उदारता उतना ही सही है, जितने से अपना अहित न हो रहा हो

उस दिन भी चुनमुन परदेसी अपनी बस लेकर निकला था। रास्ते में सवारियां मिलती रहीं उन्हें बैठाता रहा।
बहुत खुश था चुनमुन क्योंकि आज सवारियाँ की बाढ़ आई हुई थी, बिल्कुल हिलसा मछली की तरह।
बस हमेशा की तरह अपनी राह चल रही थी। एक बूढ़ी अम्मा ने चुनमुन को आवाज लगाई, “बेटा आगे जो गली आ रही है, उसमें ले लेना।”
चुनमुन बोला, “अम्मा बस सीधी जाएगी गली में नहीं।”
बूढ़ी अम्मा जोर जोर से रोने लगी, “हाय मेरे घुटने में दर्द है, कमर में दर्द है, सर में दर्द है…मैं भला पैदल कैसे जाऊंगी अपने घर ?”
चुनमुन को दया आ गयी। और फिर सभी धार्मिक ग्रंथो में लिखा है दुखियों, निर्बलों, असहायों की सहायता करना ही धर्म है। उसने बस गली के भीतर ले ली। पूछा कितनी दूर है आपका घर ?
बुढ़िया बोली तनिक दूर और..
तनिक दूर और…करते करते कई किलोमीटर अंदर ले गयी और एक झुग्गी के सामने उतर गयी।
बाकी सवारियाँ देर होने के कारण चुनमुन को बहुत कोस रही थी। चुनमुन का भी दिमाग खराब हो रहा था कि भलाई महंगी पड़ गयी।
चुनमुन बस को वापस मोड़ता, उससे पहले ही दो तीन सवारियाँ और आ गईं और कहने लगीं; “अरे भैया जब यहाँ तक आ ही गए हो, तो थोड़ी दूर और ले चलो, हमारे रिश्तेदार का घर है वहाँ। चाय नाश्ता कर लेते हैं, फिर चलेंगे।”
किसी ने कहा कि नहीं आगे से जो गली दायें मुड़ रही है, वहाँ ले लो। बढ़िया चाय मिलती है वहाँ।
खैर चुनमुन सबकी मनोकामनाएँ पूरी करता चला गया और शाम तक उसकी बस इधर उधर भटकती रही। फिर थक-हार कर चुनमुन ने बस में बैठी सवारियों से पूछा कि आप सब ने जब टिकट ली थी, तब कहाँ जाने के लिए थी ?
सब ने कहा कि जाना तो वहीं है जहां की टिकट ली थी, लेकिन जब बस का ड्राइवर ही भारत भ्रमण करवाने के मूड में हो, तो फिर ऐसे अवसर हम क्यों चूकें ?
उदारता उतनी ही सही है, जितनी से अपना अहित न हो रहा हो
उदारता उतनी ही सही है, जितनी से अपना अहित न हो रहा हो, अपनी राह ना भटक रही हो। वरना यहाँ किसी को चिंता नहीं कि आपका समय कितना कीमती है या आपका कितना अहित हो रहा है। यह दुनिया ऐसे लोगों के भरी हुई है, जो व्यक्तिगत स्वार्थों के हितों के लिए किसी की हत्या करने या किसी का घर जला देने में भी संकोच नहीं करता।
जिन्हें हम सभ्य, धार्मिक और पढ़ा लिखा मानते हैं, उनसे अधिक क्रूर, स्वार्थी और परजीवी तो वे भी नहीं, जिन्हें हम हिंसक जानवर कहते हैं। वे भी केवल अपने भोजन के लिए शिकार करते हैं, तिजोरी भरने के लिए जन संहार यानि कत्ल-ए-आम नहीं करते।
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