ये दुनिया एक बाज़ार है और समाज व सरकारें बिकाऊ

कहते हैं लोग कि धर्म एक ढोंग है, पंडे-पुरोहित धर्म और ईश्वर के नाम पर बरगलाकर लूट रहे हैं।

मान ली आपकी बात। अब यह बताइये कि आप, आपका समाज, आपकी सरकार, अस्पताल, डॉक्टर, पुलिस, न्यायालय, वकील, जज, मार्केटिंग, विज्ञापन एजेंसियां और समाचार तंत्र आदि सब मिलकर क्या जनता को नहीं बरगला रहे ?
इनके कृत्य स्वीकार्य हैं, लेकिन पंडित पुरोहितों के नहीं ?
कल से देख रहा हूँ कि लोग बाबा विश्वनाथ धाम के नए रेट लिस्ट से परेशान हैं और कह रहे हैं कि मंदिर वाले धंधा कर रहे हैं।

इसमें गलत क्या है ?
जो मंदिर में जा रहे हैं, तीर्थों में जा रहे हैं, क्या वे सब कोई आध्यात्मिक ज्ञान या अनुभव अर्जित करने जा रहे हैं ?
क्या वे सब परोपकार, परमार्थ कार्य हेतु जा रहे हैं ?
बिलकुल नहीं !
अधिकांश तीर्थयात्री व्यक्तिगत स्वार्थों, कामनाओं की पूर्ति की आशा से जाते हैं और बाकी सब पर्यटन (सैर-सपाटे) के उद्देश्य से। मैंने आज तक एक भी तीर्थ यात्री ऐसा नहीं देखा जो आत्मिक, आध्यात्मिक ज्ञान और उत्थान हेतु तीर्थ स्थलों पर पहुँचा हो। देखा जाये तो धार्मिक और आध्यात्मिक जितनी भी यात्राएं हैं, सभी लोभ और स्वार्थ से भरी हुई यात्राएं होती हैं।
और जब लोभ और स्वार्थों के वशीभूत आप जा रहे हैं कहीं भी तो उसकी कीमत तो करेंसी मे ही चुकानी होगी। क्योंकि भौतिक कामनाओं की कीमत भौतिक ही होगी।
आप किसी भी पर्यटन स्थल पर जाते हैं, तो क्या परोपकार और जनकल्याण के उद्देश्य से जाते हैं ?
क्या पर्यटन स्थल प्रवेश शुल्क नहीं लेते ?
आप किसी भी सिनेमाहाल में जाते हैं, क्या वहाँ उनकी मुँह मांगी कीमत नहीं चुकाते ?

आधे लिटर की पानी की बोतल भी चाहिए तो पीवीआर में 60/- रुपए की पड़ती है। कभी पूछा आपने कि पीवीआर में मिलने वाली पानी और साधारण दुकानों में मिलने वाली पानी में कीमत का अंतर इतना क्यों हैं ?
नहीं पूछेंगे और पूछेंगे भी तो सौ जवाब ऐसे जवाब मिल जाएँगे, कि आप लाजवाब हो जाएँगे। समान्यतः आप वहाँ बिना कोई मोलभाव किए कीमत चुकाएंगे और वापस अपनी सीट में जाकर बैठ जाएँगे।
इसी प्रकार मॉल में, अस्पताल में आप कोई मोल भाव नहीं करेंगे। आप अदालतों में भी कोई मोलभाव नहीं करेंगे। जबकि ये सभी व्यवसायिक केंद्र ही है कोई जनकल्याण सा परोपकार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर कार्य नही हो रहे वहाँ।
आज ही एक खबर पढ़ी कि महंगाई से तंग आकर एक महिला ने अपने पति को किराये पर देना शुरू कर दिया। हो सकता आप लोग इसे अपवाद कहें, लेकिन लंदन में इस आइडिया की बड़ी सराहना हो रही है। और बहुत सी पत्नियाँ इस महिला से प्रेरणा लेकर अपने-अपने बेरोजगार पतियों को किराये पर देना शुरू कर देंगी।

