The Naked Truth: सत्य पूर्णतः नग्न और नैतिक-अनैतिक से परे होता है
यदि कोई पूछे मुझसे कि आध्यात्मिक और अदानी-अंबानी होने में कोई अंतर है ?
तो मेरा उत्तर होगा आध्यात्मिक होने और अडानी-अंबानी होने में कोई अंतर नहीं। धार्मिक होने और अडानी-अंबानी होने में भी कोई अंतर नहीं।
क्योंकि आध्यात्मिक और धार्मिक दोनों की दौड़ धन, सम्पत्ति और ऐश्वर्य के लिए ही है। बड़े-बड़े त्यागी बैरागी, ध्यानी तपस्वी आदि सभी उसी ऐश्वर्य की खोज में हैं, जिसे ईश्वर के नाम से दुनिया खोज रही है और अडानी-अंबानी और बड़े बड़े नेता, अभिनेता जैसे धनकुबेर स्विसबैंक में छुपाकर रखते हैं।
और जब ऐसा कहता हूँ, तो लोगों को मेरी विद्वता पर संदेह होने लगता है। क्योंकि विद्वान तो वही, जो रटा हुआ दोहराता जाये, चलती फिरती लाइब्रेरी और एनसाइक्लोपीडिया बनकर घूमे। जबकि जो मैं कह रहा हूँ, वह सभ्य और धार्मिक लोगों के समाज के किसी भी किताबी ज्ञान से मेल नहीं खाता। तो स्वाभाविक ही है कि लोग मेरी बातों को महत्व नहीं देते।
केवल नज़रिया (दृष्टिकोण) का ही फेर है…
कहते हैं बहुत से लोग मुझसे कि बहुत ही निराशावादी हूँ, बहुत ही नकारात्मक लेख लिखता हूँ। आपके लेख पढ़कर तो ऐसा लगता है कि दुनिया में दुख ही दुख है, सारे नेता, पार्टियां बेईमान हैं…केवल आप ही अकेले एकमात्र ईमानदार बचे हो इस दुनिया में।
बात तो बिलकुल सही है, दुनिया में अच्छे लोग भी हैं, बुरे लोग भी हैं। बेईमान भी हैं और ईमानदार भी हैं। अब मुझे केवल नज़रिया (दृष्टिकोण) बदल लेना होगा और चारों तरफ सुख शांति, अमन, चैन, प्रेम, भाईचारा और ईमानदार, देश भक्त राजनैतिक पार्टियां और सरकारें नजर आने लगेंगी।
बिलकुल वैसे ही जैसे सरकारी अधिकारियों को नजर आते हैं, जैसे अंबानी, अदानी और उनके स्टाफ को नजर आते हैं, जैसे बिलगेट, जुकरबर्ग और भूमाफियाओं को नजर आते हैं, जैसे वैश्य, शूद्र (वेतनभोगी) और साधू-समाज को नजर आते हैं।
केवल नजरिया का ही फेर है….मेरा नजरिया ही ख़राब है। लेकिन दोष मेरा नहीं, बचपन से ही दृष्टिदोष से पीड़ित हूँ। मुझे वह सब दिखाई देता है, जो 99% सात्विक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सकारात्मक दृष्टिकोण वाली जनता को नजर नहीं आता।
दृष्टिकोण सत्य नहीं होता और न ही सत्य होता है मत-मान्यताएँ
यह बिलकुल आवश्यक नहीं कि मत-मान्यताएँ, परम्पराएँ सत्य पर ही आधारित हों। और न ही यह आवश्यक है कि दृष्टिकोण बदल लेने से सत्य समझ में आ जाएगा।
जब तक पश्चिमी जगत को मनुष्य के भीतर छुपी अलौकिक क्षमताओं का ज्ञान नहीं था, तब तक सम्मोहन, स्पर्शचिकित्सा, टेलीपेथी आदि सब अंधविश्वास और जादू-टोना ही माने जाते थे। फिर जब पश्चिमी जगत के विद्वानों जैसे कि 18वीं शताब्दी के Dr. Franz Mesmer, जिन्हें मेस्मेरिज़्म (वशीकरण) का जनक माना जाता है। Milton Erickson जिन्हें आधुनिक सम्मोहन विज्ञान Ericksonian hypnosis का जनक माना जाता है। जापान के Dr Usui जिन्होंने 1920 में Reiki Healing की खोज की थी।
हालांकि अफ्रीका, और भारतीय आदिवासी इन्हीं विद्याओं का प्रयोग अन्य विधि से करते थे, जिन्हें पाश्चात्य जगत अंधविश्वास, ढोंग और पाखण्ड कहा करता था। अब चूंकि विदेशियों को इन विशेष विद्याओं का ज्ञान हो गया है और वे इसमें पारंगत हो चुके हैं, तो इन्हीं का प्रयोग करके जनता को बरगलाते हैं, झूठ का प्रचार करते हैं और सत्य से जनता को हमेशा दूर रखते हैं।
