इन्सानों, पशु-पक्षियों की चिंता करने वाले दुर्लभ हैं

हम सारी दुनिया का बोझ अपने सर नहीं ले सकते और आवश्यकता भी नहीं है सारी दुनिया की समस्याओं पर दुखी होने, या चिंता करने की। मैं भी बहुत सी बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं पर दुखी नहीं होता, जब पता चलता है दुर्घटना किसी जाति या मजहब, पंथ, या पार्टी विशेष सदस्यों के साथ घटी है। क्योंकि मैं जानता हूँ उनके लिए दुखी होने के लिए पार्टी है, संगठन है, संस्थाएं हैं, सरकारें हैं।
लेकिन मुझे दुख होता है जब किसी इंसान या पशु-पक्षी के साथ कुछ बुरा हो जाता है। क्योंकि इस दुनिया में केवल ये ही तीन ऐसे प्राणी हैं, जिनके हितों की रक्षा के लिए कोई संगठन नहीं, कोई संस्था नहीं, कोई सरकार।
सभी अपनी अपनी जातियों, पंथों, मजहबों के सदस्यों की चिंता करते हैं। कोई हिंदुओं की चिंता करता है, कोई मुसलमानों की चिंता करता है, कोई कॉंग्रेसियों की चिंता करता है, कोई भाजपाइयों की चिंता करता है, कोई मोदीवादियों की चिंता करता है, कोई अंबेडकरवादियों की चिंता करता है, कोई गांधीवादियों की चिंता करता है, कोई दलितों की चिंता करता है, कोई सवर्णों की चिंता करता है….इन्सानों, पशु-पक्षियों की चिंता करने वाले दुर्लभ हैं।
और मैं उन दुर्लभ लोगों में से एक हूँ। जैसे बाकी सभी अपनी अपनी जतियों, पार्टियों, संस्थाओं, संगठनों के सदस्यों के हितों के लिए कुछ नहीं कर पाते सिवाय नारेबाजी करने और फेसबुक पर पोस्ट लिखने के, वैसे ही मैं भी कुछ नहीं कर पाता इन्सानों, पशु-पक्षियों के हितों के लिए।
वे लोग बड़े बड़े संगठन, संस्था, सरकार बनाकर लाखों करोड़ों का चंदा बटोरकर भी कुछ नहीं कर पाते और मैं इसलिए कुछ नहीं कर पाता क्योंकि अकेला हूँ, बेरोजगार हूँ, निकम्मा हूँ, आलसी हूँ गरीब हूँ।
~ विशुद्ध चैतन्य
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