गुरु पूर्णिमा: अपने-अपने गुरुओं पर सबको बड़ा नाज़ है
गौतम बुद्ध के अनुयायी कह रहे हैं:
आषाढ़ पूर्णिमा ही गुरु पूर्णिमा है। बुद्ध ही गुरु हैं। बुद्ध ही गुरु हैं। इसी गुरु ने गुरु पूर्णिमा के दिन सारनाथ में पहली बार सार्वजनिक ज्ञान दिया था। बुद्ध ही गुरु हैं। इनकी ही शिक्षाएँ दुनिया भर में अनूदित हुईं। बुद्ध ही गुरु हैं। अनेक देशों में इसी गुरु के कारण अनेक शिक्षा – केंद्र खोले गए। बुद्ध ही गुरु हैं। अनेक भिक्खुओं ने इसी गुरु के ज्ञान का अनेक देशों में प्रचार किए। बुद्ध ही गुरु हैं। इसलिए अनेक देशों में पढ़ाई का सत्र गुरु पूर्णिमा के माह जुलाई से आरंभ होता है। बुद्ध ही गुरु हैं। अनेक राजाओं ने गुरु पूर्णिमा के दिन अनेक भिक्खु – संघों को शिक्षा हेतु अनेक गाँव दान दिए।
नानक, कबीर, रहीम, रैदास, श्री ठाकुर दयानन्द देव, श्री प्रभात रंजन सरकार और ओशो से लेकर रामपाल, रामरहीम, आसाराम, पायलट बाबा, लैपटॉप बाबा, चिमटा वाले बाबा, झाड़ूवाले बाबा, कब्रिस्तान वाले निर्वस्त्र, अघोरी बाबाओं तक के भक्तों, अनुयायियों का यही मानना है कि उन्हीं के गुरु महान हैं। इनमें से कई तो यह भी मानते हैं कि उनके गुरु से पहले कोई गुरु कभी हुआ ही नहीं।
आज गुरु पूर्णिमा है, तो हर कोई अपने अपने गुरुओं की आरती, स्तुति वंदन करने में व्यस्त है। लेकिन क्या ये समाज जिन्हें गुरु मानकर पूज रहा है, वास्तव में वे उस पूरे समाज के गुरु हैं, या केवल कुछ सीमित चुने हुए लोगों के ?
गुरु वह होता है, जो व्यक्ति के भीतर सोई चेतना जगा देता है
गुरु पूर्णिमा अर्थात वह रात, जब ज्ञान पूर्ण प्रकाशवान होता है बिल्कुल पूनम के चाँद की तरह।
क्या ऐसा ही होता है ?
सत्य तो यह है कि लोग जानते ही नहीं कि गुरु होता क्या है। और जानेंगे कैसे, जब आज तक धर्म और अधर्म नहीं जान पाए ?
अधिकांश लोग गुलामी की पढ़ाई करवाने वाले अध्यापकों, ट्यूटर, टीचर, प्रोफेसर्स को गुरु मान लेते हैं। जबकि ये सब सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, बाबाओं, साधु समाज और गोदी मीडिया की तरह केवल झूठ पढ़ाते हैं। ताकि बच्चा बड़ा होकर अच्छे नस्ल का गुलाम बने।
बहुत से लोग आशीर्वाद, भभूत, ताबीज़ बाँटने वाले बाबाओं को गुरु मानते हैं। जबकि ये सब स्वयं माफियाओं और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाली सरकारों और राजनैतिक पार्टियों के सामने नतमस्तक होते हैं।
जबकि गुरु वह होता है, जो व्यक्ति के भीतर सोई चेतना जगा देता है, जो व्यक्ति के भीतर छुपी शक्तियों से परिचय करवाता है। जो ना तो स्वयं अधर्मियों से भयभीत होता है, ना ही कायरों को अपना शिष्य बनाता है।
गुरु अर्थात वह शक्ति या प्राणी जो भ्रम, मिथ्या, अशिक्षा, अधर्म, और मानसिक उलझनों के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाता है।
यूँ तो गुरु की परिभाषा यही है कि प्रकाश से उजाले की ओर लाने वाली शक्ति गुरु है, फिर चाहे वह कोई आलौकिक शक्ति हो या फिर कोई मानव या अन्य प्राणी।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु
कहते हैं भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। एक बार राजा यदु ने उनके गुरु के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि वैसे आत्मा ही मेरा गुरु है और मैने चौबीस व्यक्तियों को गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है। ये चौबीस गुरु हैं पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुमारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी, और भृंगी कीट।
अंधकार से प्रकाश में लाने वाला गुरु कौन ?
