कभी भी आदर्श या मसीहा बनने की कोशिश मत करना

यदि अब तक आए मसीहा, पैगंबर, तीर्थंकर, अवतार, समाज सुधारक, गुरुओं के जीवनियों पर नजर डालें, तो लगभग सभी ने बलिदान दिया समाज की आँखें खोलने के लिए।
लेकिन क्या समाज की आँखें खुलीं कभी ?
उन्होंने दुनिया भर के कष्ट सहे, तिरस्कार सहा, सामाजिक बहिष्कार से लेकर क्रूर अमानवीय यातनाएँ सहीं। लेकिन क्या कोई फर्क पड़ा समाज पर ?
हर बार चैतन्य आत्माएँ आती हैं पृथ्वी पर, कष्ट और यातनाएँ सहती हैं और विदा हो जाती हैं। लेकिन समाज अपनी भेड़चाल में चलता रहता है।
बहुत अधिक कोई प्रसिद्ध गुरु या मसीहा, या पैगंबर हुआ, तो उसके नाम पर एक नया सम्प्रदाय खड़ा कर लिया जाता है और फिर धंधा शुरू। न कोई सामाजिक चेतना जागृत होती है, न ही समाज का कोई उत्थान होता है। केवल दिन प्रतिदिन नीचे ही गिरता चला जाता है।
फिर सबसे बड़ी बात यह कि पहले तो कभी कहीं समाज हुआ भी करता था, क्योंकि परस्पर सहयोगिता अनिवार्य था जीवित रहने के लिए। लेकिन आज ऐसी कोई बाध्यता नहीं है, इसलिए समाज भी अब लुप्त हो गया। अब तो केवल गिरोह हैं, पार्टियाँ हैं, संगठन हैं, संस्थाएं हैं, लेकिन समाज नहीं।
और ये जो गिरोह बनते हैं, वह उन्हीं लोगों के बनते हैं, जो स्वार्थी हैं, व्यक्तिगत स्वार्थो में लिप्त हैं। इन्हें कोई मतलब नहीं देश के लुटने या बर्बाद होने से। इन्हें कोई मतलब नहीं वनों, खेतों, तालाबों, झीलों, नदियों के नष्ट होने से। क्योंकि ये लोग पैसे कमाने के लिए आए हैं और कमाते हुए मर जाएँगे, तो समय ही नहीं कुछ और देखने सोचने का।
अब ऐसे स्वार्थियों के गिरोह का आदर्श या मसीहा बनने का लाभ क्या ?
ये तो आपको बलि का बकरा बनाकर बलिदान कर देंगे व्यक्तिग्त स्वार्थों के लिए। इन्हें भले आपकी मौत से लाभ हो जाये, लेकिन आपको क्या लाभ होगा ?
जीते जी दुनिया भर के कष्ट भोगो और मरने के बाद ये भेड़ों और भेड़ियों का गिरोह आपकी प्रतिमा बना देगा, आपकी समाधि बना देगा, मजार या मकबरा बना देगा। फिर भले करोड़ों लोग आकर पूजें आपको आपके मरने के बाद, उससे लाभ क्या होगा ?
क्या आपको स्वर्ग, जन्नत या हेवेन में प्लाट मिल जाएगा ?
क्या अप्सराएँ, शराब और कबाब मिल जाएगी स्वर्ग, जन्नत या हेवेन में ?
या फिर भेड़ों और भेड़ियों का समाज देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध हो जाएगा ?
रिश्वतखोर अधिकारियों, नेताओं और सरकारों के विरुद्ध आंदोलन करेगा ?
या फिर प्रायोजित महामारी के आतंकियों द्वारा फैलाये जा रहे आतंक से आतंकित होना बंद कर देगा ?
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। आदर्शों, आराध्यों, तीर्थंकरों को पूजने वाली भीड़ हमेशा की तरह अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर विदेशों में सेटल करेगी, या फिर सरकारी नौकरी करवाएगी और भूल जाएगी कि अराध्यों ने क्या शिक्षा दी थी। क्योंकि अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों का सहयोगी होना आज बड़े गौरव की बात मानी जाती है। माता पिता बड़े शान से बताते हैं कि हमारा बच्चा सरकारी अधिकारी या कर्मचारी है और देश व जनता को लूटने में सरकार का सहयोग कर रहा है।
या फिर बताएँगे कि हमारा बच्चा तो विदेश में सेटल हो गया और अब हम भी उसके साथ विदेश मे सेटल होने जा रहे हैं। लेकिन विदेशों में सेटल होने के बाद भी देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध मुँह नहीं खोलेंगे। केवल शोर मचाएंगे कि हमारे आराध्य, हमारे आदर्श, हमारे पैगंबर, हमारे तीर्थंकर महान थे, उन्होंने समाज को जगाने के लिए बलिदान दिया, दुनिया भर के कष्ट सहे।
यदि पूछो कि जब उन्होने समाज को जगाने के लिए कष्ट सहे, तो फिर आप लोग क्यों नहीं जागे ?
