चुनमुन परदेसी और देवताओं का भोजन

कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। चुनमुन परदेसी नामक एक राजा किसी राज्य में राज करता था। बचपन से ही खाने-पीने का बहुत शौक था उसे, इसीलिये हर दिन नए नए व्यंजन बनवाता। ऐसा कोई व्यंजन नहीं था, जिसका स्वाद ना लिया हो उसने। दिन भर कुछ ना कुछ खाता रहता था।
एक दिन शिकार के लिए निकला तो अपने साथियों से बिछड़ गया। घने जंगलों में भटकते भूख प्यास से बेहाल हो गया था और अंधेरा भी घिरने लगा था। तभी उसे एक झोंपड़ी दिखाई दी जिसके बरामदे में एक साधु बैठा हुआ था।
चुनमुन ने चैन की सांस ली और जाकर साधु को प्रणाम किया और अपनी आपबीती बताकर बोला कि मैं भूख से बेहाल हूँ, मुझे भोजन चाहिए।
साधु बोला: “आ जाओ भीतर हाथ मुँह धोकर भोजन तैयार है।”
चुनमुन हाथ पैर धोकर भोजन के लिए बैठा तो देखा कि थाल में उबला हुआ शकरकंद और कोई जंगली फल था। चुनमुन को ऐसा भोजन पहले कभी नहीं मिला था शाही भोजन का आदि था। लेकिन भूख के मारे दिमाग काम करना बंद कर चुका था, तो तुरंत सबकुछ चट कर गया।
उसे भोजन बहुत ही स्वादिष्ट लगा था और अब बुरी तरह नींद आ रही थी। साधु को धन्यवाद कर सो गया।
सुबह जब उठा तो साधु ने भोजन तैयार कर लिया था और भोजन में वही था, जो रात में खाया था। राजा को एक ही भोजन रोज खाने की आदत नहीं थी, इसलिए उसने पुछा कि और कुछ नहीं मिलता क्या यहाँ ?
साधु बोला कि इस जंगल में और कुछ नहीं मिलेगा यही है खाने के लिए और ये कोई साधारण भोजन नहीं है। बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं को भी ऐसा भोजन नहीं मिलता क्योंकि ये देवताओं का भोजन है। चूंकि हम साधु-संन्यासी सीधे देवताओं के संपर्क में रहते हैं, इसीलिए हमें यह भोजन उपलब्ध होता है।
चुनमुन परदेसी स्वयं को सौभाग्यशाली मानकर वह भोजन किया और यही भोजन करते हुए हफ्ता बीत गया। चूनमन परदेसी के मंत्री और सैनिक खोजते हुए पहुंचे हफ़्ते भर बाद। चुनमुन जब अपने राज्य पहुंचा तो घोषणा करवा दी कि हमारे राज्य की जनता केवल देवताओं द्वारा किया जाने वाला भोजन ही करेगी। पूरे राज्य में उबला हुआ शकरकंद राष्ट्रीय भोजन होगा और जो भी शकरकंद के अलावा कुछ और बनाएगा या खाएगा, उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा।

पूरे राज्य की जनता आश्चर्यचकित रह गयी, कि राजा को ये कैसा पागलपन का दौरा पड़ा है ?
लेकिन राजा का आदेश था, तो पालन करना ही था। तो पूरे राज्य में शकरकंद के सिवाया और सभी प्रकार के खाद्य सामग्रियों पर प्रतिबंध लग गया। और चूंकि देवताओं का भोजन कर रहे थे सभी, तो कुछ ही महीनों में पूरा राज्य राजा समेत कुपोषित होने के कारण स्वर्गवासी हो गए।
कथा सार यह कि प्रत्येक प्राणी की अपनी-अपनी शारीरिक, मानसिक आवश्यकताएँ होती हैं। कोई मांसाहारी है, कोई शाकाहारी है, कोई फलाहारी है, कोई दुग्धाहारी और कोई केवल सूर्य की रोशनी पीकर ही स्वस्थ रह लेता है।
अब यदि कोई फलाहारी दूसरों के भोजन की निंदा करे और फलाहार को श्रेष्ठ बताए, तो फिर जो व्यक्ति अन्न, फल, दुग्धाहार का सेवन नहीं करता, केवल सूर्य की रोशनी या हवा पीकर ही जीवित रह लेता हो, तो फिर वह कहेगा कि अन्न, फलाहार, दुग्धाहार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, केवल पापी और अधर्मी लोग ही इनका सेवन करते हैं। सात्विक व्यक्ति को भोजन की आवश्यकता ही नहीं, केवल सूर्य की रोशनी ही पर्याप्त है स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए।
अब आप लोग बताइये कि आप में कितने लोग मांसाहार, शाकाहार, फलाहार, दुग्धाहार त्याग कर केवल सूर्य की रोशनी पर निर्भर रहना चाहेंगे एक सात्विक, आध्यात्मिक और धार्मिक कहलाने के लिए ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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