माफियाओं और लुटेरों के सामने क्यों नतमस्तक हो जाते हैं आस्तिक और धार्मिक ?
यह एक विडियो वायरल है सोशल मीडिया में और कह रहे हैं लोग कि ब्राह्मण जनता को लूट रहे हैं।
जबकि इस विडियो में ब्राह्मण कोई नहीं है। क्योंकि पुजारी, पुरोहित और ब्राह्मण गोत्र का हो जाने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता। सीधे शब्दों में कहें तो जो व्यापार कर रहा है, किसी सेवा के एवज में निर्धारित शुल्क ले रहा है, कमीशन ले रहा है, रिश्वत ले रहा है वह वैश्य है। और जो वेतन और पेंशन पर आश्रित है, वह शूद्र।
और जहां तक लूटने की बात है, तो कोई किसी को नहीं लूट रहा। फूल और पत्र चढ़ाने का रिवाज है पूजा में, लेकिन यहाँ नोट चढ़ाये जा रहे हैं। क्योंकि ये लोग नोटों की खेती करते हैं।
शूद्र और वैश्य अधर्म और अन्याय के विरुद्ध ना तो आवाज उठा सकते हैं और न ही हथियार। लेकिन अपने मालिकों के आदेश पर किसी का घर उजाड़ सकते हैं, बस्तियाँ उजाड़ सकते हैं, ईशनिन्दा और बेअदबी की आढ़ में किसी गरीब की हत्या कर सकते हैं।
शूद्र और वैश्य बड़े-बड़े संगठन बना सकते हैं, लेकिन माफियाओं और लुटेरों के ही अधीन होते हैं। क्योंकि उन्हीं की कृपा और दया पर आश्रित होते हैं ये सब। इसलिए किसी कार्टूनिस्ट के विरुद्ध पूरी दुनिया भर में उत्पात मचा सकते हैं, तोड़-फोड़, आगजनी और हत्याएँ तक कर सकते हैं। लेकिन कभी भी माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकते।
और फिर वैसे भी विकसित आधुनिक समाज में प्राकृतिक पेड़, पौधे, और फूलों के लिए कोई स्थान बचा नहीं है। प्लास्टिक और कपड़े के फूल-पत्तों से ही इनका गुजारा हो जाता है।
अब जब पेड़, पौधे नहीं लगाएंगे, जंगल के जंगल जलाएंगे, खेतों को मिटा कर मॉल, सिनेमाहाल और मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनाएँगे….तो फूल और पत्ते कहाँ से लाएँगे ?
भविष्य में फूल पत्तों की जगह नोट ही चढ़ाये जायेंगे या फिर क्रेडिट और डेबिट कार्ड चढ़ाने का फैशन शुरू हो जाए… ???
यदि ध्यान से देखने और समझने का प्रयास करें, तो पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड का आधार आध्यात्म या आत्मजागरण है ही नहीं। सभी का आधार व्यापारिक, भौतिक, आर्थिक लाभ के लिए दिखावा और आडंबर मात्र है। आज मंदिर, तीर्थ, पूजा-पाठ, हवन आदि आध्यात्म नहीं धंधा और दिखावा मात्र बनकर रह गया है। बहुत से लोगों का रोजगार और व्यापार है पूजा-पाठ, हवन आदि तो बहुत से लोगों के लिए समाज और राजनीति में स्वयं को पवित्र, सात्विक, धार्मिक दिखाने का आडंबर मात्र।
यदि वास्तव में पूजा-पाठ, हवन आदि का आधार आत्मा और परमात्मा होता, तो क्या माफियाओं की रखैल मीडिया और डबल्यूएचओ के गुलाम साइंटिस्ट्स, डॉक्टर्स, सरकारों, राजनैतिक पार्टियों के द्वारा फैलाये गए प्रायोजित महामारी से आतंकित होती धार्मिक और आस्तिक जनता ?
माफियाओं और लुटेरों के सामने क्यों नतमस्तक हो जाते हैं आस्तिक और धार्मिक ?
क्या कभी सोचा है कि दुनियाभर के आध्यात्मिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक गुरु और संगठन, संस्थाएं मिलकर भी देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का सामना क्यों नहीं कर पाते ?