आने वाले समय में इसे और ग्लेमराइज़ किया जाएगा और फिर पति भी अपनी पत्नियों, बहनों, बेटियों को किराये पर देना शुरू कर देंगे।
सुनने में आपको बुरा लग रहा होगा। लेकिन आज भी हो यही रहा है नौकरी के नाम पर। क्योकि नौकरी करना आज शान की बात है और अपने घर के कार्य करना गुलामी, क्योंकि उसमें कोई कीमत नहीं मिल रही, कोई सेलरी नहीं मिल रही होती।
आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां केवल दो ही प्रजाति वर्चस्व में है। एक वैश्य और दूसरी शूद्र। वैश्य वह जिसके पास दौलत है, जिसकी जेब में पुलिस है, सरकारें हैं, अदालतें हैं, माफिया हैं, अपराधी हैं, दंगाई हैं, अपना घर और मंदिर छोड़ मस्जिद और मॉल में चालीसा और सुंदरकाण्ड पढ़ने वाले भाड़े के शूद्र हैं। और दूसरे वे जो इनकी चाकरी कर रहे हैं सर झुकाकर बिना सही और गलत देखे।
और इन सभी को भ्रम है कि ये लोग देश व जनता की सेवा कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि ये लोग न देश की सेवा कर रहे हैं और न ही जनता की। ये सब केवल अपने अपने स्वार्थ और हवस पूरा कर रहे हैं, अपनी अपनी मजबूरीयों को ढो रहे हैं।
देखा जाये तो आज हर चीज बिक रही है, समान और पशु तो बिकते ही थे, इंसान बिक रहे हैं, ईमान, ज़मीर और जिस्म बिक रहे हैं और वह भी पूरी बेशर्मी से। आज किसी नेता को बिकने में शर्म नहीं आती, किसी खिलाड़ी को बिकने में शर्म नहीं आती, किसी वोटर को बिकने में शर्म नहीं आती, क्योंकि जो बिकाऊ नहीं उसका कोई सम्मान नहीं।
अब जब समाज ही ऐसा बन गया, पूरी व्यवस्था ही ऐसी बन गयी कि हर किसी को किसी न किसी कीमत में बिकना ही है, तो आप स्वयं सोचिए कि मंदिरों में शुल्क लगा दिया जाये, या पंडित-पुरोहित व्यवसाय करने लग जाएँ तो क्या गलत है ?
मैंने भी बरसों निःशुल्क लिखा समाज को जगाने के लिए, लाभ क्या हुआ ?
क्या समाज जागा ?
क्या मुझे कोई आर्थिक या अन्य कोई लाभ हुआ ?
नहीं कुछ भी नहीं।
क्योंकि मुफ्त में मिली चीजों की कोई कदर नहीं।
आज जितनी भी नैतिकता की किताबें है, वे सब बेकार हो चुकी हैं, क्योंकि नैतिक लोगों की कोई इज्ज़त नहीं। नैतिक लोगों को केवल इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन तलुए अनैतिक लोगों के ही चाटे जाते हैं।
इसीलिए समाज और सरकारों को दोगला कहता हूँ, क्योंकि इनकी किताबें कुछ कहती हैं और ये करते बिलकुल विपरीत हैं। नैतिकता का दुहाई देते हैं लेकिन खड़े होते हैं अनैतिकों के पक्ष में। और ऐसा करना इनकी विवशता है क्योंकि यदि अनैतिक और अधर्मियों के पक्ष में खड़ी न हुए तो भूखों मर जाएँगे। इनकी नौकरी चली जाएगी, ईडी, सीबीआई इनके घर पहुँच जाएगी, दुनिया भर के केस हो जाएँगे और कई लोगों की सीडी वायरल हो जाएगी।
तो गलत कुछ भी नहीं है आज। स्वार्थियों की दुनिया है और यहाँ जो स्वार्थी नहीं, उसे नोचने खसोटने वालों की कमी नहीं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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