मंदिर में बैठे पण्डित, पुजारी, पुरोहित हराम का नहीं खा रहे
राजनैतिक विरोध अपनी जगह, किसी सम्प्रदाय या व्यक्ति के उत्पातों और गुंडागर्दी का विरोध अपनी जगह। लेकिन जब आप विरोध में इतने गिर जाते हैं कि हर किसी को हरामखोर और खुद को मेहनती समझने लगते हैं, तब आप भी मेरे निशाने पर आ जाते हैं।
जैसे कि किसी ने लिखा, “जैसे भिखारी को सलाह देते हो कि मेहनत करके खाया कर, वैसे ही मन्दिर में जाते समय पंडो को भी मेहनत करके खाने की सलाह देनी चाहिए।”
तो ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि मंदिर न जाया करें। क्योंकि मंदिर में बैठे पंडित, पुजारी, पुरोहित हराम का नहीं खा रहे। वे बिलकुल वैसे ही मेहनत करते हैं, जैसे आपके सरकारी अधिकारी, कर्मचारी मेहनत करते हैं। जैसे आप स्वयं किसी कंपनी या संस्था के लिए मेहनत करते हैं। और जैसे आप अपनी आजीविका कमा रहे हैं, वैसे ही वे भी अपनी आजीविका कमा रहे हैं।
आज धर्म, पूजा, पाठ कर्मकाण्ड, आदि सब व्यवसाय है बिलकुल वैसे ही, जैसे फार्मा व्यवसाय, चिकित्सा, समाज सेवा, राजनीति, न्याय आदि व्यवसाय और इनसे कहीं आधिक बड़ा व्यवसाय है। और हर व्यवसाय समय सारिणी पर आधारित होता है। अर्थात जैसे बाकी सभी व्यवसाय के अपने-अपने टाइम टेबल हैं, अपना अपना सीजन है, वैसे ही इसका भी है।
यदि आप कहते हैं कि ईश्वर की आराधना श्रद्धा का विषय है, व्यवसाय नहीं, तो मैं यही कहना चाहूँगा कि आपके या मेरे मानने या न मानने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, व्यवसाय तो अनवरत चलता रहा है और चलता रहेगा।
न्याय, चिकित्सा, सेवा आदि भी व्यवसाय नहीं है, लेकिन आज यही सब व्यवसाय बन चुके हैं और इन व्यवसायों पर लिप्त लोग बड़े सम्मानित माने जाते हैं
मंदिर, मस्जिद, पंडित-पुरोहित, मौलवी, पादरी आदि को भक्ति, आध्यात्म आदि से जोड़कर ना देखें। ये सब अब व्यावसायिक उपक्रम और उनके कर्मचारी हैं। सभी व्यवसाय लाभ-हानि पर ही आधारित होते हैं, सभी व्यवसाय आजीविका के लिए और आर्थिक लाभ के लिए किए जा रहे हैं। यहाँ भी पंडित पुरोहितों को सेलेरी मिलती है, पारिश्रमिक मिलता है जिससे वे अपना परिवार पालते हैं।
कल आश्रम के रसोइए ने बताया कि किसी मंदिर में छंटनी हुई और कुछ पुजारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। उनमें से एक की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि घर में खाने के लिए कुछ नहीं है। उसकी माँ भी बहुत बीमार है, इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं है। जो थोड़े बहुत लोग पूजा पाठ करवा लेते हैं उससे ही जैसे तैसे गुजर बसर कर रहा है।
मुझसे बोला कि आप उसकी कोई सहायता कर दो।
यहाँ मेरी अपनी गरीबी अनन्त है, कभी ना खत्म होने वाली। भला मैं उसकी क्या सहायता कर सकता हूँ ?
मैंने उससे कहा कि जाकर अपने दोस्त से कहो, वह अकेला नहीं है। पिछले ही महीने सवा करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हुए हैं। और अभी और बढ़ेंगे बेरोजगार। ना जाने कितने भुखमरी से मरेंगे और ना जाने कितने आत्महत्या करेंगे।
फिर लोग कहते हैं कि पंडित-पुरोहित शोषण कर रहे हैं। जो खुद भुखमरी के कागार पर पहुँच चुका, वह क्या किसी का शोषण करेगा ?
शोषण तो वैश्य और शूद्र मिलकर कर रहे हैं। क्योंकि सत्ता वैश्यों के हाथ है और सरकारी अधिकारी हैं शूद्र। ब्राह्मण और क्षत्रिय कहीं दिखाई दे रहे हैं सत्ता में ?
रसोइए ने बताया कि अभी मोदी आया था देवघर, तब उसके स्वागत में इकट्ठी हुई भीड़ में एक भी ब्राह्मण, पंडा नहीं गया। सब हरिजन और बनिया ही थे।
इसलिए उन्हें हरामखोर कहने से पहले अपनी गिरेबान में अवश्य झांक लीजिएगा। हर कोई मजदूरी या गुलामी करने के लिए दुनिया में नहीं आता, सबके अपने अपने कार्य है, कोई आरक्षण प्राप्त कर एयरकंडीशंड बैंक में बैठा नोट गिन रहा होता है और कैशियर कहलाता है, तो कोई ऑफिस में बैठा कागजों पर साइन कर बॉस कहलाता है। इसी प्रकार जो पारिश्रमिक, या वेतन लेकर मंदिरों में या दूसरों के लिए पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड, हवन आदि करता है, वह पुजारी या पंडा कहलाता है। सबके अपने अपने कार्य हैं और सभी अपने-अपने कार्यों के अनुरूप अपना परिश्रमिक या वेतन ले रहे हैं।
क्या आप जानते हैं की काली पूजा करवाने वाले पंडित को कितनी देर एकाग्रचित बैठकर कितने श्लोक का पाठ करना होता है ?
क्या आप जानते हैं कि एक पंडित या पुरोहित बनने के लिए बिलकुल वैसी ही पढ़ाई करनी होती है, जैसी किसी भी अन्य विद्यालयों में की जाती है ?
और रही बात किसी एक ही जाति के पुजारी की बात, तो जैसे एक डॉक्टर के बेटा सहजता से डॉक्टर बन सकता है, जैसे एक जज का बेटा सहजता से जज बन जाता है….क्योंकि वह बचपन से ही उसी वातावरण में पलता बढ़ता है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि किसी पुजारी का बेटा सहजता से पुजारी बन जाता है यदि उसकी रुचि है पूजा-पाठ में।
वहीं ऐसा भी होता है कि पुजारी का बेटा पुजारी न बनकर इंजीनियर या डॉक्टर या कुछ और बन जाता है। क्योंकि उसकी रुचि नहीं पूजा पाठ में।
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पूजा-पाठ करवाना भावनात्मक है कोई गणित या किताबों पर आधारित सरकारी नौकरी नहीं। इसलिए यदि कोई सामान्य रूप से पूजा पाठ भी करवा देता है, तो भी लोग उसे पुजारी स्वीकार लेते हैं।