चैतन्य व्यक्ति कर्मवाद से भी मुक्त हो जाता है

योग वसिष्ठ का दृष्टांत:
योग वसिष्ठ में एक प्रसंग आता है जिसमें श्रीराम ने वसिष्ठ जी से प्रश्न किया:
“मुझे बताइए कि मुक्त पुरुष कर्म क्यों करे?”
इस पर वसिष्ठ जी ने उत्तर दिया:
“ज्ञस्य नार्थ: कर्मत्यागैनार्थ: कर्मसमाक्ष॓य।
तेन स्थितं यथा यद्यत्तत्तयैव करोत्य्सौ॥”
(अर्थ: ज्ञानी पुरुष को कर्म करने या न करने से कोई लाभ नहीं लेना होता। इसलिए जैसा भी जो प्राप्त हो, उसे वह सहज भाव से करता है।)
कर्म की प्रकृति और वर्गीकरण:
कर्म को उद्देश्य और भाव के आधार पर चार वर्गों में विभाजित किया गया है:
- वैश्य और शूद्र कर्म:
यह कर्म तब होता है जब कार्य दिखावे, लाभ, या बदले में कुछ पाने की अपेक्षा से किया जाता है। - ब्राह्मण और क्षत्रिय कर्म:
निष्काम और निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ब्राह्मण और क्षत्रिय कर्म कहलाता है।
ब्राह्मण की परिभाषा:
ब्राह्मण को देवता की उपमा दी जाती है क्योंकि वह:
- ज्ञान देता है।
- धर्म और अधर्म का बोध कराता है।
- निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करता है।
यदि कोई बिना स्वार्थ के देता है और बदले में स्वेच्छा से कुछ स्वीकार करता है, तो वह ब्राह्मण कहलाता है।
क्षत्रिय का सच्चा स्वरूप:
क्षत्रिय होने का अर्थ यह नहीं कि केवल युद्ध करना या सेना और पुलिस में नौकरी करना।
- क्षत्रिय का कर्तव्य है अधर्म, अन्याय और अत्याचार का विरोध।
- निर्बलों और असहायों की रक्षा करना।
- अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ना।
यदि कोई केवल वेतन, पेंशन या परिश्रमिक के लिए युद्ध करता है, तो वह क्षत्रिय नहीं, शूद्र माना जाएगा, क्योंकि उसके कार्य में स्वविवेक और नैतिकता की स्वतंत्रता नहीं होती।
अकर्म का मर्म:
अकर्म का अर्थ आलस्य या मुफ्तखोरी नहीं है। यह केवल कर्म का अभाव है।
- जो व्यक्ति सत्य और चैतन्यता को प्राप्त कर लेता है, वह कर्मवाद से मुक्त हो जाता है।
- ऐसे व्यक्ति को कर्म करने की आवश्यकता नहीं पड़ती; प्रकृति स्वयं उसका पालन करती है।
- जैसे गौतम बुद्ध, महावीर और ओशो को दिव्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद कर्म की आवश्यकता नहीं रही।
चैतन्यता का महत्व:
जो व्यक्ति चेतना की उच्च अवस्था तक नहीं पहुंचा है, उसके लिए अकर्म का अर्थ आलस्य, मुफ्तखोरी या कामचोरी हो सकता है। लेकिन जब चैतन्यता प्राप्त होती है, तब वह व्यक्ति कर्म के बंधनों से मुक्त होकर सहजता में जीने लगता है।
निष्कर्ष:
चैतन्य व्यक्ति कर्मवाद से ऊपर उठकर जीवन को सत्य, स्वतंत्रता और सहजता के साथ जीता है। कर्म उसके लिए न कोई बाध्यता है, न ही कोई अपेक्षा।
~ विशुद्ध चैतन्य
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