मैंने कल्पना की मोक्ष प्राप्ति के बाद अपनी स्थिति की तो काँप गया

किसी ने कहा कि मानव का जन्म मोक्ष पाने के लिए हुआ है। मानव को भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए श्रम, साधना करने की बजाय, मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रम, साधना करनी चाहिए।
मैंने प्रश्न किया कि मोक्ष प्राप्ति के बाद होगा क्या ?
उत्तर मिला कि मोक्ष मोक्ष प्राप्ति के बाद न शरीर रह जाएगा, न भूख लगेगी, न प्यास लगेगी, न कोई कर्म करना होगा, न कोई रोजगार खोजना होगा……वहाँ केवल आनन्द ही आनन्द होगा।
मैंने कल्पना की मोक्ष प्राप्ति के बाद अपनी स्थिति की तो काँप गया। मुँह से निकला मोक्ष से बदतर ज़िंदगी तो हो ही नहीं सकती। नर्क से भी बदतर ज़िंदगी होगी।
स्वर्ग में भी सुर-सूरा और सुंदरी का साथ मिलने की गारंटी होती है। इसीलिए तो स्वर्ग की कामना से ग्रस्त लोग मंदिरों, तीरथों में चढ़ावा चढ़ाते हैं। अब जब स्वर्ग में सुर, सूरा और सुंदरी मिलनी ही है, तो पंडितों, पुरोहितों से सेटिंग करके स्वर्ग में प्लाट भी एडवांस रिज़र्व करवा लेते हैं। ताकि मरने के बाद जब स्वर्ग पहुँचें, तो प्लाट के लिए मारा-मारी न करनी पड़े।
लेकिन मोक्ष में तो कोई काम ही नहीं रहेगा। ना प्लाट मिलेगा जिसमें अपने सपनों का महल बना पाएँ, न बढ़िया बढ़िया भोजन मिलेगा, ना टिक्की, चाट, भटूरे, गोलगप्पे…..उफ़्फ़ !!! कैसे कोई जी पाएगा वहाँ ?
चलिये भूख नहीं लगेगी, प्यास नहीं लगेगी, तो टिक्की, गोलगप्पे, स्वादिष्ट भोजन की तलब नहीं लगेगी, मान ली। लेकिन फिर करेंगे क्या वहाँ ?
बॉडीलेस लाइफ !!!
बैठे रहो सारे दिन…अरे वहाँ तो रात होती ही नहीं….यानि कितने दिन बीत गए, यह भी नहीं पता चलेगा ?
ना स्मार्टफोन होगा, न फेसबुक होगा, ना व्हाट्सेप, न इन्स्टाग्राम !!!
कल्पना करिए ऐसी दुनिया जहां कोई काम ही नहीं होगा ???
तो सोचिए कर्मवादी लोग वहाँ कैसे जी पाएंगे ?
कर्मवादी छोड़िए, दुनिया का सबसे इंसान भी नहीं जी पाएगा वहाँ !
तो फिर मोक्ष की कामना क्यों ?
मोक्ष और परब्रह्म में विलीन होने की कामना का मुख्य आधार क्या है ?
यदि हम देखें तो अंबानी, अदानी, मोदी, माल्या, चोकसी और सत्तापक्ष के नेताओं के सपनों में न तो मोक्ष आता है, न ही परब्रहम। वे इतने व्यस्त होते हैं कि उनके पास तो मरने तक का समय नहीं होता।
फिर इन्हें जो भी चाहिए होता है, सब उपलब्ध होता है। अब जिनकी सभी मनोकामनाएँ चंद रुपए खर्च करने पर ही पूरी हो जाती हों, बैंक भी कर्ज देते हों मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए और फिर कभी वापस ना मांगते हों, तो भला कोई क्यों कल्पना करेगा मोक्ष और परब्रह्म की ?
मोक्ष और परब्रह्म की कामना वे लोग करते हैं, जिनके जीवन में दुख हैं, अभाव है। गृहक्लेश से त्रस्त हैं, या फिर अब करने के लिए कोई काम न रह गया हो, जीवन का कोई उद्देश्य ना रह गया हो, जीने की इच्छा समाप्त हो गयी हो।
ध्यान दीजिएगा कभी कि जितने भी लोग मोक्ष, परब्रह्म के स्वप्न दिखाते हैं, वे स्वयं चंद रुपयों के लिए कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते मिलेंगे। कई तो महंगे महंगे शिविर लगाते हैं मोक्ष और परब्रह्म पर उपदेश देने के लिए, मोक्ष प्राप्त करने की विधियाँ बताने के लिए।
मोक्ष पाने और परब्रह्म में लीन होने की सर्वोच्च विधि है निकम्मा, निठल्ला हो जाओ। किसी पेड़ के नीचे ध्यान में बैठ जाओ और जल व भोजन त्याग दो। कुछ ही दिनों में मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।
मेरे विचार से जितने भी लोग मोक्ष की कामना में भटक रहे हैं, उन्हें नौकरियों का त्याग कर देना चाहिए। उन्हें बिजनेस, बेंकबेलेन्स का भी त्याग कर देना चाहिए। उन्हें अन्न-जल, वस्त्र का भी त्याग कर देना चाहिए। उन्हें प्रायोजित महामारी का महा सुरक्षाकवच भी नहीं लेना चाहिए। उन्हें शुगर, बीपी की दवाओं का भी त्याग कर देना चाहिए। और जो यह सब कर लेगा, निश्चित ही कुछ ही दिनों में मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा।
और हाँ ऐसा करने से पहले जो साधु-संत, बाबा, पंडित-पुरोहित मोक्ष की महिमा का गुणगान करते हैं, उन्हें पकड़ कर मोक्ष दिलाइए।
मोक्ष अर्थात मुक्ति जीते जी भी प्राप्त हो सकता है
मोक्ष अर्थात मुक्ति वह नहीं जो सदियों से किताबी साधु-संत, बाबा, धर्मगुरु आदि बताते चले आ रहे हैं। वे आम जनता को बरगालते रहे, ताकि कोई सरकार के उत्पातों के विरोध ना करे और मोक्ष की कल्पनाओं में खोया रहे।
मृत्यु के बाद जो होगा सो होगा, लेकिन मोक्ष यानि मुक्ति तो जीते जी भी प्राप्त हो सकता है।
यदि आप स्वतंत्र हैं अपना निर्णय स्वयं लेने के लिए। यदि आप स्वतंत्र हैं अपनी जीवन शैली स्वयं चुनने के लिए। यदि आप दूसरों के द्वारा थोपी हुई मान्यताओं को ढोने के लिए बाध्य नहीं हैं। यदि आप प्रायोजित सरकारी महामारी से आतंकित होने और आतंकित होकर फर्जी सुरक्षाकवच लेने के लिए बाध्य नहीं हैं। यदि आप माफियाओं, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी, चापलूसी करने के लिए बाध्य नहीं हैं, तो आप मुक्त हैं।
मोक्ष की स्थिति निष्क्रिय हो जाना नहीं, स्वविकेकानुसार, स्वतन्त्रता पूर्वक जीना ही मोक्ष है। और जिस प्रकार का मोक्ष बताया जाता है मृत्यु के बाद, तो निश्चित मानिए कभी नहीं चाहूँगा की मुझे मोक्ष मिले मृत्यु के बाद, भले सदियों तक भटकती रहे मेरी आत्मा ब्रह्माण्ड में।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
