वह शाश्वत सत्य जिससे अनभिज्ञ रहा विश्व सदियों तक

बहुत बड़ी भ्रांति है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र केवल हिंदुओं में पाए जाते हैं।
सत्य तो यह है कि समस्त विश्व के सभी सम्प्रदायों, समाजों में पाए जाते हैं।
और यह जानकर आश्चर्य होगा आपको कि वैश्य और शूद्रों का वर्चस्व है वर्तमान युग में। जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय लुप्त होने के कगार पर पहुँच चुके हैं। ब्राह्मणों और क्षत्रियों अर्थात अधर्मियों, अत्याचारियों, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध आवाज उठाने वालों, समाज को जगाने वालों, शत्रुओं से देश व नागरिकों की रक्षा करने वालों की संख्या अत्याधिक घट जाने के कारण, समस्त विश्वास नरपिशाचों के षडयंत्रों का शिकार होकर बंधक बन गया। क्योंकि शूद्रों और वैश्यों को गुलामी से कोई आपत्ति कभी रही नहीं। ये सब तो ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर के सिद्धान्त पर जीते हैं।
इसीलिये प्रायोजित सरकारी महामारी और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का विरोध करने वाले बहुत कम नजर आ रहे हैं। इनमें भी अधिकांश विरोधी, राजनैतिक नौटंकी कर रहे हैं बिलकुल वैसे ही, जैसे कभी आरएसएस नामक संगठन ने किया था महंगाई, एफडीआई का विरोध।
और जो थोड़े बहुत वास्तविक विरोध कर रहे हैं, उन्हें शूद्रों (भाड़े के ट्रोलर्स, फेक्टचेकर्स, सोशल मीडिया और पुलिस द्वारा प्रताड़ित करवाया जाता है। क्योंकि इन विरोधियों के कारण उनके झूठ पर खड़ा महल और व्यापार प्रभावित होता है।
धन के पीछे दौड़ने वाले (वैश्य), वेतनभोगी सेवक (शूद्र) और धन के एवज में बिकने वाले (दास, दासी) कभी भी धार्मिक, आध्यात्मिक नहीं हो सकते और न ही समझ सकते हैं ईश्वर को।
पहले वैश्य विनिमय करते थे, अर्थात किसी समान के बदले कोई दूसरा समान या खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाते थे। लेकिन जब से करेंसी का आविष्कार हुआ, ये विनिमय न करके लूट-पाट में लिप्त हो गए। और लुटेरों को सत्ता दिलाने के लिए खुलकर आर्थिक सहयोग करने लगे। बदले में जिसे भी सत्ता मिलती, वो इन्हें लूट-पाट करने की छूट दे देती है।
चूंकि शूद्रों के पास स्वयं की कोई विवेक बुद्धि होती नहीं, वे केवल सेवा करके आजीविका कमाने के लिए ही जन्म लेते हैं, इसलिए इन्हें वैश्यों और माफियाओं के सामने नतमस्त्क रहना पड़ता है। भले ये बड़े बड़े सरकारी पदों पर पहुँच जाएँ, भले ये विधायक, मंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ही क्यों ना बन जाएँ, लुटेरों, माफियाओं को सजा दिलाना तो दूर, विरोध करने तक का साहस नहीं कर पाते।
अब यदि कोई समझता है कि ये सब मिलकर धर्म, आध्यात्म, देश और मानवता की रक्षा कर पाएंगे, तो उससे अधिक बड़ा मूर्ख इस सृष्टि में कोई नहीं।
वैसे भी आध्यात्म और धर्म आधुनिक जगत के लिए है ही नहीं। आधुनिक जगत वैश्यों, शूद्रों और गुलामों का जगत है। यहाँ हर कोई बिकने लिए तैयार बैठा है, और कोई न कोई खरीदने के लिए कीमत लिए बैठा है। जो बिकना चाहता है, वह शूद्र है और जो खरीदने की हैसियत रखता है, वह वैश्य है।
इसीलिए आज न धर्म नजर आता है कहीं, ना आध्यात्म। हर जगह वैश्यों और शूद्रों का वर्चस्व है। मंदिर जाओ, या तीर्थ आपको केवल वैश्य मिलेंगे या शूद्र।
क्या आप जानते हैं कि दुनिया की कोई भी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, जातिवादी पार्टी, संगठन, संस्था, सम्प्रदाय, समाज, पंथ कभी भी बुरे लोगों अर्थात अधर्मियों के विरुद्ध नहीं रही ?
क्या आप जानते हैं की समाज चाहे आस्तिकों का हो, या नास्तिकों का, या जातिवादियों का, ना तो देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरोधी हैं, न ही शोषण और अत्याचार करने वालों के ?
क्या आप जानते हैं कि समाज चाहे कोई भी हो, भले लोगों की शत्रु रही है हमेशा ?
आतंकियों, माफियाओं, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाली पार्टियों, सरकारों के लिए दिल खोलकर दान करेगा, हर संभव सहायता करेगा। लेकिन भले व्यक्ति का साथ देना तो दूर, पानी तक पिलाने को तैयार नहीं होगा। बुरे व्यक्ति पर कोई विपदा आ जाए, तो सारा समाज उसके साथ खड़ा हो जाएगा, लेकिन भले व्यक्ति पर विपदा आ जाये तो सब दूर खड़े होकर तमाशा देखेंगे।
यदि ये सब बुरे लोगों अर्थात देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाले अधर्मियों के विरुद्ध होते, तो आज भी विरोध में होते, ना कि यह कहते फिरते हैं कि हमारी किताबें पढ़ लो, हमारे आराध्यों कि जीवनियाँ पढ़ लो, तब पता चलेगा कि हमारा दड़बा और हम कितने महान हैं।
यही कारण है कि इनके पास केवल पूर्वजों की सुनाई किस्से कहानियों के सिवाय और कुछ नहीं है, स्वयं के दड़बों को धार्मिक, सात्विक, नैतिक, देशभक्त और आम जनों का हितैषी बताने के लिए।
यह तो ईश्वर की ही कृपा रही कि मोदीराज आ गया और मोदीराज में जाना हमने कि यदि सोशल, ब्रॉडकास्ट और प्रिंट मीडिया को खरीद कर गुलाम बना लिया जाये, तो पूरा देश गुलाम बनाया जा सकता है।
मोदीराज में ही जाना हमने कि डिग्रियाँ बटोर लेने से प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप कर लेने से कोई शिक्षित या विद्वान नहीं हो जाता। केवल यही पता चलता है कि वह एक अच्छे नस्ल का गुलाम बनने की योग्यता प्राप्त कर चुका है।
मोदीराज में ही जाना हमने कि नेता चाहे कितना ही बेशर्म, बदतमीज क्यों न हो, गुलाम मीडिया और भक्त लोग जय जय कर रहे हैं, तो पूरी दुनिया जय-जय करेगी। ट्रम्प और मोदी श्रेष्ठ उदाहरण है बेशर्मी के।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
