पड़े हैं भक्तिमार्ग में बिलकुल वैसे, कीचड़ में ध्यानस्थ पड़ा हो सूअर जैसे

कई बरस लगे मुझे यह समझने में कि आध्यात्म और धर्म वह नहीं है, जो सदियों से रटते, रटाते चले आ रहे हैं पारम्परिक धर्माचार्य और आध्यात्मिक गुरु।
आधी उम्र बीत गयी यह समझने में कि ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग, भक्तिमार्ग, कर्तव्यमार्ग, गांधीमार्ग, पटेलमार्ग, चाणक्यमार्ग, रफीमार्ग आदि पर हर रोज सुबह शाम कीर्तन, भजन, रोज़ा-नमाज, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास करके चलने वाले क्यों नहीं हो पाते आध्यात्मिक, धार्मिक और देशभक्त ?
बोधिधर्मन, ओशो, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, श्री श्री आनन्दमूर्ति प्रभात रंजन सरकार, श्री श्री ठाकुर दयानन्द देव जैसे कुछ गिने चुने गुरुओं, नेताओं को छोड़ दें, तो दुनिया के लगभग सभी धर्माचार्यों, आध्यात्मिक गुरुओं ने यही समझाया कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण, भ्रष्टाचार और देश व जनता के लुटेरों का विरोध करना नहीं, बल्कि नौकरी करना, गुलामी करना, ईश्वर, गुरु और नेताओं की स्तुति-वंदन करके मोक्ष, स्वर्ग, जन्नत, हूरें और अप्सराओं को पाना है, जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाना है।
जहां देखो कथावाचक, आध्यात्मिक और धार्मिक गुरु आपको ध्यान सीखा रहे हैं, ईश्वर और मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग बता रहे हैं। ज्योतिषियों का अलग कारोबार चल रहा है भारी-भरकम ग्रहों को इधर-उधर खिसकाकर जजमान के ग्रहदशाओं को सुधारने का।
दुनिया भर के राजनैतिक, जातिवादी, साम्प्रदायिक,,धार्मिक संगठन, संस्थाएं और पार्टियाँ बन चुकी हैं जनता को न्याय दिलाने के लिए, महँगाई और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए। लेकिन इनमें कोई भी नहीं बता रहा कि जब तक लोग सरकारों, माफियाओं और देश व जनता के लुटेरों के सामने नतमस्त्क रहेंगे, जब तक इनके सामने हाथ पसारे नौकरी, अनाज और सुख-सुविधाओं की भीख मांगते रहेंगे, तब तक देश की जनता गुलाम ही रहेगी और समस्याएँ बढ़ती ही चली जाएंगी। क्योंकि ये सभी माफियाओं और लुटेरों के दलाल और गुलाम बनकर अपने ही देश की जनता के साथ विश्वासघात कर रहे हैं।
Sarita Prakash जी जो कि जर्मनी में रहती हैं, से कल बात हो रही थी। उनहोंने बताया कि बिजली का न्यूनतम बिल अगले दो-तीन महीने में 20 यूरो से बढ़कर 50 यूरो हो जाएगा। अर्थात आप बिजली का प्रयोग नहीं भी कर रहे हैं लेकिन कनेक्शन ले रखा है, तो आपको 50 यूरो देना पड़ेगा।
रसोई गैस और पेट्रोल भी अगले वर्ष जनवरी तक 4 से 6 गुना बढ़ने की संभावना है। इसीलिए वे अपना फ्रिज व अन्य बिजली के उपकरण बेच रहे हैं। सरिता जी और उनके पति ने मिलकर तय किया कि सरकारी बिजली पर निर्भरता कम करके सोलर एनर्जी, जेनरेटर आदि पर ध्यान दिया जाये। सामान्य बाजार आदि के कार्य के लिए साइकिल का प्रयोग करते हैं, ताकि अनावश्यक रूप से पेट्रोल खर्च न हो गाड़ियों पर। जैविक हरी सब्जियाँ और फल अपने बगीचे में ही उगाते हैं, इसलिए बाजार से सब्जियाँ और फल खरीदने की अवशयकता नहीं उन्हें।
सरिता जी के गुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने जैविक कृषि, आत्मनिर्भरता को अपनाने और शोषण, लूट और अत्याचार के विरुद्ध संग्राम छेड़ने की शिक्षा दी थी। और सरिता जी अपने गुरु के आदर्श को आत्मसात करने में सफल हुईं। लेकिन दुर्भाग्य से उनका सम्प्रदाय यानि आनन्द मार्ग के आचार्य और अनुयायी आज भी अपने गुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के संदेशों, शिक्षाओं को आत्मसात नहीं कर पाये। इसीलिए वे भक्तिमार्ग को पकड़ लिए और जय-जय, भजन कीर्तन में मस्त हो गए।
आने वाले संकटों को भाँपकर उनसे निपटने का मार्ग खोजने की बजाय, आध्यात्मिक, धार्मिक, सात्विक, आस्तिक, नास्तिक समाज भक्तिमार्ग को पकड़कर बैठ जाता है। क्योंकि धर्माचार्यों और आध्यात्मिक गुरुओं ने यही सिखाया कि ध्यान करो, पड़े रहो सूअरों की तरह ईश्वर स्वयं आएंगे और अधर्मियों, अत्याचारियों और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का नाश करेंगे।
सारांश यह कि आनन्दमार्ग, ईस्कोन की ही तरह अन्य सभी पंथों ने अपने गुरुओं कि मूल शिक्षाओं को भूलकर भक्तिमार्ग को अपना रखा है। आध्यात्म और धार्मिकता के नाम पर जनता को भेड़, बत्तख और सूअर बना दिया धर्माचार्यों और आध्यात्मिक गुरुओं ने। देश लुट रहा हो, जनता को प्रायोजित महामारी से आतंकित कर बंधक बनाकर लूटा जा रहा हो, सामूहिक बलात्कार किया जा रहा हो पूरे विश्व की जनता का, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये पड़े हैं भक्तिमार्ग में बिलकुल वैसे, कीचड़ में ध्यानस्थ पड़ा हो सूअर जैसे।
देखा है कभी कीचड़ में पड़े सूअर को ?
बिलकुल ऐसा लगता है मानो उसे मोक्ष प्राप्त हो गया, उसे स्वर्ग मिल गया, और परमेश्वर और परमानन्द की प्राप्ति हो गयी।
बस ऐसे पड़े हुए हैं आस्तिक, नास्तिक, धार्मिक जनता और सरकारी अधिकारी, कर्मचारी बेसुध भजन-कीर्तन, पूजा, पाठ, रोज़ा-नमाज के परमानन्द में खोये हुए भ्रष्टाचार और लूट-मार के दलदल में।
क्या मानव जीवन का उद्देश्य सूअर की तरह परमानन्द में पड़े रहना मात्र है ?
~ विशुद्ध चैतन्य
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