आने वाला समय धुआँ-रहित Smoke-Less चूल्हा का ही होगा
कल किसी ने लिखा कि श्री लंका में लोगों को अब चूल्हे की आग में भोजन पकाना पड़ रहा है, क्योंकि गैस की सप्लाई ठप्प हुई पड़ी है।
जर्मनी से जानकारी मिली कि वहाँ भी पुतिन ने गैस सप्लाई बंद कर दी है यह कह कहकर कि मेंटेनेस चल रहा है।
इस पोस्ट के साथ चार तस्वीरें हैं, पहली श्रीलंका की बताई जा रही है, दूसरी जर्मनी की है, जो सरिता जी ने भेजी है अपने फार्म हाउस से। तीसरी तस्वीर भारत की है।
श्रीलंका की बरबादी देखने के बाद भी भारत की जनता होश में नहीं आ रही। और आएगी भी कैसे….नेता, पार्टी और सरकारों की भक्ति के नशे में धुत्त जो पड़ी है !!!
अक्सर सुनता हूँ मैं कि वैज्ञानिक सोच के हैं हम तो। लेकिन ये वैज्ञानिक सोच के लोग आज तक अपने घरों को धुआँ-रहित #Smoke-Less चूल्हा बनाकर नहीं दे पाये। जबकि जर्मनी में रहने वाली सरिता जी के जर्मन पतिदेव ने धुआँ-रहित #Smoke-Less चूल्हा एक घंटे में बना दिया।
तो ऐसी वैज्ञानिक सोच किस काम की, जो भविष्य में आने वाली समस्याओं से निबटने की तैयारी करने की बजाए थाईलेंड, कम्बोडिया में हिन्दू धर्म खोजते फिरें और भारतीय हिंदुओं को थाइलेंडी कहकर गरियाते फिरें ?
होगा आप लोगों के लिए यह सब करना वैज्ञानिक कर्म, लेकिन मेरे लिए वैज्ञानिक सोच या मानसिकता का अर्थ होता है तकनीकी रूप से एडवांस होना। वैज्ञानिक सोच का होने का अर्थ यह नहीं कि धर्म को अंधविश्वास और अफीम कहकर गरियाते फिरो। बल्कि वैज्ञानिक सोच का होने का अर्थ होता है अपने घरों को आधुनिक बनाना बिना प्रकृति को क्षति पहुंचाए।
ये मोदी और मोदी सरकार की निंदा करके नाचने से कोई लाभ नहीं होने वाला। ना ही लाभ होगा प्रायोजित महामारी और उसकी फर्जी सुरक्षा कवच के विरुद्ध सड़कों पर नुक्कड़ नाटक करने से। क्योंकि अधिकांश लोग सुरक्षा कवच ले चुके हैं और आगे जितने भी सुरक्षा कवच आयेंगे, वे सब लेंगे क्योंकि वे ज़ोम्बी हैं। और जो भी सोचने समझने की थोड़ी बहुत क्षमता बची थी, वह सब भी मोदी भक्ति और मौत के भय ने छीन ली है उनसे। बहुत से लोगों ने तो अपनी नौकरी, अपनी दुकान बचाने के लिए सुरक्षा कवच ले रखी है। उन्हें समझाने का लाभ क्या ?
तो करना अब यह है कि अपने-अपने गाँव के लोगों को मॉडर्न धुआँ-रहित #Smoke-Less चूल्हा बनाना सिखाइए, यदि आपने साइंस की पढ़ाई की है, यदि आप वैज्ञानिक सोच के हैं। आने वाला समय धुआँ-रहित #Smoke-Less चूल्हों का ही होगा, क्योंकि हम तेजी से श्रीलंका वाली स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। और वह भी केवल इसलिए क्योंकि हमारे देश में भी श्री लंका की सकारात्मक जनता भी पिछले दस वर्षों से थाली-ताली बजाकर नाच रही थी, धर्म की रक्षा कर रही थी। श्री लंका की जनता भी हमारे देश की जनता की तरह ही भजन, कीर्तन, स्तुति-वंदन और सरकार भक्ति और चाटुकारिता में मस्त थी। क्योंकि वे भी हम भारतीयों की तरह ही बहुत सकारात्मक लोग हैं और शांति से थाली-ताली बजाकर अपने देश को बर्बाद होते देख रहे थे।
और परिणाम आप सभी के सामने है। श्री लंका का जुमलेबाज झोला उठाकर निकल लिया और श्री लंका की जनता आज राष्ट्रपति भवन के स्विमिंगपूल में अपने पाप धो रही है।
सच कहूँ तो ये जो थाली-ताली, बर्तन बजाने वाले सकारात्मक लोग हैं न, इन्हीं की वजह से तानाशाह जन्म लेते हैं, अत्याचारी जन्म लेते हैं और पूरी दुनिया को प्रायोजित महामारी से आतंकित कर बंधक बनाकर जनता का सामूहिक बलात्कार करते हैं।