क्या समाज नहीं जानता कि अनैतिक और अधर्म क्या है ?

समाज हमेशा उन लोगों को आदर्श बनाने की दौड़ में लगा रहता है जो संतुष्ट, सुखी और सम्पन्न हैं। लेकिन सवाल यह है कि जो पहले से ही संतुष्ट और सुखी हैं, उन्हें आदर्श बनाने से क्या फायदा? वे तो बस एक ही सीख देते हैं: “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर चलो, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, व्रत-उपवास और रोज़ा-नमाज़ में व्यस्त रहो। ईश्वर सब ठीक कर देगा।
लेकिन वे यह कभी नहीं बताएंगे कि वे खुद ईश्वर पर नहीं, बल्कि राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं, सरकारों और माफियाओं के भरोसे बैठे हैं। वे यह नहीं बताएंगे कि उनकी सुख-समृद्धि का आधार क्या है।
स्त्रियों का शोषण और समाज का दोगलापन
लोग कहते हैं कि भारत में स्त्रियों को देवी माना जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि सबसे ज्यादा शोषण और अत्याचार भी स्त्रियों पर ही होता है। हालांकि, अगर ध्यान से देखें तो पाएंगे कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो स्त्रियों को भारत जितना महत्व देता हो। एक लड़की के साथ अगर बलात्कार हो जाए या उसकी हत्या कर दी जाए, तो पूरा देश उसके साथ खड़ा हो जाता है। बड़े-बड़े वकील मुफ्त में केस लड़ने को तैयार हो जाते हैं, नेता उसके परिवार से मिलने पहुंच जाते हैं। लेकिन अगर पूरे देश का बलात्कार हो जाए, पूरे देश को विदेशी कंपनियों के हवाले कर दिया जाए, तो कोई चूं तक नहीं करता। क्यों?
क्योंकि लोग ईश्वर के सामने नहीं, बल्कि मौत के डर, नौकरी जाने के डर और अपनों से बिछड़ने के डर के सामने झुकते हैं। अगर मौत का डर न हो, अपनों से बिछड़ने का डर न हो, तो कोई मूर्ख ही होगा जो किसी काल्पनिक ईश्वर के सामने झुकेगा।
क्या ये लोग वास्तव में आस्तिक और धार्मिक हैं?
बिल्कुल नहीं! ये लोग धार्मिकता और आस्तिकता का ढोंग करते हैं, लेकिन असल में ये नास्तिक और अधार्मिक हैं। अब सवाल उठता है कि अधार्मिकता क्या है?
शिक्षा प्रणाली और सच्चाई का अभाव
आज की शिक्षा प्रणाली हमें यह सिखाती है कि सही या गलत को नहीं देखना है, बस जो रटाया गया है, वही उत्तर देना है। चाहे वह उत्तर गलत ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए, हमें रटाया जाता है कि भारत एक धार्मिक देश है, जबकि सच्चाई यह है कि 99% भारतीय न तो कभी धार्मिक थे, न ही कभी हो सकते हैं।
हमें यह भी रटाया जाता है कि सेना और पुलिस जनता के हितों की रक्षा के लिए होती है, जबकि वास्तविकता यह है कि ये संस्थाएं माफियाओं और सरकारों की सेवा करती हैं। इनका मुख्य काम जनता का शोषण करने वालों का साथ देना और विरोध करने वालों का मुंह बंद करना है। अगर विद्रोही बड़ी संख्या में आ जाएं, तो उन पर गोली चलाने में भी ये संस्थाएं पीछे नहीं हटतीं।
अब कोई प्रश्न पत्रों में सही उत्तर लिख दे अपनी बुद्धि का प्रयोग करके, तो क्या होगा ?
सत्य की खोज और जगत की वास्तविकता

कई बरस पहले जब मुझे सत्य का ज्ञान हुआ, तब मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यही सत्य है। बरसों तक तक सत्य को ठोंकता-पीटता रहा, अलग अलग प्रकार के प्रयोग करता रहा, ताकि सत्य की सत्यता परखने में कोई चूक या कमी न रह जाये।
आज विश्वास से कह सकता हूँ कि जो सत्य बुद्ध ने जाना, जो सत्य अन्य और कई चैतन्य आत्माओं ने जाना, वही सत्य मैंने भी जान लिया है। और वह सत्य यह है कि जगत मिथ्या है, झूठ और फरेब पर आधारित है, छल-कपट पर आधारित है। शिकार और शिकारी का खेल है जगत और जो दर्शक दीर्घा में बैठा है, वह कीमत चुकता है खेल देखने की। जो कीमत चुकाता है वह शिकायत करता है कि मेरा शोषण हो रहा है, मुझपर अत्याचार हो रहा है, जबकि मैंने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। लेकिन आजीवन प्रयास करता रहता है कि वह भी शिकारियों की टोली में शामिल हो जाए।
माफियाओं, शिकारियों, देश व जनता के लूटेरों की टोली यानि सरकार में शामिल होने के लिए वह आरक्षण मांगता है, डिग्रियाँ बटोरता है, आईएएस, आईपीएस बनाता है और फिर शिकारियों के समाज का हिस्सा बन जाता है। शिकारियों का समाज नौलखा सूट पहनकर घूमता है, करोड़ों की लागत से बनी गुफाओं, झोंपड़ियों में रहता है।
समाज की वास्तविकता और नैतिकता का भ्रम
सत्य यह है कि आप बुद्ध बन जाएँ या भिखारी बन जाएँ। आप अंबानी अदानी बन जाएँ या मोदी, पासवान, मायावती बन जाएँ। आप देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दें, या देश ही बेच दें, गलत कुछ भी नहीं और जय-जय करने वाली भेड़ें मिल ही जाएंगी।
सत्य यह है कि पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक केवल मन का वहम है जो स्थान, परिस्थिति व मानसिक स्थिति पर आधारित है। यदि आप राजनेता हैं, आप अभिनेता है, आप अदानी-अंबानी या मोदी परिवार से संबन्धित हैं, तो ये सब लागू नहीं होते। लेकिन यदि आप गांधी परिवार से हैं, आप गरीब परिवार से हैं, आप माध्यम वर्गीय परिवार से हैं….तो ये सब लागू होंगे।
~विशुद्ध चैतन्य
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