सम्मोहन विज्ञान ध्वनि और आदेशों पर आधारित है। अर्थात आप किसी को कोई आदेश दें और उसे पूरे विश्वास के साथ दें, तो सामने वाला अस्वीकार नहीं कर सकता। इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकारें, विज्ञापन एजेंसियाँ और राजनैतिक पार्टियाँ झूठ परोसने के लिए भारी संख्या में झूठ बोलने वालों को नियुक्त करती हैं। जनता विश्वास करती है, वैज्ञानिकों पर, डॉक्टर्स पर, नेताओं पर, समाचार तंत्र पर, तो इन सभी को माफिया खरीद लेती है। फिर माफिया जो कहते हैं, ये सब वही कहने लगते हैं।
नेता लोग CD (Compact Disk), ED, CBI, FBI व अन्य जाँच एजेंसियों के भय से केवल वही कह रहे होते हैं, जो उनसे बुलवाया जा रहा होता है। बिलकुल वैसे ही जैसे अभिनेताओं को मोटी फीस देकर तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा का प्रचार करवाया जाता है, राजनैतिक पार्टियों और सरकारों के झूठ का प्रचार करवाया जाता है।
जो शाश्वत असत्य होता है, झूठ होता है, उसे सत्य मान लिया जाता है, क्योंकि बड़े बड़े बुद्धिजियों, विद्वानों, चिकित्सकों, वैज्ञानिकों द्वारा बुलवाया गया है। जैसे कि प्रायोजित सरकारी महामारी का झूठ फैलाकर पूरी दुनिया के नागरिकों को नरपिशाचों ने बंधक बनाकर सामूहिक बलात्कार और लूट-पाट किया।
तो यह मान्यता कि वैज्ञानिक, चिकित्सक, विश्वप्रसिद्ध बुद्धिजीवी झूठ नहीं बोलेंगे, जनता के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे, ध्वस्त हो गयी। ये सब असत्य का ही प्रचार करने लग गए धन के लोभ में या मृत्यु के भय से।
सम्मोहन, स्पर्श चिकित्सा जैसे विज्ञान जो कि हमारे देश में पहले ही प्रचलित था, उसे विदेशियों ने एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। और आज आप देख ही रहे हैं कि दुनिया की अधिकांश जनसंख्या सम्मोहित जोंबियों जैसा व्यवहार करने लगी है। इन्हें होश ही नहीं कि वे सत्य के साथ खड़े हैं असत्य के साथ। केवल सम्मोहित भेड़ों की तरह अनुसरण कर रहे हैं आज्ञाओं का बिना कोई प्रश्न किए।
अब मैं अपना दृष्टिकोण बदल लूँ कि राजनैतिक पार्टियाँ, सरकारें, वैज्ञानिक, डॉक्टर जो कह रहे हैं सत्य ही कह रहे हैं, वे सब हमारी भलाई के लिए ही कार्य कर रहे हैं, तो क्या यह सत्य हो जाएगा ?
बिलकुल भी नहीं। जो असत्य है वह असत्य ही रहेगा।
मनुष्य के भीतर असीम अलौकिक शक्तियाँ छुपी हुईं हैं
हम सभी के भीतर असीम शक्तियाँ छुपी हुईं हैं। लेकिन पूरी शिक्षा प्रणाली और सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था ऐसी है कि आपको अपनी शक्तियों से परिचित होने कभी देती ही नहीं। क्योंकि यदि आप अपनी शक्तियों से परिचित हो गए, तो हो सकता है आप फिर झूठ का साथ न दें।
शाओलिन टैम्पल का नाम तो आप सभी सुना ही होगा। दुनिया की सबसे कठिन ट्रेनिंग यहाँ दी जाती है। ऐसी ट्रेनिंग कि एक साधारण मानव आलौकिक शक्तियों से युक्त मानव बन जाता है।
ऐसी कठिन ट्रेनिंग देकर व्यक्ति के भीतर छुपी असाधारण क्षमताओं और शक्तियों से व्यक्ति का परिचय करवाया जाता है। मार्शल आर्ट्स का मुख्य उद्देश्य था अधर्म, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध रहने के लिए स्वयं को शक्तिशाली बनाना आवश्यक है। लेकिन हुआ क्या ?
