परतंत्रता में निश्चय ही सुविधा है और सुरक्षा भी

क्या आप स्वतंत्र हैं?
यह प्रश्न जितना साधारण लगता है, उतना ही गहरा और चुनौतीपूर्ण है। इस संसार में ऐसे अनगिनत लोग हैं, जो स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं, जबकि उनका जीवन परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यह परतंत्रता केवल बाहरी नहीं है; यह भीतर तक फैली हुई है।
स्वतंत्रता का अर्थ केवल बाहरी कैद से मुक्ति नहीं है। यह आत्मा की गहराइयों तक पहुंचने का आह्वान है। लेकिन, सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो व्यक्ति अपनी दासता को पहचान ही नहीं सकता, वह स्वतंत्रता की ओर कदम भी नहीं बढ़ा सकता।
परतंत्रता की सुविधा और सुरक्षा
परतंत्रता में निश्चय ही सुविधा और सुरक्षा है। जब हम परंपराओं, मान्यताओं और रूढ़ियों के सहारे जीते हैं, तो सोचने और प्रश्न करने के श्रम से बच जाते हैं।
- सुविधा: दूसरों के विचारों को अपनाने में है, जिससे हमें स्वयं विचार करने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
- सुरक्षा: इस विश्वास में है कि हम भीड़ के साथ हैं, अकेले नहीं।
यह सुविधा और सुरक्षा इतनी मोहक होती है कि कैदी स्वयं ही अपने कारागृह की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। यह अवस्था केवल बाहरी कारागृह तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे मन और विचारों तक फैली हुई है।
परंपराएं और अंधविश्वास: आंतरिक कारागृह
हमने अपने भीतर के बंधनों को इतना अपनाया है कि अब उनका अस्तित्व ही महसूस नहीं होता।

- परंपराएं,
- अंधविश्वास,
- रूढ़ियां,
- संप्रदाय, और
- शास्त्र हमारे विचारों को नियंत्रित करते हैं।
इन बंधनों के कारण हमारा मन जड़ता में फंसा रहता है। हमने स्वयं को सोचने और देखने की स्वतंत्रता से वंचित कर लिया है। और इस अवस्था में ज्ञान का जन्म कैसे होगा?
स्वतंत्रता: जीवन का वास्तविक उद्देश्य
स्वतंत्रता का अर्थ केवल बंधनों को तोड़ना नहीं है। इसका अर्थ है स्वयं का मार्ग खोजना।
- जीवन में कोई बना-बनाया रास्ता नहीं होता।
- हर व्यक्ति को अपने श्रम और विवेक से अपना मार्ग बनाना पड़ता है।
- जीवन जड़ता में बंधे रास्तों पर चलने का नाम नहीं है।
ओशो के अनुसार, “वास्तविक स्वतंत्रता तो स्वयं के लिए स्वयं ही मार्ग निर्मित करने में निहित होती है।”
स्वतंत्रता से ही व्यक्ति सत्य और आत्मा तक पहुंच सकता है। यह वही अवस्था है, जहां बीज अपने भीतर छिपे वृक्ष को साकार कर सकता है।
स्वतंत्रता का बीज: परम आनंद का द्वार
मनुष्य केवल एक शुरुआत है।
- वह परमात्मा तक पहुंचने का माध्यम है।
- लेकिन जब तक व्यक्ति आंतरिक स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं करता, तब तक वह अपनी पूर्णता को नहीं पा सकता।
ओशो कहते हैं:
“स्वतंत्रता से बड़ा न कोई आनंद है, न कोई उपलब्धि।”
आंतरिक स्वतंत्रता ही वह द्वार है, जो मनुष्य को उसकी पूर्ण संभावना तक पहुंचा सकता है।
समापन: स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाएं
स्वतंत्रता का अर्थ केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं है। यह आंतरिक कैद से बाहर निकलने और आत्मा की गहराई तक पहुंचने का नाम है।
- क्या आप अपने भीतर के बंधनों को पहचानते हैं?
- क्या आप उन बंधनों को तोड़ने का साहस रखते हैं?
ध्यान दें: जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं है, बल्कि अपनी पूरी संभावना को साकार करना है। और यह तभी संभव है, जब हम अपनी परतंत्रता को छोड़कर स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाएं।
ओशो की यह बात हमेशा याद रखें:
“परतंत्रता जड़ता है, और स्वतंत्रता आत्मा। जीवन का विकास जड़ता से आत्मा की ओर है।”
ओशो प्रवचन “अमृत कण – स्वतंत्रता (08)“ पर आधारित लेख
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