Trust अर्थात विश्वास जब तक अंधा है तभी तक विश्वास है

जब बात आती है सम्बन्धों की, रिश्तों की, तो अधिकांश मानते हैं कि रिश्ते-नाते, प्यार वफा सब, बातें हैं बातों का क्या ?
असल में हम सम्बन्धों की मर्यादाएं भूल जाते हैं। हम यही भूल जाते हैं कि किस्से कितना अपनापन रखना चाहिए और किस्से कितनी दूरी रखनी चाहिए। सभी सम्बन्ध और सम्बन्धी आपके हितैषी और शुभचिंतक ही होंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं। लेकिन सगे-सम्बन्धी और मित्रों पर विश्वास करते ही हैं लोग।
कई बार हम किसी पर बहुत ही अधिक विश्वास कर लेते हैं, उनसे खुलकर बातें कर लेते हैं, बहुत सी गोपनीय बातें भी बता देते हैं। लेकिन फिर एक दिन वह व्यक्ति अचानक गधे के सर से सींग की तरह गायब हो जाता है।
पता चलता है वह केवल टाइमपास कर रहा था या अब उसके जीवन में कोई और आ गया।
कई बार ऐसा भी होता है कि हम कोई सहायता किसी से यह सोचकर मांगते हैं, कि वह बात सार्वजनिक नहीं होगी। लेकिन फिर एक दिन पता चलता है कि वह सहायता जो अपने मांगी थी, वह सौ लोगों को पता चल चुकी है।
तब फिर आप किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं कर पाते और किसी एक व्यक्ति से सहायता मांगकर एहसान लेने की बजाय, सार्वजनिक रूप से ही सहायता मांगते हैं, जैसे कि मैं मांगता हूँ। जो बात सभी को पता चलनी ही है आज नहीं तो कल, तो आज और अभी ही पता चल जाए ?
जीवन में सबसे निकट सम्बन्ध यदि किसी से होता है, तो वह है माता-पिता से। उसके बाद सबसे निकट सम्बन्ध किसी से बनता है, तो फिर अपने जीवनसाथी से। यहाँ जीवनसाथी का अर्थ व्यापारिक समझौतों पर आधारित वैवाहिक सम्बन्ध नहीं है। जीवनसाथी का अर्थ होता है, वह साथी जो आपकी कमी को पूरी करने के लिए आपसे जुड़ा है। या फिर जिसकी कमी आप पूरी कर सकते हैं, इसलिए वह आपसे जुड़ा है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक दूसरे के पूरक होते हैं जीवनसाथी। न कि पति-पत्नी की तरह भरे बाजार एक दूसरे की छीछालेदार करने वाले लोग।
परिवार के सदस्य और सम्बन्धी आपके सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन एक सीमा तक ही। वे भी एक समय बाद आपसे दूरी बना लेंगे यदि आप आर्थिक, राजनैतिक या शारीरिक रूप से कमजोर रहे।
मित्र आपसे सुख-दुख के सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन उनकी भी अपनी सीमाएं हैं, अपना घर-परिवार है। वे आपकी कमियों को बता सकते हैं, आपपर दबाव बना सकते हैं कि अपनी कमियों को दूर करके आगे बढ़ें। लेकिन वे आपके पूरक नहीं बन सकते।

केवल जीवनसाथी ही एकमात्र ऐसा प्राणी होता है, जो आपका पूरक होता है। वह आपके दोष गिनाने के लिए नहीं आता, बल्कि आपके दोषों को छुपाकर आपको सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए आता है। जीवनसाथी दोषों को देखने के लिए नहीं जुड़ता, बल्कि जो कमियाँ हैं, उन्हे पूरा करने के लिए जुड़ता है। इसलिए जीवनसाथी कभी दोष या कमियाँ नहीं गिनवाएगा।
जीवनसाथी विश्वास का साकार रूप होता है। ऐसा रूप जिसे आप कभी भी धोखा नहीं दे सकते। क्योंकि विश्वास को धोखा देना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से कम मूर्खतापूर्ण और घातक कार्य नहीं है। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे अपनी श्वासों को रोक लेना और यह अपेक्षा करना कि जीवित रहें।
जीवनसाथी का विश्वास अंधा होता है और जब तक उसके साथ विश्वासघात नहीं होता, वह अंधा ही रखता है। लेकिन जिसदिन भी विश्वासघात हुआ, उसी दिन से विश्वास की आँखें आ जाती हैं और जिस दिन आंखे आ जाती हैं, उस दिन विश्वास चला जाता है और साथ ही खो देता है व्यक्ति अपने जीवनसाथी को हमेशा के लिए।
इसलिए यदि किसी पर विश्वास ना हो, तो उससे झूठ ना कहें कि आप उसपर विश्वास करते हैं। और जब किसी पर विश्वास करें, तो अंधे बनकर करें ताकि विश्वास के साथ विश्वासघात न होने पाये।
विश्वास अंधा ही होता है जन्मजात

विश्वास अंधा ही होता है जन्मजात। जिस दिन विश्वास का अंधापन दूर हो जाता है, उसी दिन वह धंधे पर उतर आता है। उसी दिन से वह वैश्य हो जाता है, व्यापारी हो जाता है, राजनेता हो जाता है, सरकार हो जाता है……
लेकिन फिर कभी वापस विश्वास नहीं बन बन पाता। क्योंकि विश्वास अंधा होता है और उसके अंधेपन में ही वह आकर्षण है, कि देश व जनता के साथ विश्वासघात करने वाला विश्वासघाती भी अपने लिए विश्वासपात्र सेवक और साथी खोजता है।
जीवन बहुत कुछ सिखा देती है, लेकिन फिर भी विश्वास को आँखें नहीं दिला सकती। क्योंकि विश्वास का अर्थ ही है संदेह से परे। संदेह और विश्वास एक साथ तो ही नहीं सकते कभी, जैसे अंधकार और प्रकाश एक साथ नहीं हो सकते। एक के आते ही, दूसरा चला जाता है।
यदि आपने किसी पर विश्वास किया और उसने विश्वासघाट किया, तो दोषी आप नहीं वह होगा जिसने विश्वासघात किया।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