शोषण, अत्याचार, अन्याय, दूसरों की सम्पत्तियाँ हड़पना, ठगना, मिलावट करना, झूठे वादे करना, विश्वासघात करना, दूसरों की निजता का सम्मान न करना आदि को अधर्म माना गया था। जो इन आचरणों के विरुद्ध होता था वह धार्मिक माना जाता था और धार्मिकों का बहुत ही मान सम्मान होता था समाज में।
आध्यात्मिक व्यक्ति वह होता था, जो आत्मकेंद्रित होता था। जो ध्यान, जप, तप आदि में लिप्त रहता था। लेकिन धार्मिकों से अधिक सम्मानित होता था। क्योंकि साधना करते रहने के कारण उसके भीतर से मृत्यु का भय तक निकल जाता था और वह राजा तक से भयभीत नहीं होता था। यदि राजा भी जनता पर अन्याय करे, तो वह राजा को सही मार्ग दिखाने निकल पड़ता था। जैसे कि अष्टावक्र, चाणक्य।
लेकिन कालांतर में धर्म और आध्यात्म की परिभाषा ही बदल कर रख दी माफियाओं और लुटेरों ने। पूजा-पाठ, रोजा-नमाज, व्रत-उपवास, मंदिर-मस्जिद, तीरथों के चक्कर लगाने को धर्म घोषित कर दिया। समझाया गया कि जो धार्मिक और आध्यात्मिक लोग होते हैं, वे केवल ईश्वर की स्तुति-वंदन करते हुए अपना परिवार पालते हैं। उन्हें अंधा-गूंगा, बहरा बनकर जीना चाहिए, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो, ताकि स्वर्ग की प्राप्ति हो और वर्तमान जीवन भी निष्कंटक व्यतीत हो जाये।
धारणा बना दिया गया है कि यदि धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध लिखता या बोलता है, तो इसका अर्थ है वह धार्मिक और आध्यात्मिक होने का ढोंग कर रहा है। लेकिन देश व जनता के लुटेरे यदि मंदिरों, मस्जिदों, दरगाहों, तीरथों के चक्कर लगाने लगें, पूजा-पाठ, रोज़ा नमाज करने लगें, तो उनसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति कोई नहीं। भले फर्जी महामारी से आतंकित कर पूरे देश को बंधक बनाकर लूटें और लुटवाएँ, उन्हें धार्मिक ही माना जाएगा।
जो व्यक्ति ध्यान, भजन, कीर्तन में डूबा रहता है, और माफियाओं और लुटेरों की कृपा और दया पर पलता है, वह सच्चा आध्यात्मिक माना जाता है।
और इस प्रकार माफियाओं ने पूरा का पूरा आध्यात्म और धर्म की परिभाषा बदलकर अपने पक्ष में कर ली। उन्होंने गुलाम साधु-संतों और आध्यात्मिक गुरुओं के ऐसे गिरोह तैयार किए, जो जनता को किस्से, कहानियाँ और कथाएँ सुना सुनाकर मनोरंजन करते हैं, स्वर्ग, मोक्ष अप्सरा और हूरों के सपने दिखाते हैं और परोक्ष रूप से जनता के मन में यह भावना बैठाते हैं कि माफियाओं और लुटेरों का विरोध करना आध्यात्मिक और धार्मिकों का काम नहीं हैं।
धीरे-धीरे यही भावना पूरे विश्व की जनता में बैठ गयी और फिर जो गुरु माफियाओं और लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाता पाया जाता, उसे जेल में डाला जाने लगा। जो माफियाओं की नजर में अधिक खतरनाक लगे, उन्हें मृत्यु दंड दिया गया राजद्रोह, देशद्रोह या अन्य कोई गंभीर आरोप लगाकर। परिणाम यह हुआ कि ऐसे गुरु आस्तित्व में आए जो वर्ण और कर्म से वैश्य थे और मन से कायर, लोभी।
ऐसे गुरुओं के पीछे दौड़ने वाली भीड़ स्वार्थियों, लोभियों और कायरों की होती है। और ऐसे स्वार्थियों, लोभियों, कायरों की भीड़ जब गुरुओं के नाम पर संस्था, संगठन या दल बनाते हैं, तो वह भीड़ मात्र बनकर रह जाती है। इनकी संस्था, संगठन और समाज चाहे कितना ही विशाल क्यों ना हो जाए, कभी भी माफियाओं और लुटेरों के विरुद्ध इनकी आवाज नहीं निकलेगी। लेकिन ईशनिन्दा, बेअदबी, गौहत्या के नाम पर किसी कार्टूनिस्ट, किसी गरीब की हत्या करने के लिए लाखों की संख्या में निकल आएंगे सड़कों पर।
चैतन्य व जागृत गुरुओं ने भले ही कितनी अच्छी-अच्छी बातें कहीं हों, कितने अच्छे-अच्छे नियम और सिद्धान्त बनाए हों, लेकिन उन सबका कोई लाभ नहीं होता। यहाँ तक कि उन गुरुओं के द्वारा बनाए गए संगठन, संस्था, पंथ के सदस्यों तक को लाभ नहीं होता।
उदाहरण के लिए जब किसी पंथ या संगठन या दल का कोई सदस्य दरिद्रता से जूझ रहा होता है, भुखमरी में जी रहा होता है, या बेरोजगार भटक रहा होता है, या माफियाओं द्वारा आतंकित किया जा रहा होता है, तब छोटा-मोटा समाज नहीं, बड़े-से बड़ा समाज और संगठन गायब हो जाता है। पीड़ित को सबकुछ अकेले ही झेलना होता है।
लेकिन यही समाज, संगठन, संस्था, पंथ दावा करते हैं कि हमारे दड़बे में आ जाओ, धर्मपरिवर्तन कर लो, तो सबकुछ अच्छा हो जाएगा, सबका भला होने लगेगा। इनसे पूछो कि यदि ऐसा है, तो फिर आपके दड़बे में गरीब, बेबस, लाचार, शोषित लोग क्यों पाये जाते हैं ?
