लुटते-पिटते देश में थाली-ताली बजाकर नाचना भी सकारात्मकता कहलाता है
वामपंथ, अंबेडकरवाद, पेरियारवाद, समाजवाद, मार्कस्वाद….आदि जितने भी दड़बे हैं, क्या गरीबों, शोषितों, पीड़ितों के हितैषी हैं ?
सत्य तो यह है कि ये सब राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वालों के दड़बे हैं और वही करते हैं जो दक्षिणपंथी पार्टियां करती आ रही हैं और करती रहेंगी।
इसीलिए ना तो वामपंथ की तरफ झुकाव है मेरा, न दक्षिणपंथ की तरफ। न मोदीवाद की तरफ, न अंबेडकरवाद की तरफ।
सुनने में आया कि ओशो का कम्यून नीलाम हो रहा है। भले ओशो से बहुत अधिक लगाव रहा हो मेरा, लेकिन मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगा ओशो के कम्यून के बिकने पर। क्योंकि ओशो चले गए और छोड़ गए इस्कॉन टाइप के भक्त और अनुयायी। जो नाच-गा कर जनता का और अपना मनोरंजन करते रहते हैं।
एक इस्कॉन ही काफी है ढेर सारा इस्कॉन बनाने का लाभ ही क्या ?
बाकी कपिल शर्मा कॉमेडी शो और अन्य कई शो हैं ही क्रिकेट के अलावा जनता का मनोरंजन करने के लिए।
मनोरंजन क्यों चाहिए जनता को जब देश बिक रहा हो, जनता लुट-पिट रही हो ?
सकारात्मकता के लिए जनता का सकारात्मक रहना बहुत जरूरी है, ताकि विद्रोह न पैदा हो जाये। वर्तमान युग में जो देशभक्ति की बात करते हैं, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध लिखते या बोलते हैं, उन्हें नकारात्मक और देशद्रोही की केटेगरी में डाल दिया जाता है।
सकारात्मक लोग अपने ही देश को लुटता-पिटता देखकर थाली- ताली बजाकर, हरे कृष्णा हरे रामा गाकर नाचते हैं। या फिर क्रिकेट देखते हैं या फिर कथा, प्रवचन सुनते हैं, या फिर हिन्दू-मुस्लिम, कॉंग्रेस-भाजपा, सपा-बसपा, वामपंथ-दक्षिणपंथ खेलते हैं।
यदि सकारात्मक लोगों की पैदावार अधिक न होती भारत में, तो भारत कभी गुलाम न होता विदेशियों का। न ही आज फिरंगियों के गुलाम लूट रहे होते देश को देशभक्ति, धर्म और जातियों के नाम पर। अब राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, उन्हें ही चुना जाता है, जिसमें विवेक बुद्धि न हो, बिलकुल मोदी टाइप का जमुरा हो। और यदि कोई इन जमुरे के विरुद्ध बोले, तो उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है।
क्योंकि सकारात्मक लोगों का देश बन चुका है भारत और सकारात्मक लोग थाली-ताली बजाकर नाचते हैं जब विदेशी आकर देश लूट रहे होते हैं, प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर जनता का सामूहिक बलात्कार कर रहे होते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य

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