अपने-अपने अहंकार पर सबको बड़ा नाज़ है
किताबी और पारंपरिक धार्मिकों का अहंकार है कि हम महान हैं क्योंकि हमारे आराध्य, हमारे पूर्वज, हमारे गुरु, हमारे पैगंबर महान थे।
डिग्रीधारी नास्तिकों का अहंकार है कि हम महान हैं, क्योंकि वैज्ञानिक नास्तिक हैं, डॉक्टर्स नास्तिक हैं, आविष्कारक नास्तिक हैं।
उड़ रहे हैं सभी अपनी अपनी काल्पनिक महानताओं की ऊंचाइयों में बिना यह देखे कि उनका अपना समाज कर क्या रहा है।
ये दोनों ही प्रजातियाँ थर्रा जाती हैं प्रायोजित महामारी के आतंकियों द्वारा फैलाये गए अफवाहों पर। तब किताबी आस्तिकों, धार्मिकों की ईश्वरीय शक्तियाँ और प्राकृतिक रोगप्रतिरोधक क्षमता काम करती है, ना ही नास्तिकों की वैज्ञानिक बुद्धि काम करती है।
समाज चाहे आध्यात्मिकों और धार्मिकों का हो, या फिर नास्तिकों का। सभी सरकार भरोसे बैठे मिलेंगे। अपने अपने खेत बेचकर नौकरियाँ खोज रहे हैं, सरकारी आरक्षण के दम पर अपना भाग्य बदल रहे हैं….लेकिन अकड़े पड़े हैं कि हमारे पूर्वज महान थे इसलिए हम महान हैं।
पूर्वजों ने तो गाँव बसा दिए, शहर बसा दिये, देश बसा दिये….इन्होंने क्या किया ?
बसे बसाये गांवों को उजाड़ दिया, जंगलों को उजाड़ दिया। जो किसान ज़मीनों के मालिक थे, उन्हें अब नौकर बना दिया, मजदूर बना दिया।
पूर्वजों ने प्रकृति की रक्षा की, नदियों की रक्षा की, वनों की रक्षा की। इनहोंने क्या किया ?
जंगल उजाड़ दिया, नदियों को दूषित कर दिया दिया अपनी वैज्ञानिक बुद्धि से, सागर को दूषित कर दिया, पर्यावरण को दूषित कर दिया।