अब चूंकि हर सम्प्रदाय और हर व्यक्ति किसी ना किसी को गुरु मानकर जी रहा है, इसलिए किसका गुरु सही है और किसका गुरु गलत यह कहना कठिन है। क्योंकि जिसकी रुचि और अपेक्षाएँ जैसी होंगी, वैसा ही गुरु वह चुनेगा। वास्तविकता तो यह है कि गुरु लाभ और स्वार्थ पर आधारित ही चुने जाते हैं और अधिकांश तो केवल परम्पराओं को निभाने के लिए गुरु बना लेते हैं किसी को भी।
जैसे कि किसी बहुत प्रसिद्ध, नामी गिरामी व्यक्ति को गुरु बना लेना, या परिवार और समाज जिसे अपना आराध्य और गुरु मानता आ रहा है, उसे गुरु बना लेना। कुछ लोग किसी के विचारों से प्रभावित होकर गुरु बना लेते हैं, तो कुछ लोग व्यावसायिक व राजनैतिक लाभ को ध्यान में रखकर गुरु बनाते हैं। लेकिन क्या वास्तव में इन्होंने सही गुरु चुना है या परम्पराओं को ढो रहे हैं ?
भौतिक सुख-सुविधाएं, मान-सम्मान, ऐश्वर्य दिलाने वाला, शादी-ब्याह करवाने वाला, या भभूत-ताबीज़ बांटने वाले गुरु भौतिक गुरु होते हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे विभिन्न विषयों के शिक्षा, अध्याप्क होते हैं। लेकिन सही अर्थो में देखा जाये, तो ये सब व्यक्ति की आत्मा को जगाने वाले गुरु नहीं हैं। और जो आत्मा को ना जगा सके, वह गुरु हो ही नहीं सकता।
गौतम बुद्ध के पास के बार एक व्यक्ति आया और बोला कि मेरे पास बहुत से प्रश्न हैं, जिनके उत्तर किसी से नहीं मिल पा रहे। कृपया आप मेरे प्रश्नों के उत्तर दे दें, तो मैं आपका शिष्य बन जाऊंगा।
गौतम बुद्ध ने कहा कि आपके सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकता हूँ, शर्त केवल यह है कि दो वर्ष तक आपको यहाँ पेड़ के नीचे मौन साधना करनी होगी। यदि बिना किसी बाधा के आपने दो वर्ष तक मौन साधना की अर्थात मौन बैठे रहे, तो मैं आपके सभी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए बाध्य हो जाऊंगा। अन्यथा मैं आपके किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाऊँगा।
वह आगंतुक थोड़ी देर सोचने के बाद बोला कि मैं तैयार हूँ। मुझे प्रश्नों के उत्तर चाहिए ही चाहिए, फिर चाहे 2 वर्ष मौन ही क्यों न बैठना पड़े।
तो वह मौन बैठ गया पूरे 2 वर्षो तक। 2 वर्ष पूरे होने पर गौतम बुद्ध उसके पास आए और बोले कि मैं प्रसन्न हूँ कि तुमने दो वर्ष मौन साधना सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। अब मैं तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रस्तुत हूँ।
उस व्यक्ति ने कहा कि प्रश्न ? कौन से प्रश्न ?कैसे प्रश्न ? मेरे पास तो कोई प्रश्न बचा ही नहीं ? अब मैं तो आनन्द में हूँ, मन शांत है, कोई विचार ही नहीं बचा, तो प्रश्न कहाँ रह गया ?
