्ण अधिक प्रभावित करने लगे। क्योंकि इनकी विचार धारा कोई पंथ नहीं थी, कोई दड़बा भी नहीं था। बहुत ही विराट था, इतना विराट, जिसमें सभी समाहित हो जाते थे।

जब बाहर की दुनिया से परिचय हुआ, तो पता चला कि न तो ईश्वर एक है, न धर्म एक है, न गुरु एक हैं, न पंथ एक हैं…….अनगिनत हैं। एक ही गुरु के किसी एक पंथ में कपड़े पहनना पाप नहीं है, तो किसी पंथ में पाप है। किसी पंथ में प्याज-लहसुन खाना पाप है, तो किसी में कोई परहेज ही नहीं है।
कुछ संप्रदायों के तो दो से अधिक उप सम्प्रदाय या पंथ हैं। जैसे कि हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं) Source: अनिरुद्ध जोशी
इस्लाम में कुल ७२ फिरके बताए जाते हैं और इनमें शिया और सुन्नी प्रमुख हैं। Source: इस्लाम के कितने फिरके हैं ?
ईसाइयों में मुख्ययतः तीन सम्प्रदाय हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स तथा इनका धर्मिक ग्रंथ बाइबिल है।
बौद्ध सम्प्रदाय: भगवान बुद्ध के निर्वाण के मात्र 100 वर्ष बाद ही बौद्धों में मतभेद उभरकर सामने आने लगे थे। वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को ‘महासांघिक’ और जिन्होंने निकाला था उन्हें ‘हीनसांघिक’ नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया। Source: बौद्ध धर्म के कितने संप्रदाय हैं ?
इसी प्रकार सभी बड़े-बड़े सम्प्रदायों के कई विभाजन हैं। और हिंदुओं में तो इतना अधिक भिन्नता है मत-मान्यताओं में कि दिमाग ही चकरा जाता है।
ऊपर से दुनियाभर के गुरु और उन गुरुओं के अपने-अपने पंथ। उदाहरण के लिए कबीर को ले लीजिये। अब कबीर के अनुयायी भी कहने लगे कि कबीर ही परमेश्वर हैं। Source: #SupremeGodKabir
फिर रामपाल, रामरहीम, आसाराम….व अन्य अनगिनत। फिर जिन गुरुओं के पास शिष्य या कोई संतान थी, तो उसने अपना अलग पंथ और अलग नियम कानून बना लिए।
एक ईश्वर, एक ओंकार, One God, के नारे लगाने वाली दुनिया क्या वास्तव में किसी एक परमशक्ति को मानती है ?
रत्तीभर भी नहीं ! सभी की श्रद्धा अपने अपने गुरुओं पर है ईश्वर पर रत्तीभर भी नहीं। इसलिए जब प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाने वालों ने धार्मिक स्थलों को बंद करके ठेकेखुले रखने का आदेश पारित किया, तो किसी ने विरोध नहीं किया। क्योंकि सभी को अपने अपने प्राणों से प्रेम था, न कि ईश्वर से।
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