तो कहते हैं वे अपने पूर्वजन्मों के कर्मों की सजा भुगत रहे हैं।
कभी सोचा है कि जो न्यू वर्ल्ड ऑर्डर लाकर पूरे विश्व को सुखी व समृद्ध बनाना चाहते हैं, वे अपने ही देश के बेघरों, बेसहाराओं, बेरोजगारों को सुखी व समृद्ध क्यों नहीं बना पाये आज तक ?
क्योंकि माफियाओं का काम होता है लूटना और लुटवाना। वे किसी का भला करने नहीं आते इस दुनिया में। और जब माफियाओं के अधीन हो जाती है देश की सरकारें, मीडिया, धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु, वैज्ञानिक, डॉक्टर, न्यायालय, तब वे झूठ को भी सही सिद्ध कर देते हैं।
प्राचीनकाल में जब लोग पढ़े-लिखे और वैज्ञानिक सोच के नहीं होते थे, तब ईश्वर और शैतान से भयभीत होते थे। उनपर असीम श्रद्धा और विश्वास था उनका। इसलिए ईश्वर और शैतान का भय दिखाकर या ईश्वर ने कहा है, या ईश्वर का आदेश है कहकर जनता से अपना मन चाहा कार्य करवा लिया करते थे।
फिर लोग पढ़े-लिखे और वैज्ञानिक सोच के हो गए। अब इन्हें ना तो ईश्वर से भय लगता है और ना ही शैतान से। इसीलिए अब वैज्ञानिक और डॉक्टर के नाम से डराया या समझाया जाता है।
अधिकांश वैज्ञानिक और डॉक्टर माफियाओं और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के ही गुलाम होते हैं। वे जनता को बिलकुल वैसे ही भरमाते हैं, जैसे गोदीमीडिया भरमाती है। और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पिछले दो वर्षों में सर्वाधिक स्पष्ट रूप से देखने मिला।
पामोलिव ऑयल से लेकर हरित क्रान्ति के नाम पर खेतों में ज़हर तक बिखेर दिया गया, केवल डॉक्टर और वैज्ञानिक दिखाकर। टीवी में घटिया से घटिया प्रोडक्ट तक पर विश्वास बैठाने के लिए नकली डॉक्टर और वैज्ञानिक दिखाया जाता है।
तो चाहे धर्म हो या विज्ञान, आज सभी कुछ माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के अधीन हैं।
मंदिरों-मस्जिदों के नाम पर दंगे करवा देते हैं, लेकिन स्वयं बिंदास मंदिर और मस्जिद तोड़ते हैं। मंदिर भी बनाते हैं तो आध्यात्मिक उत्थान के लिए नहीं, बल्कि व्यावसायिक पर्यटन स्थल बनाकर कमाने के लिए।
माफियाओं और लुटेरों ने शिक्षा, न्याय, चिकित्सा तक को ना केवल व्यवसाय में रूपांतरित कर दिया, बल्कि इन सबका दुरुपयोग ही किया। शिक्षा के नाम पर ऐसी शिक्षा परोसी गयी, जो इंसान यह मानने के लिए विवश कर देती है कि उसका जन्म चाकरी और गुलामी करने के लिए ही हुआ है। शिक्षा, चिकित्सा और न्याय को इतना महँगा कर दिया गया कि इंसान को अपनी भूमि, गहने जेवर, यहाँ तक कि ईमान, ज़मीर, जिस्म सब बेचना पड़ जाता है। लेकिन माफियाओं की भूख नहीं मिटती।
तिजोरियाँ भरी पड़ी हैं, स्विसबैंक तक में अकाउंट ओवरलोड हो रहा है, लेकिन और अधिक की हवस शांत नहीं हो रही। और दुर्भाग्य से जनता इन्हें अपना अन्नदाता मानकर जी रही है। अन्नदात्री भूमि को बेचकर इनकी गुलामी करने को अपने जीवन का उद्देश्य मान रही है। और इसीलिए स्वयं को धार्मिक और आध्यात्मिक मानने वाले लोग भी माफियाओं और लुटेरों के सामने नतमस्तक हुए पड़े हैं। केवल चैतन्य और जागृत लोग ही इनके विरुद्ध हैं लेकिन इनकी संख्या एक प्रतिशत भी नहीं हैं। इसलिए माफियाओं और लुटेरों का साम्राज्य स्थापित है समस्त विश्व में।