इस कथा से आप समझ सकते हैं कि अधिकांश प्रश्न हम अकारण ढो रहे होते हैं। बहुत से प्रश्न केवल थोपे हुए होते हैं और हम बिना कोई विचार किए उसे ढोये चले जा रहे होते हैं, यह सोचकर कि प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। जबकि उन प्रश्नों का कोई महत्व ही नहीं होता आपके अपने व्यक्तिगत जीवन में।
गौतम बुद्ध ने अंगुलीमाल की सोयी हुई आत्मा जगा दी थी। यह ऐसा कार्य था, जो किसी भी प्रकार की सजा से संभव नहीं था। एक हत्यारे को बिना कोई सजा दिये, अहिंसक संत बना दिया था गौतम बुद्ध ने।
उपरोक्त दोनों कथाएँ स्पष्ट करती हैं कि गुरु वास्तव में कैसे होते हैं।
एक जेबकतरा भी गुरु होता है उसका, जिसकी जेब काटी। क्योंकि उस जेबकतरे ने उसे सिखाया कि यात्रा कितनी ही आरामदायक क्यों ना हो, या कितने ही व्यस्त और जल्दबाज़ी में क्यों न हों, कभी भी होश नहीं खोना है। हमेशा सतर्क रहना है, चैतन्य रहना है, होशपूर्ण रहना है। जरा सी बेहोशी जेब साफ करवा देगी।
तो बुरा से बुरा व्यक्ति भी गुरु हो सकता है, यदि व्यक्ति वास्तव में जागना चाहता है, होशपूर्ण होना चाहता है।
दुनिया का सबसे कठिन काम सरल होना नहीं, होशपूर्ण होना है। सरल तो हर वह व्यक्ति है जो बिना सोचे समझे ठगों, माफियाओं को अपना नेता चुन लेता है और उसे लूटने खसोटने का अधिकार दे बैठता है।
सरल तो हर वह कार्यकर्ता, समर्थक और भक्त होता है, जो नेताओं के कहने पर महँगाई, एफडीआई को डायन बताकर सड़कों पर उत्पात मचाता है और फिर उन्हीं नेताओं के कहने पर महँगाई और एफडीआई को विकास की मौसी बताकर नाचने लगता है। भले घर के बर्तन-भांडे सब बिक रहे हों, भूखे मरने की नौबत आ गयी हो। लेकिन कभी यह नहीं सोच पाएगा कि उसका नेता और पार्टी उसे मूर्ख बना रही है।
तो सरल होना कठिन नहीं, होशपूर्ण होना कठिन है। और जो होशपूर्ण बना दे, वही वास्तविक गुरु हैं, न कि जो सरल हो, सीधा हो, मीठा-मीठा बोलने वाला, किस्सा कथा, भागवत बाँचने वाला और अमीर बनने के नुस्खे बताने वाला गुरु होता है।
एक बार व्यक्ति होशपूर्ण हो जाए, तो फिर वह अमीर हो या गरीब हो, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। एक बार व्यक्ति जागृत हो जाये, तो फिर देश की सर्वोच्च सत्ता पर विराजमान हो जाये, वह किसी पर अत्याचार नहीं कर सकता, वह किसी की सम्पत्ति नहीं हड़प सकता और न ही फर्जी महामारी का आतंक फैलाकर अपने ही देश की जनता के साथ विश्वासघात करके फार्मा माफियाओं की तिजोरियाँ भरवाता है, अपने ही देश को लूटने और लुटवाने का अधिकार देकर।
और जब तक आपको ऐसे गुरु नहीं मिलते जो आपको चैतन्य बना दे, जागृत बना दे, होश में ला दे, तब तक आप अंधकार में हैं, तब तक आप भ्रम में हैं। और जिस दिन आपको वास्तविक गुरु मिल जाएगा, उस दिन गुरु और आपके बीच कोई संदेह नहीं रह जाएगा। क्योंकि गुरु कोई व्यक्ति नहीं, शक्ति है और शक्ति वह जो आपकी भीतरी ऊर्जा को जगा देती है। गुरु और शिष्य के बीच कोई मोलभाव या व्यापार नहीं चलता। गुरु के सामने तो केवल समर्पित हुआ जाता है बिना किसी शर्त। और यही सबसे कठिन कार्य है।
आज लाखों सम्प्रदाय हैं और हर सम्प्रदाय के पास अपने-अपने गुरु हैं और हर सम्प्रदाय को अपने-अपने गुरुओं पर बड़ा नाज़ है। अधिकांश बताते हैं उनके गुरुओं ने अधर्म के विरुद्ध आवाज़ उठाया, अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाया था, इसलिए उन्हें ज़हर दिया गया, या फाँसी दी गयी, या क्रूस पर लटका दिया गया था। लेकिन ऐसे गुरुओं के सम्प्रदाय के अनुयायी स्वयं क्या कर रहे हैं ?
क्या कोई भी सम्प्रदाय आज ऐसा है, जो अधर्म, अन्याय और देश व जनता को लूटने व लुटवाने वाली सरकारों के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस करता हो ?
महान गुरुओं की जय-जयकार और स्तुति वंदन करना कोई महान कार्य नहीं है। महान कार्य है अपने गुरुओं के दिखाये आदर्शों पर चलना, अधर्म व अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना, गरीबों, असहायों की सहायता करना और जिसे अपना गुरु स्वीकारा, उसके प्रति समर्पित हो जाना।
नीचे दो फिल्में दे रहा हूँ, जिससे आप सही अर्थो में समझ पाएंगे कि गुरु वास्तव में केवल गुरु ही होते हैं, अच्छे या बुरे नहीं।