सनातन धर्म सिमट कर धर्म और ईश्वर के ठेकेदारों का अधीनस्थ हिन्दू धर्म हो गया

भारतीय धर्म को सनातन धर्म कहा जाता था क्योंकि यह इतना विराट व विस्तृत था कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पंथ और मान्यता का सनातन के अंतर्गत आ जाता था। लेकिन फिर लोग विद्वान होने लगे और हिन्दू धर्म की स्थापना हुई। मानसिकता में संकीर्णता आने लगी और धर्म राजनैतिक और व्यापारिक महत्व की वस्तु बन कर रह गया।
अब अध्यात्म और परामनोविज्ञान जैसे मूल स्वाभाविक विषयों का स्थान आडम्बर और दिखावों ने ले लिया। जो धर्म परमात्मा व आत्मा के बीच का व्यक्तिगत विषय था उसके लिए बिचौलिए तैयार हो गये। अब परमात्मा और आत्मा का मिलन बिचौलियों के बिना असम्भव हो गया…..
कालांतर में हम और उन्नत हुए, और ग्रंथों का अनुवाद हुआ, हम और अधिक विद्वान् हुए लेकिन सनातन धर्म सिमट कर हिन्दू धर्म हो गया और धर्म खतरे में पड़ने लगा क्योंकि धर्म अब कमजोर हो गया था। क्योंकि अब लोग हिन्दू धर्म से पलायन करने लगे थे और बौद्ध धर्म स्वीकारने लगे थे। हिन्दू धर्म में सहिष्णुता का आभाव होने लगा था और निर्बलों पर अत्याचार शोषण बढ़ने लगा था। मंदिर अमीर होने लगे थे लेकिन निर्बल और दरिद्र भूख से मरने लगे थे। आज भी निर्बल और कमजोर हिन्दुओं को पूछने वाला कोई नहीं है लेकिन धर्म की रक्षा के लिए सेना सड़कछाप लुच्चों-लफंगों और गुंडों-बदमशों की सेनाएँ खड़ी हैं बरछा, भला, कृपाण, कटार, कट्टा और तलवारें लिए।
सनातनधर्मी भारत में सभी का अस्तित्व था और सनातन धर्म तो स्वयं अविनाशी है उसका नाश तो असंभव है। केवल कुछ लोगों ने संकीर्णता से मुक्त होने का निर्णय लिया चाहे फिर वह निर्णय लालच से हो, या भय से या स्वविवेक से…उन्होंने संकीर्णता त्याग कर दूसरे पंथ को चुना।
लेकिन वहाँ जाने के बाद पता चला उनको कि वह तो और भी अधिक संकीर्ण है मूल रूप से, केवल भारत के स्वतंत्र समाज के प्रभाव के कारण ही वह भी भारतीय संस्कारों में ढल गया था इसलिए अधिक मुक्त दिख रहा था। जबकि विदेशों में उसी धर्म का मूल रूप तो बहुत ही विकृत व भयानक है।
हिन्दू धर्म संकीर्ण मानसिकता में ढलने के बाद भी इतना कुरूप तो नहीं है, जितना कि आइसिस प्रदर्शित कर रही है, या मुस्लिम देशों के कानूनों से पता चलता है। समय के साथ सभी वापस लौटेंगे ही क्योंकि मुक्ति, स्वतंत्रता व सहयोगिता के भाव का ही नाम ही है धर्म। और जो धर्म सार्वभौमिक हो सभी पर समान रूप से लागू हो, जिसका ना आरंभ हो, न अंत, जो निरंतरता लिए हुए हो, जिसका आधार कोई पुस्तक, व्यक्ति, प्रतिमा ना हो, वही है सनातन धर्म।
जिस प्रकार पृथ्वी अपनी धुरी में स्वतंत्र है और मंगल व चन्द्र अपनी धुरी में लेकिन वे सभी सूर्य को केंद्र मानकर परिक्रमा कर रहें हैं। कोई किसी की स्वतंत्रता में बाधक नहीं है और कोई किसी के मार्ग का अवरोध नहीं है। कोई किसी पर दबाव नहीं बनाता कि वह अपना धर्म बदल ले लेकिन सभी आपस में एक दूसरे से बंधे हुए हैं। जिस अदृश्य अलिखित अनुबंधों से वे आपस में बंधे हैं, वही सनातन धर्म है। भारतीय ऋषियों ने उसी सनातन धर्म को समझाने के लिए ग्रन्थ लिखे, लेकिन विद्वान उसे संकीर्ण से संकीर्ण करते चले गये।
अब हम धर्म के नाम पर शोषण और अत्याचार करने लगे। हम धर्म के नाम पार गाली-गलौज करने लग गये, हम धर्म के नाम पर हिंसा और उपद्रव करने लग गये, हम धर्म के नाम पर धंधा और आडंबर करने लग गए। केवल इसलिए क्योंकि दूसरे पंथों के लोग ऐसा कर रहे हैं। केवल इसलिए क्योंकि हम ऐसा नहीं करेंगे तो लोग हमें धार्मिक नहीं कहेंगे। धर्म रंगों, कपड़ों और तिलक टोपी तक ही सीमित रह गया।
अब धर्म शाकाहार और माँसाहार में विभक्त हो गया… अब धर्म हरे, काले और भगवे में विभक्त हो गया….. अब धर्म इतना संकीर्ण हो गया कि धर्मांतरण होने लगे जबकि मुझे तो सभी सनातनी ही लगते हैं, केवल स्वाभाव और भक्ति के मार्ग उनके अपने हैं जैसे ग्रहों के अपने स्वभाव, गुण व पथ हैं सूर्य की परिक्रमा करने के लिए। लेकिन कोई गृह सूर्य से अलग होने का प्रयास करेगा या धर्म परिवर्तन करेगा तो उसका आस्तित्व तो स्वतः ही समाप्त हो जाएगा।
फिर हमें आवश्यकता ही क्या पड़ी कि हम भी किसी को लालच या भय दिखा कर धर्मान्तरण करवाएं ?
क्यों नहीं हम अंपने धर्मो के कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए सहयोगी हो जाते ताकि दूसरों को भी प्रेरणा मिल सके ?
भारतीय धर्म उसी सिद्धांत पर आधारित है, जिस सिद्धांत पर सौर मंडल गति करता है। यदि सौरमंडल के नौ-दस गृह अपनी गति से अपना स्वाभिमान व स्वतंत्रता बनाये रखते हुए धर्म से विमुख नहीं हैं और एक परिवार के सदस्यों की तरह आपस में सहयोगी हैं, हम भारतीय क्यों दूसरे देशों की नक़ल करने पर तुले हुए हैं ?
~विशुद्ध चैतन्य
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