चुनमुन परदेसी और आराम का समय
कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। चुनमुन परदेसी नामक महान संन्यासी हुआ करते थे। उन्हें लिखने का बड़ा शौक था और और उनकी लिखी हजारों किताबें मार्किट में उपलब्ध थीं। लोग उनकी किताबें पढ़कर प्रेरणा लेते थे। बहुत से बच्चे तो उन्हीं की किताबें पढ़कर बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी बन चुके थे। लेकिन देखा किसी ने नहीं था उन्हें।
एक दिन कुछ मीडिया वालों को खुजली हुई कि जाकर चुनमुन परदेसी का इंटरव्यू लिया जाये और साथ ही उनकी दिनचर्या दुनिया के सामने लाई जाये। तो पहुँच गए खोजते खोजते चुनमुन परदेसी के पास।
जब मीडिया पहुँची तो चुनमुन परदेसी एक पेड़ के नीचे आराम से लेटा हुआ था। मीडिया ने तो सोचा था कि चुनमुन परदेसी बहुत बिज़ी व्यक्ति होगा, लेकिन वह तो मस्त लेटा हुआ था निश्चिंत।
मीडिया ने पूछा क्या यह आपके आराम का समय है ?
चुनमुन बोला मेरे लिए तो हर समय आराम का ही होता है।
मीडिया ने पूछा कि फिर काम कब करते हो ?
चुनमुन आश्चर्य से पूछा, “काम ? वह क्या होता है ?”
मीडिया: “जी मेरा मतलब किताबें लिखना, दो पैसे कमाना, घर की साफ-सफाई, भोजन आदि की व्यवस्था……”
चुनमुन: “अरे आप लोग इन सब कार्यों को काम कहते हो ? मेरे लिए ये सब कोई काम है ही नहीं। जब जो करने के मन करता है कर लेता हूँ, नहीं तो आराम करता हूँ।”
मीडिया: “लोग तो काम करके जब थक जाते हैं, तब आराम करते हैं ?”
चुनमुन: “मैं तो ऐसा कोई काम करता ही नहीं, जिससे थकान हो। क्योंकि भोजन बनाना हो, या साफ सफाई या लेखन, सभी मेरे शौक हैं और शौक कोई भी हो, थकान नहीं पैदा करता। थाकान केवल उन्हीं कामों से होती है, जो करना नहीं चाहते लेकिन दिखाने के लिए कर रहे हैं या फिर किसी मजबूरी में कर रहे है।”
उदाहरण के लिए पूजा-पाठ, रोजा-नमाज, व्रत-उपवास, भजन-कीर्तन, तीर्थाटन और देशभक्ति ऐसे काम हैं, जो दिखाने के लिए किए जाते हैं, या फिर मजबूरी में। साल में कुछ विशेष दिन लोग धार्मिक बनते हैं और केवल दो दिन देशभक्त बनते हैं। बाकी पूरे साल देश व जनता को लूटने वालों की चाकरी करते हैं, जय-जय करते हैं, स्तुतिवंदन करते हैं और बदले में पाँच किलो फ्री का राशन और फ्री की बिजली पाते हैं पुरुसकार स्वरूप।
केवल इन दो दिनों (स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस) की देशभक्ति में ही पूरा देश इतना थक चुका होता है कि पूरे साल फिर देशभक्त बनने का साहस नहीं कर पाता। साल भर अपना ईमान, ज़मीर जिस्म बेचकर दो पैसे कमाता है और उन पैसों से अपने बीवी बच्चे पालता है, राजनैतिक, साम्प्रदायिक, जातिवादी पार्टियों और उनके नेताओं को पालता है, सरकार और सरकारी अधिकारियों को पालता है, उलूल-जुलूल टैक्स भरता है, जुर्माने भरता है।”
चुनमुन परदेसी आगे कुछ कहता, उससे पहले ही मीडिया वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गयी।