वास्तविकता से दूर ले जाने वाले गुरुओं से सावधान रहें!

गुरु कई प्रकार के होते हैं। एक गुरु वे होते हैं, जो बच्चे को चलना, उठना, बैठना, खाना, पीना, बोलना सिखाते हैं।
दूसरे गुरु वे होते हैं जो लिखना पढ़ना, सर्टिफिकेट और डिग्रियां बटोरना सिखाते हैं।
तीसरे गुरु वे होते हैं जो नौकरी करना, बिजनेस करना, पैसे कमाना, हेराफेरी करना, बेईमानी करना, ठगना, झूठ बोलना सिखाते हैं। इन्हें हम मार्केटिंग गुरु के नाम से भी जानते हैं।
इनके बाद आते हैं वे गुरु जो आपको भेड़, बत्तख, जोम्बी और दिमाग से पैदल गुलाम बनाते हैं। ऐसे गुरु पौराणिक कथा कहानियां सुनाते हैं, धार्मिक ग्रंथ पढ़ाते हैं, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज़, मंदिर, मस्जिद, तीर्थों और कर्मकांडों में उलझाते हैं। नयी नयी जीवन शैलियाँ और जीवन विद्याएँ देते हैं और आपकी अपनी मौलिकता छीन लेते हैं। वे आपको जय-जय करना, शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर गाड़कर जीना, मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर चलना सिखाते हैं, लेकिन देश व जनता के लुटेरों का विरोध करना कभी नहीं सिखाते। इन्हें हम राजनेता, कथावाचक, धर्म व जातियों के ठेकेदार और अव्यवहारिक, अप्राकृतिक किताबी धार्मिक व आध्यात्मिक गुरुओं के नाम से जानते हैं।
ऐसे गुरु यदि आपको लुटेरों, माफियाओं और गलत का विरोध करना सिखायेंगे, तो उनकी अपनी आजीविका और प्राण दोनों संकट में पड़ जाएंगे और जीवन को नर्क बना दिया जाएगा माफियाओं और माफियाओं पर आश्रित ज़ोम्बियों द्वारा।
उपरोक्त सभी गुरु आपको वही देते हैं, वही सिखाते हैं, जो आप चाहते हैं, जिनसे आपकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, जिनसे आपका मनोरंजन होता है, जिनसे आपको अपना जीवन सहज और सरल लगने लगता है। लेकिन वे कब आपसे आपकी मौलिकता, आपकी निजता और आपके जीने का अधिकार छीनकर माफियाओं के गिरोह यानि देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाली सरकारों के हाथों सौंप देते हैं, आपको पता ही नहीं चलने पाता। कब वे आपको मानव से ज़ोम्बी, गुलाम और भेड़, बत्तख बना देते हैं आपको पता ही नहीं चलने पाता।
वे सिखाते हैं आपको कि खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाना है, इसीलिए सबकुछ लुटा दो मंदिरों, तीर्थों, बाबाओं के दरबारों और माफियाओं की सरकारों पर।
प्रवचन सुनने जाओ या मंदिरों, तीरथों में दर्शन करने, हर जगह आपको लुटेरे, ठग और वैश्य मिलेंगे। प्रवेश शुल्क से लेकर दर्शन शुल्क तक वसूले जाएँगे। लेकिन आजीवन आपको जागृत होने और आत्मनिर्भर होने का ज्ञान नहीं दे पाएंगे।
लेकिन ओशो, प्रभात रंजन सरकार, ठाकुर दयानन्द देव (१८८१-१९३७) और जे० कृष्णमूर्ति जैसे गुरु भी होते हैं जो इंसानों को जगाने के लिए आते हैं, भेडचाल से मुक्त करवाने के लिए आते हैं। ये गुरु आपपर कुछ भी थोपते नहीं, केवल ज्ञान देते हैं। बाकी स्वीकारना या न स्वीकारना आपके विवेक पर छोड़ देते हैं। ये कोई जीवन शैली नहीं देते, कोई सिद्धान्त नहीं देते। केवल यह समझाते हैं कि स्वयं की शक्तियों को पहचानो, स्वयं को किसी से कम मत आँको। ये समझाते हैं कि दड़बों से मुक्त हो जाओ क्योंकि तुम ईश्वर के अंश हो। और जो ईश्वर का अंश हो, वह किसी दड़बे में कैद नहीं रह सकता। वह भेड़चाल में नहीं चल सकता। ईश्वर के अंश को हर हाल में स्वयं को मुक्त करना होगा माफियाओं और लुटेरों की अधीनता से। आत्मनिर्भर बनना होगा, सरकारों और माफियाओं पर निर्भरता घटाते जाना होगा।
जब भी गूरु चुनें तो ऐसा चुनें, जो आपको गुलाम, जोम्बी भेड़, बत्तख या दिमाग से पैदल भक्त नहीं, अपितु चैतन्य, जागृत, आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित करे, मार्गदर्शन करे।
~ विशुद्ध चैतन्य
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