तो शर्माते हुए कहेंगे कि जाग तो गए थे, लेकिन मुँह खोलते तो नौकरी चली जाती, जेल भी हो सकती थी, वीज़ा कैंसल हो सकता था… बस इसीलिए सोये पड़े रहे। बाकी हम सच्चे देशभक्त हैं, देश के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं, लेकिन नौकरी, वेतन और पेंशन का बलिदान नहीं कर सकते।
इसीलिए मसीहा और आदर्श बनकर ऐसे स्वार्थियों की भीड़ के लिए बलिदान होना सिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं है। बल्कि वह करिए, जो आपका अन्तर्मन कहते हैं करने के लिए। जिसको करने से स्वयं की आत्मा को संतोष मिलता हो, सुख मिलता हो। फिर भले सारी दुनिया आपके विरुद्ध ही क्यों न हो जाये।

सफलता का पैमाना या आदर्श उन्हें मत बनाइये, जो आपको सफल दिखाई दे रहे हैं। हो सकता है वे लोग अच्छे नस्ल के गुलाम हों, इसलिए उनके मालिकों से उन्हें लाढ़-दुलार मिल रहा हो ?
हो सकता है वे नेता, अभिनेता, पार्टी, बाबा, अंबेडकर, मोदी भक्तों की तरह भेड़ें हों, इसलिए भेड़ों का समाज उन्हें अच्छे अच्छे चारे दे दे रहा हो ?
यदि ध्यान दें, तो जो भी जनता के हितों के विरुद्ध होता, लेकिन जनता को लूटने और लुटवाने वाले माफियाओं का पक्ष में होता है , सर्वाधिक सम्मान उन्हीं का होता है समाज और सरकारों द्वारा।
इतिहास उठाकर देखलीजिये, जो भी अधर्म के विरुद्ध रहा, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों के विरुद्ध रहा, समाज और सरकारों ने उन्हे तिरस्कृत किया, बहिष्कृत किया, यहाँ तक कि ज़हर दिया, सूली पर चढ़ा दिया। क्योंकि समाज कभी भी धार्मिक नहीं था, और न ही कभी धार्मिक हो पाएगा।
इसीलिए ऐसे समाज में सफल व्यक्ति होता है, जो झूठ बोलने में माहिर होता है, जनता को बरगलाने में माहिर होता है, देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का समर्थक और सहयोगी होता है।
यदि आप किसी निर्दोष, असहाय का अहित नहीं कर रहे लेकिन फिर भी समाज ने आपको ठुकरा दिया, सरकारों ने आपको अपना दुश्मन समझ लिया, तो निश्चित मानिए कि आप धर्मपथ पर हैं। और जो धर्म के पथ पर होता है, उसे ना समाज सहन कर पाता है, न सरकारें और न ही माफिया।
और जो व्यक्ति सारी दुनिया को अपना विरोधी बना लेने का साहस रखता हो, भले जीते जी उसे कोई सुख न मिले, कोई अपना न मिले। लेकिन मरते समय इस संतोष के साथ मरेगा कि भेड़ों-बकरियों के झुण्ड का जमुरा, गुलाम नहीं बना और जो काम करने आया था इस दुनिया में वही किया।
और ऐसे व्यक्ति मरते समय स्वर्ग, जन्नत, हेवेन की कामना भी नहीं करते। क्योंकि ये सब उनके लिए हैं, जो जीवन भर अपना ईमान, ज़मीर, जिस्म बेचकर देश व जनता को लूटने वालों की गुलामी करते रहे। चैतन्य/जागृत लोगों के लिए स्वर्ग, जन्नत, हेवन सब मानसिक स्थिति है। कोई झोपड़ी में रहकर भी स्वर्गमय जीवन का आनन्द पा लेता है कोई कोई आलीशान कोठी में रहकर भी नर्क भोग रहा होता है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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