क्या शाओलिन साधु-संत या शिष्य अधर्म व अन्याय के विरुद्ध खड़े होने लायक हो पाये ?
बिलकुल भी नहीं, उल्टे उन्हें मौन कर दिया गया। अब उनका काम केवल तमाशा दिखाकर लोगों का मनोरंजन करना, या फिर किसी कम्पनी में गार्ड की नौकरी करना, या फिर सेना में शामिल होना मात्र रह गया है। जो साधू-संत बन गए, वे भी अधर्म के विरुद्ध मुँह नहीं खोल सकते। तो लाभ क्या हुआ ऐसी कठिन शिक्षा का ?
इसी प्रकार जितने भी आध्यात्मिक संस्थाएं, संगठन हैं, सभी आज उन्हीं के अधीन हैं, जो जनता व देश का शोषण कर रहे हैं, लूट रहे हैं। लेकिन मान्यताएँ पाल रखी हैं सभी ने कि ये संस्थाएं या संगठन कुछ आध्यात्मिक सिखाते हैं।
सत्य यह है कि आध्यात्मिक होने का सीधा सा अर्थ है सत्य को उसके वास्तविक नग्न रूप में ही देखना, न कि किसी मत-मान्यताओं में बंधकर, दूसरों के द्वारा थोपी गयी मान्यताओं के आधार पर देखना।
सत्य पूर्णतः नग्न और नैतिक-अनैतिक से परे होता है
यह बिलकुल सत्य है कि सत्य पूर्णतः नग्न और नैतिक-अनैतिक से परे होता है। क्योंकि नैतिक-अनैतिक सामाजिक, स्थानीय मत-मान्यताओं पर आधारित होता है। और मान्यताओं का सत्य कोई सम्बन्ध होता नहीं, क्योंकि ये सब एक परम्परा के रूप ढोई जा रही होती है।
उदाहरण के लिए झूठ बोलना पाप है, अनैतिक है। लेकिन आज ऐसा कोई व्यक्ति दिखा दीजिये जो सत्य बोलकर सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा हो ?
यदि आप सत्यवादी हुए, तो आप मार्केटिंग का काम नहीं कर सकते, आप व्यापार नहीं कर सकते, आप वकील नहीं बन सकते, आप सरकारी या गैर सरकारी नौकरी में प्रोमोशन नहीं पा सकते और राजनेता या मंत्री-वंत्री बनने की तो कल्पना करना भी व्यर्थ है।
धार्मिकों का समाज दुनिया भर के नियम कानून सिखाता है नैतिकता के नाम पर। लेकिन स्वयं अधर्मियों के पक्ष में खड़ा मिलता है, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के पक्ष में खड़ा मिलता है।
कोई गरीब चोरी करता पकड़ा जाये, तो नैतिकता के ठेकेदार तुरंत पहुँच जाते हैं सजा देने। लेकिन जब कोई ताकतवर या अमीर व्यक्ति चोरी करे, चाहे देश ही नीलाम कर दे, यही धार्मिकों का समाज थाली-ताली बजाकर भजन-कीर्तन करने लगता है।
इसलिए जब सत्य के साथ होने की बात आए, तो नैतिक-अनैतिक जैसा कुछ नहीं रह जाता। सत्य केवल सत्य होता है और जो सत्य को समाज जाता है, उसके पास दो विकल्प होते हैं। या तो वह अधर्मियों के पक्ष में चला जाये या फिर दरिद्रता में जीवन यापन करे। क्योंकि समाज अधर्मियों का, सरकारें अधर्मियों की हैं, सेना, पुलिस सभी अधर्मियों के ही साथ खड़ी हैं। और जो सत्य के साथ खड़ा होगा, वह इनका शत्रु होगा।
और यह ऐसा सत्य है, जो बिलकुल नग्न है, बस आपके भीतर साहस होना चाहिए सत्य को उसके नग्न रूप में देखने की।