जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी!

विजय माल्या और अन्य शराबियों पर यह स्लोगन परफेक्ट बैठता है;
” जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी !“
जो सुख जीते जी भोगा, वही सुख मरने के बाद भी स्वर्ग पहुँचने मिलना है। यानि सुर-सूरा और सुंदरी।
स्वर्ग हो, या जन्नत या हेवन, सभी में पुरुषों के लिए विशेष पैकेज आरक्षित हैं। तो स्वाभाविक है कि पुरुष जीने से अधिक मरना पसंद करेगा। इसीलिए त्याग, बैराग, ब्रह्मचर्य के नाम पर पुरुषों को दीन-हीन, भूखा, नंगा जीने के लिए विवश किया जाता है। पुरुष भी बेचारे घर-बार, बीवी बच्चे त्याग कर साधु-संत बने घूमने लगते हैं इस उम्मीद में कि मरने के बाद सारी कसर स्वर्ग में जाकर पूरी कर लेंगे।
लेकिन स्त्रियाँ क्यों स्वर्ग, जन्नत या हेवन जाने के लिए गरीबी, भुखमरी, बेबसी का जीवन जीती हैं ?
इन्हें क्या मिलना है मरने के बाद ?

क्या किसी को पता है कि स्वर्ग, जन्नत और हेवन में स्त्रियों के लिए क्या पैकेज निर्धारित किया गया है ?
यह एक तस्वीर वायरल हो रही है सोशल मीडिया पर। इस तस्वीर में विशेष केवल इतना है कि कुछ जैन साध्वी जा रही हैं और एक सैनिक उन्हें प्रणाम कर रहा है, लेकिन पहले अपने जूते उतार लिए।
बड़ा मनोहारी दृश्य है, किताबी धार्मिक लोग गदगद हुए जा रहे हैं।
साधु-संतों का सम्मान होना ही चाहिए, यदि वे वास्तव में अधर्म, अन्याय, अत्याचार शोषण के विरुद्ध हैं। यदि साधु-संत “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जी रहे हों, तो इनमें और सरकारों, सरकारी अधिकारियों, वैश्यों और राजनेताओं, राजनैतिक पार्टियों के भक्तों में कोई अंतर नहीं है।
यदि साधु-समाज देश व जनता के लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस नहीं कर पा रहा, तो निश्चित ही वे साधु-संत नहीं एक साधारण स्वार्थी प्राणी ही हैं।
और मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि स्वयं को कष्ट देकर जीने से देश या समाज का क्या हित होता है ?
केवल यही होता है कि इनके कष्टों को देखकर जनता दया से भर जाती है और दिल खोलकर दान-दक्षिणा देती है, जिससे स्वर्णाभूषित मंदिर बनाए जाते हैं, इन्हें पालने पोसने वाली संस्थाएं और संगठन लाखों करोड़ों कमाते हैं।
जैन समाज में तो किसी साधु-संत की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी अंतिम यात्रा पर भी बोलियाँ लगती हैं। अर्थी को कंधा देने से लेकर अंतिम क्रिया तक की बोली लगाई जाती है। करोड़ों रुपए कमाए जाते हैं साधू-संतों की लाशों से भी।
और फिर नौटंकी करते हैं त्याग बैराग की ?
कुछ बेचारों को त्यागी बैरागी बनाकर उनपर अत्याचार करते हैं कुछ लोग केवल धन के लोभ में। और जो समाज ऐसे त्यागी बैरागियों को पूजता है, वह स्वयं सारे ऐश्वर्य भोगना चाहता है, लाखों करोड़ों का व्यापार करता है, शादी ब्याह में भी दिल खोलकर पैसे बहाता है। लेकिन कभी भी देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाता।
~ विशुद्ध चैतन्य
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